अध्यात्म

श्रील प्रभुपाद की 129वीं व्यास पूजा भव्य श्रद्धा के साथ संपन्न, चंद्रोदय मंदिर में भक्तिसागर उमड़ा

गुरु को भगवान नहीं माना जाता, लेकिन उन्हें भगवान के समान आदर इसलिए दिया जाता है क्योंकि वही हमें भगवान तक पहुंचने का मार्ग दिखाते हैं। विश्व गुरु श्रील ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी की व्यास पूजा मनाई गई। यह अवसर उनके 129वें आविर्भाव दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित हुआ।

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नई दिल्ली: इस्कॉन बंगलुरु और हरे कृष्णा मूवमेंट से संबंधित सभी मंदिरों में बड़े ही श्रद्धा और भक्ति भाव से विश्व गुरु श्रील ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी की व्यास पूजा मनाई गई। यह अवसर उनके 129वें आविर्भाव दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया। इस्कॉन बेंगलोर में चेयरमैन पद्दश्री मधु पंडित दास, वृंदावन चंद्रोदय मंदिर में कार्यक्रम का आयोजन इस्कॉन बेंगलोर के उपाध्यक्ष एवं वृंदावन चंद्रोदय मंदिर के चेयरमैन चंचलापति दास जी के नेतृत्व में संपन्न हुआ। इस अवसर पर भक्तों ने अभिषेक, कीर्तन, संकीर्तन, पुष्पांजलि और विशेष अर्पण के माध्यम से अपनी श्रद्धा व्यक्त की। वातावरण प्रभुपाद जी की महिमा और श्रीकृष्ण भक्ति से गुंजायमान रहा।

विश्व गुरु श्रील ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी की व्यास पूजा मनाई गई

वृंदावन चंद्रोदय मंदिर के वाइस प्रेसिडेंट अर्जुन नाथ दास ने कहा कि व्यास पूजा वैदिक परंपरा में अत्यंत विशेष स्थान रखती है। यह परंपरा श्री व्यासदेव की स्मृति में मनाई जाती है, जिन्हें वेदों और समस्त वैदिक साहित्य महाभारत, पुराण और श्रीमद्भागवतम के संकलन और लेखन का श्रेय जाता है। व्यासदेव भगवान के साहित्यिक अवतार (शक्ति-आवेश अवतार) माने जाते हैं। इसीलिए, जब भी किसी गुरु का आविर्भाव दिवस मनाया जाता है, उसे व्यास पूजा कहा जाता है। क्योंकि प्रत्येक गुरु, व्यासदेव के प्रतिनिधि होते हैं और अपने शिष्यों को भगवान श्रीकृष्ण के प्रति परिचय कराते हैं। गुरु को भगवान नहीं माना जाता, लेकिन उन्हें भगवान के समान आदर इसलिए दिया जाता है क्योंकि वही हमें भगवान तक पहुंचने का मार्ग दिखाते हैं।

श्री दास ने कहा कि आज के दिन भक्तों ने श्रील प्रभुपाद की मूर्ति का पंचामृत, पंचगव्य, पुष्प और फलों के रसों से अभिषेक किया। जिस प्रकार जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक होता है, उसी प्रकार व्यास पूजा के दिन गुरु के विग्रह का अभिषेक किया जाता है। इस वर्ष लगभग 8,000 भक्तों ने अपनी व्यक्तिगत श्रद्धांजलि पत्र लिखे, जिन्हें सात पुस्तकों में संकलित कर प्रभुपाद जी को अर्पित किया गया। यह गुरु-शिष्य परंपरा की गहनता और भक्तों की कृतज्ञता का प्रतीक है।

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