संसद में राष्ट्रपति की भूमिका गहरी संवैधानिक गरिमा से युक्त होती है। वे विधायी प्रक्रिया को गति देने वाले, उसे वैधानिक मान्यता प्रदान करने वाले तथा लोकतंत्र की मूल आत्मा को संरक्षित रखने वाली संवैधानिक प्रमुख हैं। राष्ट्रपति की उपस्थिति संसद में एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में देखी जाती है, जो विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच समन्वय स्थापित करने में सहायक होती है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रविवार को भारतीय संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा के लिए 4 सदस्यों को मनोनीत किया। इन चार सदस्यों में उज्ज्वल देवराव निकम, सी. सदानंदन मास्टर, हर्षवर्धन श्रृंगला और डॉ. मीनाक्षी जैन शामिल हैं। यह नियुक्तियां नामित सदस्यों की सेवानिवृत्ति के कारण रिक्त हुए स्थानों को भरने के लिए की गई हैं। गृह मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना (एस.ओ. 3196(ई) के अनुसार, 12 जुलाई 2025 को इसका ऐलान किया गया। राष्ट्रपति द्वारा नामित ये चारों सदस्य अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभावशाली और प्रतिष्ठित हस्तियां हैं। इनसे अपेक्षा की जा रही है कि ये राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर संतुलित, गहन और व्यावहारिक दृष्टिकोण के साथ राज्यसभा की कार्यवाही में योगदान देंगे। अब सवाल ये है कि आमतौर पर राज्यसभा में सदस्य चुनाव के जरिए जाते हैं, लेकिन इन चारों को सीधे राष्ट्रपति ने मनोनीत करते हुए राज्यसभा में सीधे एंट्री दिला दी है। राष्ट्रपति के पास ऐसी कौन सी शक्तियां संविधान ने दी है, जिसके जरिए वो नियुक्तियां कर पाईं हैं। आइए जानते हैं...
राज्यसभा के लिए 4 सदस्यों को राष्ट्रपति ने किया मनोनीत
राष्ट्रपति के पास मनोनीत करने का विशेष अधिकार
भारत में राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा सदस्यों का मनोनयन संविधान के अनुच्छेद 80 के तहत किया जाता है। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को यह विशेषाधिकार प्रदान करता है कि वे कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा और अन्य विशिष्ट क्षेत्रों में विशेष योगदान देने वाले व्यक्तियों को राज्यसभा में नामित कर सकें। राष्ट्रपति का यह विशेषाधिकार भारतीय लोकतंत्र में संवैधानिक संतुलन और बौद्धिक समृद्धि बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह सुनिश्चित करता है कि केवल राजनेता ही नहीं, बल्कि देश के श्रेष्ठ बुद्धिजीवी और विशेषज्ञ भी संसद में अपनी आवाज रख सकें।
अनुच्छेद 80(1)(a):राज्यसभा में 12 सदस्य ऐसे होंगे जिन्हें राष्ट्रपति नामित करेंगे।
अनुच्छेद 80(3): राष्ट्रपति केवल उन्हीं व्यक्तियों को नामित कर सकते हैं जो कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा आदि में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखते हों।
मनोनयन का उद्देश्य
राज्यसभा में विविध विशेषज्ञता लाना, ताकि विधायी चर्चाओं में गुणवत्ता और गहराई आए।
संसद के उच्च सदन में गैर-राजनीतिक विशेषज्ञों की भागीदारी सुनिश्चित करना।
नीतिगत निर्णयों में विविध दृष्टिकोण और व्यावहारिक अनुभव को शामिल करना।
नामित सदस्यों का परिचय और विशेष योगदान
उज्ज्वल देवराव निकम- भारत के वरिष्ठ और चर्चित विशेष लोक अभियोजक। उन्होंने 26/11 मुंबई आतंकी हमले के मामले में आतंकवादी अजमल कसाब को फांसी की सजा दिलवाने में अहम भूमिका निभाई थी। निकम का कानूनी करियर आतंकवाद, संगठित अपराध और हाई-प्रोफाइल मामलों में मजबूत पैरवी के लिए जाना जाता है।
हर्षवर्धन श्रृंगला- भारत के पूर्व विदेश सचिव और वरिष्ठ राजनयिक। उन्होंने अमेरिका और बांग्लादेश में भारत के राजदूत के रूप में कार्य किया और भारत की विदेश नीति के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी नियुक्ति से राज्यसभा में अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और रणनीतिक मामलों पर विशेषज्ञता को मजबूती मिलेगी।
