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ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट भारत के लिए क्यों जरूरी और इसको लेकर राजनीतिक विरोध क्यों हो रहा

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट को लेकर इन दिनों काफी चर्चा है। यह प्रोजेक्ट हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की सामरिक और आर्थिक ताकत को नई ऊंचाई देगी। खासतौर पर मलक्का स्ट्रेट से करीबी के चलते भारत यहां से चीन पर कड़ी नजर रख पाएगा। चीन का 80 फीसद पेट्रोल आयात मलक्का स्ट्रेट से ही होकर जाता है। चलिए जानते हैं इसके बारे में सबकुछ -
Great Nicobar Project

ग्रेटर निकोबार प्रोजेक्ट से जुड़े प्रश्न, चिंताएं और सामरिक महत्व

हिंद महासागर की लहरें सियासत और सियासतदानों को भी हिलाती हैं। खासतौर पर बात निकोबार द्वीप समूह की हो और वह भी ऐसी जगह की, जहां से मलक्का स्ट्रेट महज 900 किमी दूर हो तो फिर दुनियाभर हलचल होती है। हो भी क्यों नहीं, इसी मलक्का स्ट्रेट से ग्लोबल ट्रेड का 25 फीसद हिस्सा गुजरता है। यहां तक कि चीन के तेल आयात का 80 फीसद हिस्सा इसी मलक्का स्ट्रेट से होकर जाता है। जी हां, बात भारत की बड़ी महत्वकांक्षी परियोजना 'ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट' की ही हो रही है। भारत के सबसे दक्षिणी हिस्से 'इंदिरा प्वाइंट' से ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट की दूरी मजह 9 किमी और इंडोनेशिया के आचे प्रांत से सिर्फ 210 किमी है। 72 हजार करोड़ रुपये की लागत से बनने वाला ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट न सिर्फ भारत की आर्थिक क्षमता को नई दिशा देगा, बल्कि हिंद-प्रशांत (Indo-Pacific) क्षेत्र में भारत को रणीनीतिक मजबूती भी देगा। यह प्रोजेक्ट Indo-Pacific क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को भी चुनौती देगा, इसलिए इस प्रोजेक्ट पर चीन की भी कड़ी नजर है।

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट क्या है?

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट कुल 166 स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र में फैला होगा। यह कितना विशाल प्रोजेक्ट है, इस बात का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि यह ग्रेट निकोबार के कुल क्षेत्रफल (910 वर्ग किमी) का लगभग 10 फीसद है। इसमें चार प्रमुख घटक हैं -

  • ट्रांसशिपमेंट पोर्ट - गालाथेआ बे (Galathea Bay) में विश्वस्तरीय बंदरगाह, जो सालाना 14.5 मिलियन TEUs माल संभाल सकेगा।
  • इंटरनेशनल एयरपोर्ट – 3,300 मीटर रनवे वाला ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट, जहां बड़े-बड़े जहाज उतर पाएंगे।
  • ऊर्जा संयंत्र - 450 मेगावाट का गैस और सौर ऊर्जा आधारित बिजली उत्पादन केंद्र।
  • टाउनशिप - लगभग 65,000 लोगों के रहने के लिए आधुनिक सुविधाओं से लैस एक बस्ती, जिसमें वर्कर और माइग्रेंट रहेंगे।

कब शुरू हुआ ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट?

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट की शुरुआत साल 2021 में तब हुई, जब केंद्र सरकार ने इसे मंजूरी दी। इसे अंडमान एंड निकोबार आयलैंड इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (ANIIDCO) बना रहा है। इसका प्रोजेक्ट को अगले 30 वर्षों में चरणबद्ध तरीके से पूरा किया जाएगा।

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट का आर्थिक दृष्टिकोण से महत्व

भारत सरकार के अनुमान के मुताबिक साल 20240 तक ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट से सालाना 30 हजार करोड़ का रेवेन्यू जेनरेट होगा। यही नहीं यहां पर करीब 50 हजार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार भी पैदा होंगे। यह परियोजना भारत सरकार की सागरमाला योजना के अनुरूप है, जिसके तहत तटीय क्षेत्रों में आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जाता है। सिंगापुर और हांगकांग जैसे वैश्विक मॉडल भारत के इस प्रोजेक्ट के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ने वाला 'ग्रोथ पोल' बना सकता है। विशेषतौर पर भारत मलक्का स्ट्रेट से गुजरने वाले समुद्री व्यापार पर अपनी पकड़ मजबूत कर सकता है।

