Image Source: Jugnuma Movie
Manoj Bajpayee,Priyanka Bose,Tillotama Shome,Deepak Dobriyal
क्रिटिक्स रेटिंग
2.5
Psychological
Sep 12, 2025
2 hr 17 mins
Jugnuma The Fable Review in Hindi: सलीम खान साहब ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि फिल्में जनता के लिए बनाई जाती हैं, इसलिए उसी जुबान में इन्हें बनाना चाहिए जिसमें लोग समझ सकें। 'जुगनुमा द फेबल' की परेशानी ही यही है कि ये आम जनता की कहानी कहती है लेकिन उस जुबान में नहीं, जिसे वो समझते हैं।
कास्ट एंड क्रू
Manoj Bajpayee
Priyanka Bose
Tillotama Shome
Deepak Dobriyal
Jugnuma The Fable Review: सब्र का इम्तिहान लेते हैं मनोज बाजपेयी-दीपक ढोबरियाल
Jugnuma The Fable Review in Hindi: कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जिनके टाइटल से कहानी का पता नहीं चलता है। 'जुगनुमा द फेबल' भी इसी कैटेगिरी में फॉल करती है। अगर आपसे पूछा जाए कि 'जुगनुमा द फेबल' का क्या मतलब है तो शायद आप नहीं बता पाएंगे... चलिए कोई बात नहीं, मैं आपको बताता हूं। 'जुगनुमा' का मतलब होता है कि 'जुगनू की तरह' और 'फेबल' का मतलब होता है 'नीति का उपदेश देने वाली कथा' या 'नीति कथा'। अब आप समझ गए होंगे कि मनोज बाजपेयी और दीपक ढोबरियाल की फिल्म 'जुगनुमा द फेबल' किस बारे में होगी। ये फिल्म हमें जिंदगी के बारे में सिखाती है लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या ये इसमें सफल रहती है, आइए आपको बताते हैं....
फिल्म 'जुगनुमा द फेबल' पहाड़ों में रहने वाले एक देव नाम के आदमी की कहानी है, जिसके पास 5000 एकड़ के सेब के बागान हैं। सेब के ये बागान उसे उसके पिता से मिले हैं और उसके पिता को ये बागान अंग्रेजों की सेवा करने के ईनाम में मिले थे। इन बागानों पर आसपास के लोगों की जीविका निर्भर करती है। वो इनमें मजदूरी करते हैं और अपना घर चलाते हैं। बागानों में सेब का उत्पादन बढ़ाने के लिए देव पेस्टिसाइड का यूज करता है। गांव वाले इसके खिलाफ हैं लेकिन कोई कुछ बोलता नहीं है क्योंकि इन्हीं बागानों में तो काम करके उनका घर चलता है। अचानक से इन बागानों में आग लगना शुरू हो जाती है। क्या ये आग गांव वाले देव को परेशान करने के लिए लगा रहे हैं या इसके पीछे प्रकृति का हाथ है, जो देव को कुछ सिखाना चाहती है? ये फिल्म 'जुगनुमा दे फेबल' की कहानी है...
डायरेक्टर राम रेड्डी की 'जुगनुमा द फेबल' बहुत ही स्लो मूवी है। इस फिल्म को अवॉर्ड फंक्शन्स में बहुत तारीफें मिली हैं क्योंकि वहां ऐसे सिनेमा को सराहा जाता है लेकिन फिल्में सिर्फ अवॉर्ड फंक्शन के लिए तो नहीं बनाई जा सकती हैं। जो कहानी आम लोगों की है, उसका उन तक पहुंचना बहुत जरूरी है... वरना उसे बनाने का उद्देश्य ही बर्बाद हो जाता है। 'जुगनुमा द फेबल' की कहानी के साथ भी यही परेशानी है। ये अंत तक दर्शकों के संयम की परीक्षा ले लेती है और साफगोई से मैसेज दिए बिना निकल जाती है, जिससे ये सबकी समझ में नहीं आती है।
मनोज बाजपेयी, दीपक ढोबरियाल, तिल्लोतामा शोम और प्रियंका बोस अच्छे ही एक्टर्स हैं, जिन्होंने 'जुगनुमा द फेबल' में भी अच्छा ही काम किया है। कास्टिज्म, क्लासिज्म और कैपिटलिज्म पर बात करने वाली 'जुगनुमा द फेबल' में इन सभी ने दिल से परफॉर्म किया है लेकिन एक खास वर्ग को छोड़ दिया जाए तो बाकियों को ये समझ ही नहीं आएगा कि ये क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं?
अंत में मैं बस यही कह सकता हूं कि डायरेक्टर रामा रेड्डी की 'जुगनुमा द फेबल' केवल उस बुद्धजीवी वर्ग के लिए है, जो समाज की सच्चाई से उतना ही ऊपर रहता है, जितना समुद्र तल से ऊपर जाकर हम सेब उगा सकते हैं। 'जुगनुमा द फेबल' अच्छी नियत से बनाई गई धीमी फिल्म है, जिसे समझने के लिए आपको हर दम आंखें और दिमाग खुला रखना होगा। पहाड़ की एक नीति कथा पर आधारित 'जुगनुमा द फेबल' हमें ये बताने की कोशिश करती है कि प्रकृति पर केवल पावरफुल का ही नहीं बल्कि सबका हक है। अगर कोई पावरफुल व्यक्ति प्रकृति पर कंट्रोल भी करना चाहता है तो प्रकृति अपने अंदाज में उससे सबकुछ वापस ले भी लेती है। अगर आप अवॉर्ड फंक्शन के लिए बनाई गई स्लो फिल्में देखना पसंद करते हैं और 2 घंटे तक सीट से चिपके रह सकते हैं तो 'जुगनुमा द फेबल' का टिकिट खरीद सकते हैं। हम अपनी ओर से इस फिल्म के लिए 2.5 स्टार्स देते हैं।
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