अध्यात्म

Gayaji Ki Mahima: पितृ पक्ष के साथ कैसे जुड़ा है गयाजी का नाम, जानें क्या है माता सीता के श्राप की कहानी

Gayaji Ki Mahima: पितरों के तर्पण के लिए गया जी का स्थान विशिष्ट है। इसे मोक्षस्थली कहा जाता है। यहां जानें कि इस शहर की क्या महिमा है। और कैसे गया जी को ये स्थान मिला। साथ ही जानें माता सीता के श्राप की कहानी।

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Gayaji Ki Mahima: भारत में पितरों के उद्धार और श्राद्ध कर्म के लिए अनेक तीर्थस्थल बताए गए हैं, लेकिन उनमें सबसे विशेष स्थान गयाजी का है। फल्गु नदी के तट पर बसे इस पावन शहर को मोक्षस्थली कहा जाता है। गयाजी का उल्लेख वायु पुराण, गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में मिलता है। माना जाता है कि यहां पिंडदान करने से पितरों की आत्मा जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाती है।

गया जी का नाम रामायण से कैसे जुड़ा है (AI Image)

मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से 108 कुल और सात पीढ़ियों का उद्धार होता है और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है। यही कारण है कि पितृपक्ष के दौरान हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। रामायण के अनुसार, भगवान राम और माता सीता ने यहीं फल्गु नदी के तट पर राजा दशरथ का पिंडदान किया था। महाभारत काल में भी पांडवों ने गया आकर अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म संपन्न किया था।

गया नगरी की उत्पत्ति कैसे हुई

गया नगरी की उत्पत्ति से जुड़ी कथा भी उतनी ही रोचक है। कहा जाता है कि यहां गयासुर नामक असुर ने तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा कि उसका शरीर इतना पवित्र हो जाए कि उसके दर्शन मात्र से लोग पापमुक्त हो जाएं। धीरे-धीरे लोग पाप कर उसके दर्शन से मुक्त होने लगे। इससे स्वर्ग-नरक का संतुलन बिगड़ गया। परेशान देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद मांगी।

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