सीपी राधाकृष्णन की जीत से BJP ने किस तरह खुद को फिर साबित किया गठबंधन राजनीति की चैंपियन? एक तीर से साधे कई निशाने

बीजेपी ने फिर मारी गठबंधन की सियासत में बाजी (पीटीआई)
महाराष्ट्र के राज्यपाल और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन ने 9 सितंबर को भारत के उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी को आसानी से हरा दिया। तीन क्षेत्रीय दलों के मतदान से दूर रहने के कारण नतीजे पूरी तरह एनडीए के पक्ष में रहे। दरअसल, भारत के उपराष्ट्रपति पद का चुनाव राज्यसभा के अगले सभापति के चुनाव से कहीं बढ़कर था। इस नतीजे से निकट भविष्य में राष्ट्रीय राजनीति की उभरती रूपरेखा के संकेत मिलते हैं। राधाकृष्णन को 452 वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी को 300 वोट मिले। खास बात ये है कि निर्वाचक मंडल में एनडीए के सदस्यों की संख्या 427 है, लेकिन राधाकृष्णन को विपक्षी खेमे से हुई भारी क्रॉस-वोटिंग का फायदा मिला। इस चुनाव ने बताया की बीजेपी ने खुद को किस तरह गठबंधन राजनीति का किंग साबित किया है।
विपक्ष के हमले की धार कमजोर
भारतीय जनता पार्टी का आकलन है कि भारत के उपराष्ट्रपति चुनाव के नतीजे न सिर्फ आगामी बिहार विधानसभा चुनावों के लिए एक संदेश होगा, बल्कि केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार की स्थिरता के सवाल को भी खत्म करेगा। इन नतीजों से बीजेपी ने बिहार में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की यात्रा के दौरान विपक्ष के शक्ति प्रदर्शन को भोथरा कर दिया। विपक्ष की चुनौती को स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान से पहले एनडीए सांसदों की एक बैठक की कमान संभाली। उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए बीजेपी ने पुख्ता रणनीति बनाई थी।
उपराष्ट्रपति पद के चुनाव नतीजों से क्या संदेश मिला, कहां मात खा गया विपक्ष, बीजेपी को क्या-क्या फायदे?
विपक्ष में दरार
एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन को गठबंधन के 427 वोटों के मुकाबले 452 वोट मिले, जिससे पता चलता है कि विपक्षी खेमे में जबरदस्त क्रॉस-वोटिंग हुई है। विपक्षी उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट मिले, जो कांग्रेस के 315 वोटों से 15 कम है, इससे उसके कवच में कमजोरी सामने आ गई।
गठबंधन की कमान
बीजेपी ने अपनी गठबंधन सरकार की स्थिरता का संदेश दिया। बीजेडी, बीआरएस और अकाली दल के मतदान से दूर रहने और वाईएसआर कांग्रेस के समर्थन ने यह दिखाया कि बीजेपी एक मजबूत स्थिति पर भरोसा कर सकती है और उसका गठबंधन प्रबंधन मजबूत है।
राज्यसभा पर नियंत्रण
जगदीप धनखड़ के विपरीत सीपी राधाकृष्णन एक कट्टर बीजेपी कार्यकर्ता हैं। पार्टी को उम्मीद है कि वह सरकार के एजेंडे का ध्यान रखेंगे, राज्यसभा में लोकसभा जैसा कामकाज सुनिश्चित करेंगे और संसद के हंगामेदार सत्रों की उम्मीदों के बीच सही फैसला लेंगे।
बीजेपी का अगला अध्यक्ष
आदिवासी पृष्ठभूमि से आने वाले राष्ट्रपति और ओबीसी पृष्ठभूमि से आने वाले उप-राष्ट्रपति के साथ, कयास लग रहे हैं कि अगला भाजपा अध्यक्ष पार्टी के अगड़ी जाति से हो सकता है। इसके साथ ही दक्षिण से राधाकृष्णन का चुनाव दक्षिण खासकर तमिलनाडु में बीजेपी की मजबूती की वजह बन सकता है।
गठबंधन की सियासत की बीजेपी चैंपियन
240 लोकसभा सांसदों के साथ केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार स्थिरता के लिए तेलुगु देशम पार्टी (TDP) और जनता दल (U) पर निर्भर है। बीजू जनता दल (BJD), भारत राष्ट्र समिति (BRS) और अकाली दल ने उपराष्ट्रपति चुनाव से दूरी बनाए रखी। उनके मतदान से दूर रहने से स्पष्ट रूप से बीजेपी को फायदा हुआ। हालांकि इन तीनों दलों के लोकसभा में बहुत ज्यादा सांसद नहीं हैं, फिर भी उन्होंने मतदान से दूरी बनाकर इस बात के संकेत दिए कि भाजपा उन पर एक मजबूत विकल्प के रूप में भरोसा कर सकती है। सबसे बड़ी सफलता रही वाईएसआर कांग्रेस को अपने पाले में करना। जगनमोहन रेड्डी का समर्थन बीजेपी के गठबंधन प्रबंधन की चुनौतियों के लिए मनोबल बढ़ाने वाला है। कुल मिलाकर बीजेपी ने एक बार फिर साबित किया कि वह गठबंधन की सियासत में महारत रखती है।
हालांकि उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान गुप्त रखा जाता है, बीजेपी खेमा महाराष्ट्र के किसी क्षेत्रीय दल के अपने पाले में आने की उम्मीद कर रहा था। यहां एकनाथ शिंदे ने पार्टी को असमंजस में डाल रखा है। वहीं, अकाली दल ने चुनाव में भाग न लेकर पंजाब में भाजपा के साथ गठबंधन के लिए बातचीत की अटकलों को भी बल दिया।
राधाकृष्णन के चुने जाने से क्या फायदा?
बीजेपी ने काफी मंथन के बाद राधाकृष्णन का नाम तय किया था जिनकी पृष्ठभूमि एक बीजेपी कार्यकर्ता की रही है और जो नीचे से उठकर आगे बढ़े हैं। अपने पूर्ववर्ती जगदीप धनखड़, जिन्होंने जनता दल और कांग्रेस में वर्षों बिताए थे, उनके विपरीत राधाकृष्णन चटकीले भगवा रंग के हैं। बीजेपी को उम्मीद होगी कि राधाकृष्णन राज्यसभा में सरकार के एजेंडे के प्रति संवेदनशील होंगे। राज्यसभा में राधाकृष्णन के अध्यक्ष बनने से बीजेपी को संसद के ऊपरी सदन में भी लोकसभा जैसी कार्यवाही की उम्मीद होगी। 2029 के आम चुनावों से पहले अगले तीन वर्षों में होने वाले विधानसभा चुनावों की पृष्ठभूमि में भगवा खेमे में यह आकलन है कि संसद में कड़वे और तूफानी दिन आने वाले हैं। दोनों सदनों में नियंत्रण होने से बीजेपी को बड़ी राहत मिलेगी।
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