40% EMI रूल : इनकम का कितना हिस्सा EMI में देना सही?

rule of 40
40% EMI Rule: आज के जमाने में लोन लेना लगभग आम बात हो गई है। चाहे घर खरीदना हो, नई कार लेनी हो, बच्चों की पढ़ाई करनी हो या किसी मेडिकल इमरजेंसी का सामना करना हो इन सबके लिए लोग बैंक से आसानी से लोन ले लेते हैं। लोन लेने से आपकी ज़रूरतें पूरी तो हो जाती हैं, लेकिन EMI चुकाना कई बार बोझ भी बन सकता है। अगर आपने बिना सोचे-समझे ज्यादा EMI ले ली, तो रोजमर्रा के खर्च, सेविंग्स और इमरजेंसी फंड सब गड़बड़ा सकते हैं। यही वजह है कि वित्तीय एक्सपर्ट हमेशा सलाह देते हैं कि लोन लेते समय अपनी इनकम और खर्च का सही हिसाब लगाना जरूरी है।
EMI का सही कैलकुलेशन
फाइनेंशियल प्लानिंग का एक गोल्डन रूल है 40% EMI रूल। इसका मतलब है कि आपकी मासिक आय का 35 से 40 प्रतिशत हिस्सा ही EMI में जाना चाहिए। बाकी 60-65 प्रतिशत रकम आपके घर-गृहस्थी, बच्चों की पढ़ाई, इंश्योरेंस, सेविंग्स और निवेश के लिए बची रहनी चाहिए। अगर आप इस सीमा के अंदर EMI रखते हैं, तो आपकी वित्तीय सेहत बनी रहती है और किसी भी अचानक आने वाली स्थिति से निपटना आसान हो जाता है।
उदाहरण से समझिए
मान लीजिए आपकी मासिक आय ₹1 लाख है। इस हिसाब से आपकी EMI का बोझ अधिकतम ₹40,000 होना चाहिए। बाकी के ₹60,000 से आप रोजमर्रा के खर्च, सेविंग्स और इमरजेंसी फंड तैयार कर सकते हैं। अगर EMI इससे ज्यादा हो गई तो बाकी ज़रूरतों और बचत पर असर पड़ सकता है।
EMI तय करते समय किन बातों का ध्यान रखें?
भविष्य की सैलरी ग्रोथ पर भरोसा न करें: EMI केवल आपकी मौजूदा स्थिर इनकम के आधार पर तय करें। बोनस या साइड इनकम को EMI कैलकुलेशन में शामिल न करें।
जॉब सिक्योरिटी देखें: नौकरी छूटने या इनकम कम होने की स्थिति में भी EMI चुकानी ही होगी। इसलिए EMI को सुरक्षित दायरे में ही रखें।
ब्याज दर का रिस्क: लोन की EMI भविष्य में बढ़ सकती है। इसके लिए पहले से तैयार रहें।
लोन लेना गलत नहीं है, लेकिन यह तभी सही है जब आप अपनी EMI को कंट्रोल में रखें। 40% EMI रूल अपनाने से आपकी जेब पर बोझ नहीं पड़ेगा और सेविंग्स व इमरजेंसी फंड भी सुरक्षित रहेंगे। सही प्लानिंग करके लिया गया लोन आपकी ज़िंदगी आसान बना सकता है, जबकि गलत EMI चुनाव आपकी नींद उड़ा सकता है।
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