जन्माष्टमी कब है 2025: पूजाविधि मंत्र भोग और आरती की संपूर्ण जानकारी
हिन्दू धर्म का एक प्रमुख त्योहार जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है जो उनके जन्म दिवस के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
हर साल भाद्रपद माह यानि अगस्त-सितंबर के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी पावन पर्व मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह तिथी तय होती है ऐसे में हर साल यह बदलती रहती है। भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक ये दिन भगवान श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण और प्रेम को प्रकट करने का पर्व भी है।
जन्माष्टमी पूजा सामग्री:
श्रीकृष्ण की मूर्ति या बाल गोपाल (लड्डू गोपाल), झूला (पालना) और सिंहासन, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल), तुलसी के पत्ते, फल और मेवे, धूप, दीपक, कपूर, चंदन और रोली, माला (फूलों की और तुलसी की), पूजा थाली, घंटी, कलश, नये वस्त्र और वस्त्राभूषण।
जन्माष्टमी पूजा विधि:
स्नान करके साफ वस्त्र पहनें और पूजा स्थल को शुद्ध करें। इसके बाद बाल गोपाल को पंचामृत से स्नान कराकर उन्हें नए वस्त्र पहनाकर झूले पर विराजमान करें। दीपक जलाएं, धूप लगाएं और फूल अर्पित करें। तुलसी दल, मक्खन-मिश्री और माखन चढ़ाएं। श्रीकृष्ण के मंत्रों का जाप करने के साथ ही आरती करें और अंत में प्रसाद वितरित करें।
जन्माष्टमी के मंत्र:
1- हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे॥2- ॐ क्लीं कृष्णाय नमः॥
3- वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम्। देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥
4- ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥
5- कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:॥
जन्माष्टमी का प्रसाद
भोग में आप पंचामृत, पंचमेवा (सूखे मेवे), फल, धनिया पंजीरी, माखन-मिश्री के साथ तुलसी पत्र, मक्खन मिश्री या फिर माखन चुरमा दे सकते हैं।जन्माष्टमी की आरती
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
जन्माष्टमी की तारीख पिछले 5 साल में:
साल 2024- 26 अगस्त,साल 2023- 6 सितंबर,
साल 2022- 18 अगस्त,
साल 2021- 30 अगस्त,
साल 2020- 11 अगस्त।
जन्माष्टमी की तारीख अगले पांच साल में:
साल 2025- 16 अगस्त,
साल 2026- 5 अगस्त,
साल 2027- 24 अगस्त,
साल 2028- 12 अगस्त,
साल 2029- 1 अगस्त।
श्री कृष्ण चालीसा इन हिंदी
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुणअधरजनु बिम्बफल, नयनकमलअभिराम॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥
जय यदुनंदन जय जगवंदन।
जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।
जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नट-नागर, नाग नथइया।
कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।
आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरि टेरौ।
होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो।
आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।
मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
राजित राजिव नयन विशाला।
मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥
कुंडल श्रवण, पीत पट आछे।
कटि किंकिणी काछनी काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे।
छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।
आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पूतनहि तारो।
अका बका कागासुर मारो॥
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला।
भै शीतल लखतहिं नंदलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई।
मूसर धार वारि वर्षाई॥
लगत लगत व्रज चहन बहायो।
गोवर्धन नख धारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।
मुख मंह चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो।
कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।
चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा।
सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहारी।
कंसहि केस पकड़ि दै मारी॥
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।
उग्रसेन कहं राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो।
मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी।
लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भीमहिं तृण चीर सहारा।
जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥
असुर बकासुर आदिक मारो।
भक्तन के तब कष्ट निवारो॥
दीन सुदामा के दुख टारो।
तंदुल तीन मूंठ मुख डारो॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे।
दुर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखी प्रेम की महिमा भारी।
ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
भारत के पारथ रथ हांके।
लिये चक्र कर नहिं बल थाके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाए।
भक्तन हृदय सुधा वर्षाए॥
मीरा थी ऐसी मतवाली।
विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा सांप पिटारी।
शालीग्राम बने बनवारी॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो।
उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करि तत्काला।
जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।
दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहि वसन बने नंदलाला।
बढ़े चीर भै अरि मुंह काला॥
अस अनाथ के नाथ कन्हइया।
डूबत भंवर बचावइ नइया॥
'सुन्दरदास' आस उर धारी।
दया दृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।
क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै।
बोलो कृष्ण कन्हइया की जै॥
दोहा
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥
संबंधित खबरें

spirituality
राधा अष्टमी का व्रत कब और कैसे खोले 2025, राधा अष्टमी व्रत 2025 पारण टाइम, देखें राधा अष्टमी का व्रत खोलने का समय 2025
spirituality
Today is Radha Ashtami or Not: आज राधा अष्टमी का व्रत कितने बजे तक है 2025, 31 अगस्त 2025 के पंचांग से जानें राधा अष्टमी 2025 का शुभ पूजा मुहूर्त

© 2025 Bennett, Coleman & Company Limited