पश्चिम में ओपन मैरिज का कॉन्सेप्ट भी काफी पॉपुलर हो चुका है। समाजशास्त्रियों से लेकर के मनोवैज्ञानिक तक ओपन मैरिज के कॉन्सेप्ट को एक तरह से स्वीकार्यता दे चुके हैं। पश्चिम का यह कॉन्सेप्ट भारतीय समाज में धीरे-धीरे प्रवेश कर रहा है। ओपन मैरिज का सीधा मतलब यही है कि आप अपनी शादी के बाद भी दूसरे व्यक्ति के साथ रिश्ता बना सकते हैं और इसमें आपके पार्टनर की भी रजामंदी हो।
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ये वो खबरें हैं जो इन दिनों लगातार सुर्खियों में हैं। लेकिन ये खबरें हमारे समाज के बारे में भी कुछ कह रही हैं जिस पर रुक कर सोचना और बात करना ज़रूरी है। ये खबरें परिवार, विवाह से लेकर तमाम संस्थाओं पर सवालिया निशान खड़ा कर रही हैं। आखिर भारत जैसे समाज में जहां व्यक्ति का चरित्र उसकी सबसे बड़ी पूंजी समझा जाता था वहां बदलचल होना चलन में कैसे आ गया है? आज के इस वीडियो में हम इन खबरों पर बात नहीं करेंगे बल्कि इन खबरों के चरित्र पर बात करेंगे। उन सवालों पर बात करेंगे जो ऐसी घटनाओं के लगातार बढ़ते जाने पर पूछे जाने चाहिए।
देश में बढ़ रहे हैं रिश्तों के तार-तार करने वाले रिश्ते
शादी का इतिहास
दुनिया में वो पहला जोड़ा कौन सा था जिसने ये सोचा कि अब हमें शादी जैसी कोई चीज कर लेनी चाहिए। पश्चिमी इतिहास में पहली शादी का जिक्र मिलता है मिसोपोटामिया में साल 2350 BC यानी ईसा पूर्व में। विवाह संस्था कम से कम 4350 साल से मानव इतिहास में दर्ज हैं। भारत की बात करें तो विवाह सिर्फ एक रस्म नहीं बल्कि दैवीय संकल्पना है। शिव और पार्वती का विवाह प्रेम विवाह का पहला उदाहरण है हिंदू शास्त्रों में। जन्म-जन्मांतर का बंधन माना जाता है विवाह। लेकिन दुनिया के तमाम देशों में विवाह नाम की इस संस्था पर सवाल उठ रहे हैं। कई देशों में पारंपरिक विवाह की जगह कई विकल्प आ चुके हैं विवाह के।
चीन हो या जापान हर जगह लड़के-लड़कियां शादी के बंधन में बंधने से डर रहे हैं। शादी का नाम सुनते ही भागते हैं. यही वजह है कि कई सरकारें शादी के लिए सब्सिडी देने लगी हैं। चीन और जापान की सरकार तो सिर पकड़ चुकी है। कारण कि उनके देश में बर्थ रेट कम हो गया है। वहां लोग न शादी करना चाह रहे हैं और न बच्चे पैदा करना। जापान में पारंपरिक शादी से दूर भागते युवा 'फ्रेंडशिप मैरिज' अपना रहे हैं, जिसमें प्यार और शारीरिक संबंध नहीं होते। लोग अपनी इच्छा तक साथ रहते हैं, चाहें तो दूसरे लोगों से संबंध भी बना सकते हैं। जोड़े की एक दूसरे के प्रति कोई जवाबदेही नही होती। 'कलर्स' एजेंसी ने 2015 से 500 ऐसी शादियां करवाई हैं। चीन में भी शादी करने से युवा कतरा रहे हैं। तो वहां की सरकार बकायदा एक डिग्री कोर्स लेकर आ गई शादी विज्ञान।
पश्चिम में ओपन मैरिज का कॉन्सेप्ट
पश्चिम में ओपन मैरिज का कॉन्सेप्ट भी काफी पॉपुलर हो चुका है। समाजशास्त्रियों से लेकर के मनोवैज्ञानिक तक ओपन मैरिज के कॉन्सेप्ट को एक तरह से स्वीकार्यता दे चुके हैं। पश्चिम का यह कॉन्सेप्ट भारतीय समाज में धीरे-धीरे प्रवेश कर रहा है। ओपन मैरिज का कॉन्सेप्ट न केवल महानगरों की देन है बल्कि यह अब धीरे-धीरे महानगरीय संस्कृति का हिस्सा बन रहा है। ओपन मैरिज का सीधा मतलब यही है कि आप अपनी शादी के बाद भी दूसरे व्यक्ति के साथ रिश्ता बना सकते हैं और इसमें आपके पार्टनर की भी रजामंदी हो। लोगों का कहना है कि यह कॉन्सेप्ट इसलिए ट्रेंड में आया ताकि लोगों में कम से कम तलाक हो और वह एक-दूसरे से बोर भी न हों। अब इसे पढ़कर एक सवाल यही मन में आता है कि यह कॉन्सेप्ट भारतीय कपल्स में कैसे ट्रेंड कर रहा है, जहां शादी को सात जन्मों का बंधन माना जाता है। इसके अलावा इंडोनेशिया में कुछ समय की मौज मस्ती के लिए शॉर्ट टर्म प्लेज़र मैरिज के कई मामले सामने आए थे जिसमें शादी एक मज़ाक बनकर रह गई।
भारत में डिजिटल लिट्रेसी पर काम की जरूरत
अब आते हैं भारत पर। भारत में विवाह के कॉन्सेप्ट पर आपत्ति अगर कुछ लोगों को है भी तो भी यह किसी मुहिम का रूप नहीं ले पाई है। जो खबरें हमने आपको बताईं उसमें भी ऐसा नहीं है कि अपनी शादी तोड़कर लोग शादी से ही आजा़द होना चाहते हों। नहीं इन खबरों में मामला बेवफाई, आपसी रंजिश और रिश्तों में खत्म होते भरोसे और मिट चुके आपसी सम्मान की कहानियां हैं। इन घटनाओं का कोई सोचा समझा वैचारिक पक्ष नहीं है। बल्कि ये चारित्रिक फिसलन की कहानियां हैं। लेकिन ऐसी घटनाओं का असर समाज पर कैसा पड़ रहा है ये सोचने की बात है। खबरें आएंगी तो मीडिया दिखाएगा ही। इसलिए सवाल समाज पर है मीडिया पर नहीं। भारत फिर से विश्व गुरू होने का देख रहा है। लेकिन भारत जब विश्व गुरू था तब चरित्र और ज्ञान दोनों की इज्जत होती थी। हम जिन घटनाओं की बात कर रहे हैं उनके पात्रों को भी कोई चरित्र प्रमाण पत्र नहीं बांट रहे। बल्कि ऐसी घटनाओं के बहाने अपने समाज को देखने की कोशिश कर रहे हैं। कई पहलुओं पर सोचने की जरूरत है। हम कैसा कंटेंट देख रहे हैं। इंटरनेट का प्रसार तो भारत में चमत्कारी तरीके से हो गया है लेकिन डिजिटल लिट्रेसी पर क्या काम हुआ है? विकास की गिरती दर संभाली जा सकती है लेकिन चरित्र का गिरता ग्राफ अगर नहीं रुका तो भारत वो भारत रह ही नहीं जाएगा जिसे देखने के लिए दुनिया भर से ज्ञान की तलाश में लोग इस पुण्य पावन भूमि पर आते हैं।