5 साल बाद जयशंकर की चीन यात्रा, 2020 में गलवान संघर्ष से अब तक भारत-चीन रिश्तों में आया कितना उतार-चढ़ाव?

भारत-चीन रिश्तों में कितना उतार-चढ़ाव? (Photo: PTI)
Jaishankars China Visit In 5 Years: लंबे समय के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर चीन की यात्रा पर जा रहे हैं। यह पांच वर्षों में उनकी पहली चीन यात्रा है। भारत और चीन के बीत 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद से रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं और दोनों देश बिगड़े संबंधों को सुलझाने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। यह यात्रा इसलिए भी अहम है क्योंकि यह पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान पाकिस्तान को चीन द्वारा सैन्य समर्थन दिए जाने के कुछ हफ्ते बाद हो रही है। इस हमले में 26 लोग मारे गए थे। भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए ऑपरेशन सिंदूर चलाया जिसके तहत पीओके और पाकिस्तान स्थित 9 आतंकी संगठनों को निशाना बनाया गया था। जयशंकर के दौरे के मद्देनजर भारत-चीन संबंधों के 5 वर्षों पर एक नजर डालते हैं।
ऑपरेशन सिंदूर के मद्देनजर अहम दौरा
दो देशों की यात्रा पर गए जयशंकर अपनी सिंगापुर यात्रा खत्म करने के बाद रविवार शाम को बीजिंग पहुंचे। चीन में जयशंकर मंगलवार को तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेंगे और अपने समकक्ष वांग यी के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी करेंगे। जयशंकर का दौरा इस मायने में भी अहम है कि हाल ही में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को सबक सिखाने के साथ ही चीन को भी साफ संदेश दे दिया था। भारतीय सेना ने कहा था कि पाकिस्तान से सैन्य संघर्ष के दौरान पड़ोसी देश को तुर्की और चीन दोनों देशों से सैन्य मदद मिली थी। हालांकि, चीन ने इसे नकारने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा था कि उसने पाकिस्तान को किसी भी तरह की मदद नहीं दी।
2020 में गलवान घाटी में झड़प
मई 2020 में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सैन्य गतिरोध के साथ भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय संबंध छह दशक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थे। 15 जून को सात घंटे तक चले इस भीषण संघर्ष में एक कमांडिंग ऑफिसर सहित 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। हालांकि बीजिंग ने शुरुआत में सिर्फ अपने हताहत सैनिकों की बात स्वीकार की, संख्या का खुलासा नहीं किया था। लेकिन रिपोर्ट्स के अनुसार, चीनी सेना को भारत की तुलना में बड़ा नुकसान हुआ था और उसके कई सैनिक हताहत हुए थे।
45 वर्षों में सबसे घातक संघर्ष, फिर बातचीत का दौर
45 वर्षों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के बीच पहला घातक संघर्ष था, जिससे द्विपक्षीय संबंधों में भारी गिरावट आई। संघर्ष शुरू होने के चार साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अक्टूबर 2024 में कजान में एक शिखर सम्मेलन के दौरान सीमा मुद्दों को सुलझाने का फैसला किया। इसके तुरंत बाद भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर गश्त की व्यवस्था को लेकर सहमति जताई ताकि देपसांग और डेमचोक में गतिरोध को हल किया जा सके। दोनों देश अपने सैन्य विवाद को सुलझाने के लिए एक समझौते पर बातचीत पर भी राजी हुए। इस संबंध में कई दौर की बातचीत हो चुकी है और सीमा पर शांति बनी हुई है।
भारत के खिलाफ चीन का पाकिस्तान को समर्थन
हालांकि दोनों देश 2020 से सैन्य गतिरोध से उपजे तनाव को कम करने की कोशिश में हैं, लेकिन चीनी सेना ने भारत के साथ हालिया संघर्ष के दौरान पाकिस्तान का खुला समर्थन कर अपने इरादे जाहिर कर दिए। चीन न सिर्फ 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान के रुख के समर्थन में सामने आया, बल्कि उसने पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकवादी बुनियादी ढांचे को निशाना बनाकर भारत द्वारा शुरू किए गए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को सैन्य मदद भी दी। इसे लेकर भारतीय सेना ने उसे आईना भी दिखाया।
भारत के उप-सेना प्रमुख राहुल आर. सिंह ने साफ कहा कि पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले 81 प्रतिशत सैन्य उपकरण चीन द्वारा निर्मित हैं। उन्होंने कहा- मुझे लगता है कि 'ऑपरेशन सिंदूर' से कुछ सबक जरूर सीखने चाहिए। पहला, एक सीमा, दो दुश्मन। तो हमने पाकिस्तान को एक तरफ देखा। लेकिन दुश्मन दो थे, और अगर मैं कहूं तो असल में चार, या तीन। पाकिस्तान ही सबसे आगे था। चीन, पाकिस्तान को हर संभव मदद दे रहा था।
चीन ने पाकिस्तान को दिया खुला समर्थन
वहीं, चीन ने पहलगाम आतंकवादी हमले की निंदा करते हुए कहा कि वह सभी प्रकार के आतंकवाद का विरोध करता है, लेकिन उसने यह भी कहा कि वह अपने करीबी सहयोगी पाकिस्तान की संप्रभुता और सुरक्षा की रक्षा में उसका समर्थन करता है। मई में तीन दिनों के सैन्य संघर्ष के बाद नई दिल्ली और इस्लामाबाद द्वारा युद्धविराम की घोषणा के बाद भी चीन ने खुले तौर पर पाकिस्तान को उसकी राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा में समर्थन देने की कसम खाई। चीन के विदेश मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है कि वांग ने पाकिस्तान को एक अडिग मित्र बताया और दोनों देशों के बीच सदाबहार रणनीतिक सहयोग साझेदारी को गहरा करने का संकल्प लिया।
राजनाथ-डोभाल के बाद जयशंकर पर नजरें
पिछले कुछ वर्षों में भारत और चीन के बीच उतार-चढ़ाव भरे संबंधों को देखते हुए, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या जयशंकर की यात्रा दोनों देशों के बीच किसी रचनात्मक बातचीत का मार्ग प्रशस्त करती है। विदेश मंत्री की यह यात्रा जून में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की यात्राओं के बाद हो रही है। राजनाथ ने अपने दौरे में साफ तौर पर जता दिया था कि भारत आतंकवाद पर सख्ती से कार्रवाई करेगा। अब नजरें जयशंकर की चीन यात्रा पर है, वह अपने चीनी समकक्ष के साथ मुलाकात करेंगे और मौजूदा उलझे हालात में भारत का नजरिया साफ करेंगे।
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