अध्यात्म Putrada Ekadashi Bhajan: पुत्रदा एकादशी के दिन गाएं भगवान विष्णु के ये मधुर भजन, यहां देखें लिरिक्स Authored by: जयंती झा Updated Jan 10, 2025, 09:06 IST
Putrada Ekadashi Bhajan Lyrics: पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की उपासना की जाती है। इस दिन पूजा के समय भगवान विष्णु के मधुर भजन गाना शुभ माना जाता है। यहां देखें पुत्रदा एकादशी व्रत के गाने की लिरिक्स। Follow
Putrada Ekadashi Bhajan Lyrics : पुत्रदा एकादशी का व्रत पौष मास की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। इस साल ये व्रत आज यानि 10 जनवरी 2025 को रखा जा रहा है। इस दिन साधकों द्वारा व्रत किया जाता है और भगवान श्री हरि की विधिवत पूजा की जाती है। पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से साधक को संतान सुख की प्राप्ति होती है। पौष पुत्रदा एकादशी की पूजा भगवान विष्णु के भजनों के बिना अधूरी मानी जाती है। आज हम यहां पर आपके लिए लेकर आएं भगवान विष्णु के भजनों के लिरिक्स और लिस्ट। इन भजनों के द्वारा आप श्री हरि को प्रसन्न कर सकते हैं। यहां देखें भगवान विष्णु के मधुर भजनों के लिरिक्स।
Putrada Ekadashi Bhajan Lyrics (पुत्रदा एकादशी भजन लिरिक्स)
अर्जुन सुन गीता का ज्ञान जगत में लिरिक्स
अर्जुन सुन गीता का ज्ञान,
जगत में ग्यारस बड़ी महान,
अर्जुन सुन गीता का ज्ञान,
जगत में ग्यारस बड़ी महान ॥
ग्यारस के दिन सिर से नहावे,
अर्जुन सुन गीता का ज्ञान,
जगत में ग्यारस बड़ी महान ॥
ग्यारस के दिन खाट पै सोवे,
अर्जुन सुन गीता का ज्ञान,
जगत में ग्यारस बड़ी महान ॥
ग्यारस के दिन बैंगन खावे,
अर्जुन सुन गीता का ज्ञान,
जगत में ग्यारस बड़ी महान ॥
अर्जुन सुन गीता का ज्ञान,
जगत में ग्यारस बड़ी महान ॥
ग्यारस के दिन दूध जो पीवे,
अर्जुन सुन गीता का ज्ञान,
जगत में ग्यारस बड़ी महान ॥
ग्यारस के दिन घर घर डोले,
अर्जुन सुन गीता का ज्ञान,
जगत में ग्यारस बड़ी महान ॥
अर्जुन सुन गीता का ज्ञान,
जगत में ग्यारस बड़ी महान ॥
अर्जुन सुन गीता का ज्ञान,
जगत में ग्यारस बड़ी महान ॥
अर्जुन सुन गीता का ज्ञान,
जगत में ग्यारस बड़ी महान,
अर्जुन सुन गीता का ज्ञान,
जगत में ग्यारस बड़ी महान ॥
दुनिया में ईश्वर एक ही है
दुनिया में ईश्वर एक ही है, मुझे क्या लेना है हजारों से।
अनहद की धुन बजे घट में, उसे क्या लेना है नगारो से।।
पूरी स्टोरी पढ़ें
घट भीतर भगवान बसे, संसार के विषयों की चाह नहीं।
है सम दृष्टि सबके भीतर, उसे सुख दुःख की परवाह नहीं।।
आना जाना जग रीती है, तुम सीखो बसंत बहारों से ।
यहां संग नही चलता कोई, तुम मिलते लोग हजारों से।।
कोई रहता एक अकेले में, नहीं पङता जग के झमेले में।
कोई मोह माया में बंधकर के, रहता है जग के मेले में।।
मत करना विश्वास कभी, यहां लोग सभी है मतलब के।
स्वार्थ हित रिस्ते जोङ रहे सब,प्रीति करले तु रब से।।
कहे सदानंद सांची सुणलो, यह हरि सुमिरन की बेला है।
संग कर्म चले अपने अपने, ओर कहाँ गुरू कहां चैला है।।
जब भक्त बुलाते हैं, हरि दौड़ के आते हैं ॥
वो तो दीन और दुःखीओं को ॥
आ के गले लगाते हैं, हरि दौड़ के आते हैं,
द्रोपदी ने जब, उन्हें पुकारा, दौड़े दौड़े आ गए ।
भरी सभा में, चीर बढ़ा के, उसकी लाज बचा गए ॥
वो बहुत दयालु हैँ, वो दया के सागर हैँ,
वो चीर बढ़ाते हैँ, हरि दौड़ के आते हैँ,
अर्जुन ने जब, उन्हें पुकारा, सार्थी बनके आ गए ।
गीता का, उपदेश सुना के, उसका भरम मिटा गए ॥
वो ज्ञान सिखाते हैं, वो भरम मिटाते हैं,
वो गले लगाते हैं, हरि दौड़ के आते हैं,
धन्ने ने जब, उन्हें पुकारा, ठाकुर बनके आ गए ।
पत्थरों में, दर्श दिखा के, प्रेम का भोग लगा गए ॥
वो दर्श दिखाते हैं, वो हल चलाते हैं,
वो मान बढ़ाते हैं, हरि दौड़ के आते हैं,
मित्र सुद्दामा, द्वारे आए, दौड़े दौड़े आ गए ।
दो मुठी, सत्तू के बदले, उसका महल बना गए ॥
वो फ़र्ज़ निभाते हैं, वो गले लगाते हैं,
वो महल बनाते हैं, हरि दौड़ के आते हैं,