बढ़ती-घटती रहती है Eiffel Tower की हाइट, जानते हैं क्यों

Eiffel Tower को हर साल लाखों लोग देखने के लिए आते हैं। ये टावर दुनिया के सात अजूबों में से एक है। इस टावर को गुस्ताव एफिल ने बनाया था। यह टावर पूरा का पूरा लोहे से बना है। इसे बनाने में 800 दिन लगे थे, यानी दो साल से भी अधिक का समय लग गया था।

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कहां है Eiffel Tower?

Eiffel Tower के बारे में तो आपने सुना ही होगा। लोहे से बना यह टावर फ्रांस की राजधानी पेरिस में सीन नदी के किनारे स्थित है। इस टावर को बनाने में दो साल लगे थे और ये सन् 1887 से 1889 के बीच बना था। एफिल टावर को गुस्ताव एफिल ने बनाया था।

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बढ़ती-घटती रहती है एफिल टावर की हाइट

ये तो रही एफिल टावर की वो बातें जिसे लगभग सभी लोग जानते हैं। लेकिन आज हम जो चीज आपको बताने वाले हैं, वह शायद ही आपको पता होगा। तो क्या आप जानते हैं कि गर्मियों में पेरिस के एफिल टॉवर की हाइट बढ़ जाती है और सर्दियों में ये हाइट कम हो जाती है? इसी तरह ही एफिल टावर की हाइट बढ़ती-घटती रहती है।

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गर्मियों के मौसम में बढ़ जाती है एफिल टावर की हाइट

क्यों सुनकर झटका लगा न आपको? लेकिन ये बात सच है। दरअसल, गर्मियों के मौसम में एफिल टावर की हाइट 15 सेंटीमीटर, लगभग 6 इंच, बढ़ जाती है।

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क्यों होता है ऐसा?

आइए अब हम आपको बताते हैं कि आखिर ऐसा होता क्यों है। तो सबसे पहले आप ये जान लें कि एफिल टावर पूरा का पूरा लोहे से बना है और गर्मियों के मौसम में ज्यादा गर्मी पड़ने से धातुएं फैलती हैं। जिसे हम थर्मल एक्सपेंशन (Thermal Expansion) कहते हैं।

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क्या कहता है साइंस?

इसके पीछे का साइंस यह कहता है कि गर्मी के मौसम में तापमान के बढ़ने से धातु के परमाणु तेजी से हिलते हैं, जिससे उनके बीच की दूरी बढ़ जाती है और धातु फैलने लगते हैं; ऐसे में टावर की ऊँचाई लगभग 15 सेंटीमीटर (6 इंच) तक बढ़ जाती है।

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ट्रेन की पटरियों में भी अप्लाई होती है यह साइंस

ठीक यहीं चीज ट्रेन की पटरियों में भी लागू होती है। आपने अगर गौर किया हो तो आपने देखा होगा कि ट्रेन की पटरियों के बीच थोड़ी सी जगह छोड़ी जाती है जिससे कि गर्मियों में पटरियों के फैलने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके।

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ऐसे समझ में नहीं आता यह बदलाव

एफिल टावर की ऊंचाई में आया यह बदलाव हमें नंगी आंखों से नहीं दिखता। यह बदलाव इतना कम होता है कि हम इस पर गौर कर ही नहीं सकते, लेकिन वैज्ञानिक और इंजीनियर इसे सटीक रूप से मापकर बता सकते हैं कि टावर में ऊंचाई में कितना फर्क आया है।