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण

भारत के लिए ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट सिर्फ आर्थिक ही नहीं, बल्कि सामरिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है। जैसा कि हमने ऊपर बताया कि यह मलक्का स्ट्रेट के काफी करीब है और यहां से दुनिया का 25 फीसद समुद्री व्यापार होता है। चीन का 80 फीसद पेट्रोलियम इसी मलक्का स्ट्रेट के जरिए आयात होता है। ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट बन जाने पर भारत यहां से मलक्का स्ट्रेट पर नजर रख सकता है। इससे चीन की समुद्री गतिविधियों पर नजर रखना आसान हो जाएगा, जो लगातार हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति बढ़ाने में जुटा हुआ है। चीन के जहाज इसी मलक्का स्ट्रेट को पार करके हिंद महासागर तक पहुंचते हैं। यह प्रोजेक्ट चीन के 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' रणनीति का जवाब देने के लिए भारत का हथियार भी साबित होगा।

यह भारत के लिए सामरिक स्प्रिंगबोर्ड की तरह काम करेगा। यहां से भारतीय नौसेना और वायुसेना तेजी से ऑपरेशन चला सकेंगी। जानकारों के मुताबिक यह परियोजना इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की समुद्री क्षमता को नई ऊंचाई पर ले जाएगी।

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट को लेकर विवाद

भले ही ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट से भारत को बहुत ज्यादा लाभ हों, लेकिन राजनीति तो अपनी डेढ़ चाल चलती ही है। सामरिक और आर्थिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण इस मामले में भी राजनीति होना तय था और हुई भी। प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इस प्रोजेक्ट को अधपका और गलत तरीके से तैयार किया गया दुस्साहसपूर्ण कदम बताया। साथ ही पर्यावरण और आदिवासी अधिकारों का मुद्दा भी उठाया है। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसे 'राष्ट्रीय मूल्यों के साथ विश्वासघात' करार दिया। उन्होंने एक अंग्रेजी अखबार में लेख लिखकर इसके पर्यावरणीय चिंताओं को उजागर किया है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी इस परियोजना का विरोध किया है। इधर भाजपा ने पलटवार करते हुए इस परियोजना को भारत की रणनीतिक जरूरत करार दिया और आरोप लगाया कि कांग्रेस देश के हितों के खिलाफ आवाज उठा रही है।

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट से पर्यावरणीय और आदिवासी चिंताएं

एक तरफ ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट भारत को सामरिक और आर्थिक लाभ देने वाला साबित हो सकता है। सरकार की यह महत्वकांक्षी परियोजना देश को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बढ़त दे सकती है। लेकिन दूसरी ओर इसके पर्यावरणीय व मानवीय असर को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। इस प्रोजेक्ट के चलते ग्रेट निकोबार द्वीप में मौजूद एशिया की सबसे समृद्ध जैव विविधता खतरे में पड़ जाएगी। 'द ग्रेट निकोबार बेटरियल' के लेखक पंकज सेखसरिया का कहना है कि गालाथेआ बे हिंद महासागर दुनिया की सबसे बड़ी समुद्री कछुआ प्रजाति 'जायंट लेदरबैक' का प्रमुख घोंसला स्थल है। इस परियोजना से उन्हें खतरा है। यहां बड़े पैमाने पर ड्रेजिंग और निर्माण कार्य से कोरल रीफ और मछली की प्रजातियों के लिए भी खतरा पैदा होगा। इसके अलावा यह इलाका भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए संवेदनशील है। यहां के रामसर वेटलैंड में मौजूद मैंग्रोव खत्म होने से प्राकृतिक सुरक्षातंत्र खत्म हो जाएगा।

आदिवासी समुदाय पर असर

यहां पर हजारों वर्षों से शॉम्पेन जनजाति के लोग रहते आए हैं, जो इस प्रोजेक्ट से सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। यहां पर शॉम्पेन जनजाति के करीब 300-400 लोग रहते हैं। शॉम्पेन जनजाति के लोगों का जीवन जंगल और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है, जो इस प्रोजेक्ट से खतरे में पड़ जाएगा। इस प्रोजेक्ट के तहत इस जनजाति के लोग 130 स्क्वायर किलोमीटर के अपने पूर्वजों की धरती और पवित्र स्थानों को छोड़ने को मजबूर होंगे। यह लोग बाहरी संपर्क में नहीं रहे हैं, उनकी फ्लू व खसरा जैसी बीमारियों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं हुई है। ऐसे में वहां ऐसे प्रोजेक्ट से उनका अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है।

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Digpal Singh author

साल 2006 से पत्रकारिता के क्षेत्र में हैं। शुरुआत में हिंदुस्तान, अमर उजाला और दैनिक जागरण जैसे अखबारों में फ्रीलांस करने के बाद स्थानीय अखबारों और मै...और देखें

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