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Explainer: भारत-रूस-चीन के बीच बढ़ता इकॉनॉमिक गठजोड़! जानिए ग्लोबल इकॉनॉमी पर क्या होगा असर?

भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। IMF और विश्व बैंक का मानना है कि आने वाले वर्षों में भारत जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
SCO Summit

SCO Summit (Istock)

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की सत्ता वापसी के बाद वैश्विक समीकरण तेजी से बदले हैं। इसके पीछे अमेरिका द्वारा शुरू किया गया ट्रेड वॉर है। ट्रंप के आने के बाद से अमेरिका ने दुनिया के बहुत सारे देशों पर अनाप-शनाप ट्रैरिफ लगाया है। अमेरिका ने जिन देशों पर भारी टैरिफ लगाया है, उनमें भारत भी शामिल है। आपको बता दें कि अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लगाया है। अमेरिकी मनमानी के बाद वैश्विक समीकरण तेजी से बदले हैं। बदलते वैश्विक सीमकरण में 2020 के सीमा विवाद के बाद एक बार फिर भारत और चीन करीब आए हैं। इसकी झलक शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट में साफ दिखाई दी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की जुगलबंदी के बाद वैश्विक पटल पर ये सवाल तैरने लगे हैं कि भारत-रूस-चीन के बीच बढ़ते गठजोड़ का वर्ल्ड इकॉनॉमी पर क्या असर होगा? क्या पश्चिमी देशों की पकड़ होगी ढीली? आइए आपके मन में उठ रहे सभी सवालों के जवाब देते हैं।

अभी तक पश्चिमी देशों का है दबदबा

वर्ल्ड इकॉनॉमी पर अभी तक पश्चिमी देशों का दबदबा है। इसमें अमेरिका और यूरोपीय देश शामिल है। हालांकि, अब तस्वीर बदली दिख रही है। अमेरिकी टैरिफ वॉर के बाद मिडिल ईस्ट और एशियाई देश दूसरे विकल्प की तलाश में है। इसी का परिणाम है कि भारत, रूस और चीन एक साथ आए हैं। अगर यह तिकड़ी कामयाब होती है कि वर्ल्ड इकॉनॉमी पर आने वाले समय में बड़ा असर दिखाई देगा। पिछड़े और कमजोर देश भी अपनी बेहतरी के लिए इस नए ग्रुप में शामिल हो सकते हैं। आने वाले समय में ब्रिक्स और मजबूत हो सकता है। आपको बता दें कि ब्रिक्स अग्रणी उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का वैश्विक संगठन है। ब्राजील, रूस, भारत और चीन इसके संस्थापक सदस्य हैं।

भारत-रूस-चीन के साथ आने के क्या हैं मायने

भारत: भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। IMF और विश्व बैंक का मानना है कि आने वाले वर्षों में भारत जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

चीन: दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब और दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी है। पिछले एक दशक में चीन ने अमेरिका को कई फ्रंट पर सीधे टक्कर दिया है।

रूस: तेल और गैस का बड़ा सप्लायर है, जो ऊर्जा सुरक्षा में अहम रोल निभाता है।

तीनों देश मिलकर एक ऐसा कॉम्बिनेशन पेश करते हैं जिसमें मार्केट + मैन्युफैक्चरिंग + एनर्जी सब कुछ है।

ग्लोबल मार्केट पर असर

  • अगर ट्रेड अपनी करेंसी में होने लगे तो अमेरिकी डॉलर की पकड़ कमजोर होगी।
  • नई सप्लाई चेन बनेगी। वेस्ट पर निर्भरता घटेगी और एशिया केंद्र में आ सकता है।
  • टेक्नोलॉजी और डिफेंस में सहयोग। यह तिकड़ी मिलकर वेस्ट की मोनोपॉली को चुनौती दे सकती है।
  • छोटे और विकासशील देशों के पास वेस्ट के अलावा भी बड़ा पार्टनर होगा।

क्यों चिंतित है पश्चिमी देश?