डॉ. मीनाक्षी जैन- एक प्रसिद्ध इतिहासकार और शिक्षाविद्, जिनका कार्यक्षेत्र भारतीय संस्कृति, परंपरा और इतिहास की पुनर्परिभाषा से जुड़ा रहा है। वे अकादमिक जगत में भारतीय दृष्टिकोण से इतिहास लेखन की पक्षधर रही हैं।
सी. सदानंद मास्टर- सामाजिक सेवा के क्षेत्र में दशकों से सक्रिय, उन्होंने समाज के वंचित वर्गों के उत्थान के लिए कार्य किया है। विशेषकर शिक्षा और ग्रामीण विकास में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा है।
भारत सरकार का आदेश (फोटो- Indian Govt)
राज्यसभा में राष्ट्रपति की प्रमुख शक्तियां और भूमिकाएं
सिर्फ सदस्यों को मनोनीत करने की शक्ति ही राष्ट्रपति के पास नहीं है, बल्कि उनके पास कई और विशेष शक्तियां हैं, जो उन्हें संविधान से मिली है, जिसमें सत्र बुलाने, स्थगित करने, संयुक्त बैठक बुलाने की शक्ति शामिल है।
सदस्यों का मनोनयन (Nomination of Members)
-संविधान का अनुच्छेद 80(1)(a) और 80(3)
-राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वे 12 सदस्यों को राज्यसभा में नामित करें।
-ये सदस्य कला, साहित्य, विज्ञान, और समाज सेवा जैसे क्षेत्रों में विशेष ज्ञान या अनुभव रखने वाले होते हैं।
सत्र बुलाने, स्थगित करने और भंग करने की शक्ति
-अनुच्छेद 85
-राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) का सत्र बुला सकते हैं।
-वे संसद के सत्र को स्थगित (prorogue) कर सकते हैं और आवश्यकता होने पर संयुक्त बैठक बुला सकते हैं (अनुच्छेद 108)।
संयुक्त बैठक बुलाने की शक्ति
-अनुच्छेद 108
-यदि कोई सामान्य विधेयक (Ordinary Bill) लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पास नहीं हो पा रहा है, तो राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकते हैं।
राज्यसभा को विशेष अधिकार देना (Power to Empower Rajya Sabha)
-अनुच्छेद 249
-राष्ट्रपति, राज्यसभा के विशेष प्रस्ताव पारित होने पर संसद को किसी राज्य के विषय सूची (State List) में दर्ज विषय पर कानून बनाने का अधिकार दे सकते हैं यदि राष्ट्रीय हित में आवश्यक हो।
राज्यसभा को अनुमति देकर अध्यादेश जारी करना
-अनुच्छेद 123
-जब संसद का सत्र नहीं चल रहा हो, तो राष्ट्रपति अध्यादेश (Ordinance) जारी कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए राज्यसभा की पूर्व/बाद अनुमति और समर्थन आवश्यक होता है।
राष्ट्रपति का अभिभाषण
-अनुच्छेद 87
-राष्ट्रपति हर वर्ष संसद के पहले सत्र (आमतौर पर बजट सत्र) की शुरुआत में राज्यसभा और लोकसभा दोनों को संयुक्त रूप से संबोधित करते हैं।
राज्यसभा के प्रस्तावों पर कार्यवाही
-राज्यसभा द्वारा पारित विशेष प्रस्ताव, जैसे अनुच्छेद 312 (अखिल भारतीय सेवाओं का निर्माण) आदि के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक होती है।
संसदीय प्रणाली में राष्ट्रपति की अहम भूमिका
राज्यसभा में राष्ट्रपति की शक्तियां भारत के संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों के अंतर्गत दी गई हैं। राष्ट्रपति का राज्यसभा से जुड़ा हुआ भूमिका मुख्यतः सांविधानिक और औपचारिक होती है, लेकिन यह संसदीय प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारतीय संसद देश की विधायिका की सर्वोच्च संस्था है, जिसमें राष्ट्रपति, राज्यसभा और लोकसभा शामिल हैं। यद्यपि आमतौर पर संसद का अर्थ लोकसभा और राज्यसभा के द्विसदनीय ढांचे से लिया जाता है, किंतु संविधान के अनुच्छेद 79 में स्पष्ट किया गया है कि राष्ट्रपति भी संसद का अभिन्न अंग हैं। संसद में राष्ट्रपति की भूमिका मुख्यतः औपचारिक, संवैधानिक और विधायी प्रक्रिया को दिशा देने वाली होती है। वे संसद की संप्रभुता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रतीक माने जाते हैं।