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Dalai Lama Story: कैसे 23 वर्षीय भिक्षु ने ड्रैगन साम्राज्य को दी मात, चीन के बिछाए जाल से यूं बच निकले दलाई लामा

17 मार्च 1959 को रात 10 बजे से ठीक पहले दलाई लामा एक सैनिक की वर्दी में चुपचाप महल से निकले। उनके साथ उनकी मां, भाई-बहन, शिक्षक, वरिष्ठ मंत्री भी थे। फिर क्या-क्या हुआ और वह भारत कैसे पहुंचे, ये दास्तां बेहद दिलचस्प है।

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Dalai Lama: दलाई लामा का आज 90वां जन्मदिन है और धर्मशाला में भारी बारिश के बावजूद 14वें दलाई लामा का जन्मदिन मनाने के लिए हजारों लोग एकत्र हुए। यह आयोजन ऐसे वक्त हुआ है जब पिछले कुछ दिनों से यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि दलाई लामा संस्था को समाप्त कर दिया जाएगा। उनके जन्मदिन पर विभिन्न तिब्बती बौद्ध संप्रदायों के प्रतिनिधियों, स्कूली बच्चों, विभिन्न देशों के नर्तकों और गायकों और दुनिया भर से बौद्ध धर्मावलंबियों ने भाग लिया। दलाई लामा का जीवन किसी फंतासी से कम नहीं है, किस तरह वह तिब्बत में चीन के चंगुल से निकलकर भागे और दुनिया ड्रैगन के साम्राज्य और उसकी साजिशों को मुंह चिढ़ाते रहे, इसकी कहानी बेहद दिलचस्प है।

चीन के चंगुल से कैसे बच निकले दलाई लामा

एक ऐसा निमंत्रण जो दरअसल जाल था

तिब्बत से दलाई लामा का पलायन रातों-रात नहीं हुआ। 1950 से ही तिब्बत पर चीन की पकड़ मजबूत होती जा रही थी। चीन ने तिब्बती स्वायत्तता की गारंटी दी, लेकिन ऐसा सिर्फ कागजों पर ही हुआ। 13वें दलाई लामा ने दशकों पहले चेतावनी दे दी थी। 1959 तक चीनी हमले रोजमर्रा की जिदगी बन गए थे। फिर चीन से एक निमंत्रण आया। चीनी जनरल झांग चेनवु ने दलाई लामा को सैन्य मुख्यालय में एक डांस शो में शिरकत करने के लिए बुलाया। तिब्बती लोग जानते थे कि इसका क्या मतलब है।

17 मार्च 1959 को सैनिक वर्दी में महल से निकले

17 मार्च 1959 को रात 10 बजे से ठीक पहले दलाई लामा एक सैनिक की वर्दी में चुपचाप महल से निकले। उनके साथ उनकी मां, भाई-बहन, शिक्षक, वरिष्ठ मंत्री भी थे। उन्होंने काइचू नदी को पार किया, हिमालय में गए, रात के दौरान यात्रा करते रहे और दिन में छिपे रहे ताकि चीनी सैनिक उन्हें पकड़ न सकें। उनके पास कोई विस्तृत नक्शे नहीं थे। सिर्फ लोगों से सुनी जानकारियों पर आग बढ़ते रहे। लोककथाओं के अनुसार, भिक्षुओं की प्रार्थनाओं ने बादलों और धुंध पैदा की जिसने उन्हें चीनी विमानों से छिपा दिया।

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