पश्चिमी देशों को डर है कि अगर यह गठजोड़ मजबूत हुआ तो ग्लोबल ट्रेड, इन्वेस्टमेंट और एनर्जी मार्केट में उनका दबदबा कम हो जाएगा।

1. भारत – उभरता हुआ आर्थिक पावरहाउस

-भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं है। IMF और विश्व बैंक का मानना है कि आने वाले वर्षों में भारत जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

-140 करोड़ की आबादी के साथ भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बनने जा रहा है।

-UPI और स्टार्टअप इकोसिस्टम भारत की ताकत हैं।

-युवा आबादी भविष्य में भारत को श्रम और तकनीकी शक्ति दोनों देगी।

2. चीन – मैन्युफैक्चरिंग का बादशाह

-चीन पहले से ही दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।

-इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल, मशीनरी और अन्य सामान में चीन का दबदबा है।

-अधिकांश विकसित और विकासशील देश चीन से आयात पर निर्भर हैं।

3. रूस – एनर्जी का सुपरपावर

-रूस के पास दुनिया के सबसे बड़े तेल और गैस रिजर्व हैं।

-यूरोप और एशिया के कई देश रूसी गैस और तेल पर निर्भर हैं।

-रूस हथियारों और डिफेंस टेक्नोलॉजी का बड़ा सप्लायर है।

-अंतरिक्ष और वैज्ञानिक तकनीक में रूस की अहम पकड़ है।

ग्लोबल मार्केट पर क्या होगा असर?

1. घट सकता है डॉलर का दबदबा: भारत, चीन और रूस के आने से डॉलर का दबदबा घट सकता है। ऐसा क्यों होगा तो आपको बता दें कि अगर भारत, रूस और चीन व्यापार अपनी करेंसी में करने लगें, तो डॉलर पर निर्भरता घट सकती है। रूस पहले ही अपने तेल व्यापार में रुपये और युआन का इस्तेमाल कर रहा है। अमेरिका सुपर पावर डॉलर के कारण ही बना हुआ है।

2. नई सप्लाई चेन का निर्माण: भारत, रूस और चीन के साथ आने से दुनिया को नया विकल्प मिल सकता है। भारत और चीन मिलकर नई सप्लाई चेन बना सकते हैं। रूस ऊर्जा की सप्लाई देगा, जबकि भारत-चीन मैन्युफैक्चरिंग और टेक्नोलॉजी में बड़ा योगदान दे सकते हैं।

3. डिफेंस और टेक्नोलॉजी में बढ़ेगा सहयोग: अमेरिका का अभी तक डिफेंस क्षेत्र में बोलबाला है। भारत, रूस और चीन के साथ आने से यह दबदबा कम हो सकता है। भारत तेजी से मेक इन इंडिया के जरिये डिफेंस में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहा है। रूस पहले से ही डिफेंस टेक्नोलॉजी का मास्टर है। चीन के पास मैन्युफैक्चरिंग की क्षमता है और भारत के पास R&D और युवा इंजीनियर्स। अगर तीनों मिलते हैं तो यह डिफेंस, एयरोस्पेस और साइबर सिक्योरिटी में वेस्ट की मोनोपॉली तोड़ सकते हैं।

4. डेवलपिंग देशों के लिए विकल्प: अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के कई विकासशील देश वेस्ट पर निर्भर हैं। भारत-रूस-चीन का गठजोड़ इन देशों को नया विकल्प देगा, जहां उन्हें ज्यादा निवेश और कम शर्तों के साथ आर्थिक सहयोग मिल सकेगा।

हालांकि, चुनौतियां भी कम नहीं

भारत-रूस पुराने मित्र हैं लेकिन चीन के साथ भारत के संबंध हमेशा ठीक नहीं रहे हैं। भारत ने जब भी चीन पर भरोसा किया है, उसे ड्रैगन ने दगा दिया है। भारत इस बात को भली-भांति समझ रहा है। इसलिए वह हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहा है। इसलिए इन तीनों देशों का साथ आना और गठजोड़ बनना इतना भी आसान नहीं है।

तिकड़ी बनने की राह में 4 अड़चन

  1. भारत-चीन रिश्ते: सीमा विवाद और राजनीतिक अविश्वास इस साझेदारी को कमजोर कर सकते हैं।
  2. रूस पर वेस्ट के प्रतिबंध: रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध उसके लिए लंबे समय तक चुनौती बने रहेंगे।
  3. नीतिगत अंतर: तीनों देशों की आर्थिक नीतियां अलग-अलग हैं। भारत लोकतांत्रिक है, चीन कम्युनिस्ट और रूस केंद्रीकृत।
  4. ग्लोबल ट्रस्ट: कई देश चीन पर भरोसा नहीं करते, तो वहीं रूस की इमेज भी युद्ध से प्रभावित हुई है।

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आलोक कुमार author

आलोक कुमार टाइम्स नेटवर्क में एसोसिएट एडिटर के पद पर कार्यरत हैं। इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल और प्रिंट मीडिया में उन्हें 17 वर्षों से अधिक का व्यापक अनुभव ह...और देखें

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