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Energy Drinks Ban: बच्चों के लिए कैसे खतरनाक हैं एनर्जी ड्रिंक्स, ब्रिटेन में क्यों लगाया जा रहा बैन, बता रहे हैं एक्सपर्ट

Why Energy Drinks Are Bad For Children: यूके ने बच्चों के लिए हाई-कैफीन एनर्जी ड्रिंक्स पर बैन का फैसला किया है। लेकिन ऐसा क्यों किया गया है? क्या ये सच में बच्चों के लिए हानिकारक हैं, क्योंकि डॉक्टर और हेल्थ एक्सपर्ट्स भी एनर्जी ड्रिंक को लेकर लगातार लोगों को अलर्ट कर रहे हैं। आज के इस लेख में हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताएंगे। जानें इंडियन पेरेंट्स को भी क्यों इस पर ध्यान देना चाहिए।
बच्चों के लिए एनर्जी ड्रिंक बड़ा खतरा

बच्चों के लिए एनर्जी ड्रिंक बड़ा खतरा

Why Energy Drinks Are Bad For Children: आजकल स्कूल के बच्चों और टीनएजर्स के हाथ में एनर्जी ड्रिंक की कैन देखना आम बात हो गई है। सोशल मीडिया एड्स, क्रिकेट और म्यूजिक इवेंट्स की स्पॉन्सरशिप और सेलिब्रिटीज के प्रमोशन ने इन्हें एक 'कूल ड्रिंक' बना दिया है। बच्चे इन्हें सिर्फ प्यास बुझाने के लिए नहीं बल्कि स्टाइल स्टेटमेंट और फ्रेंड सर्कल में फिट होने के लिए भी पीते हैं। लेकिन डॉक्टर और एक्सपर्ट लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि यह आदत हेल्दी नहीं है, बल्कि गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन रही है।

इसी खतरे को देखते हुए ब्रिटेन ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए हाई-कैफीन एनर्जी ड्रिंक बैन करने का फैसला किया है। यह कदम सिर्फ एक कमर्शियल प्रोडक्ट रोकने के लिए नहीं बल्कि बच्चों की हेल्थ और भविष्य बचाने के लिए उठाया गया है। भारत में 2023 के FSSAI सर्वे भी बताता है कि लगभग 25% शहरी स्कूल जाने वाले बच्चे हफ्ते में एक से ज्यादा बार इन्हें पीते हैं। सवाल यह है कि आखिर यह ड्रिंक बच्चों के लिए इतनी खतरनाक क्यों है?

बच्चों के लिए क्यों बैन की जा रही एनर्जी ड्रिंक्स?

देश एनर्जी ड्रिंक्स पर सिर्फ इसलिए बैन नहीं लगा रहे कि यह एक 'फैशन ड्रिंक' है, बल्कि ऐसा इसलिए कर रहे हैं रिसर्च साफ कह रही है कि यह बच्चों की सेहत पर सीधा अटैक कर रही है। यूरोपियन स्टडीज के अनुसार 68% टीनएजर्स ने पिछले साल कम से कम एक बार एनर्जी ड्रिंक्स का सेवन किया। एनर्जी ड्रिंक्स पर रोक लगाने के पीछे कई ठोस कारण हैं।

  • यूरोपियन डेटा बताता है कि हर तीन में से एक बच्चा इन्हें पीता है।
  • भारत में FSSAI सर्वे (2023) ने पाया कि 25% अर्बन टीनेजर्स हफ्ते में कम से कम एक बार एनर्जी ड्रिंक पीते हैं।
  • कई बच्चे बिना पेरेंट्स की जानकारी के इन्हें खरीदते हैं।
  • सरकारों का मानना है कि अनलिमिटेड सेल और मार्केटिंग बच्चों को असुरक्षित आदतों की ओर धकेलती है।
  • यानी यह कदम किसी बिजनेस को रोकने का नहीं बल्कि एक पब्लिक हेल्थ इंटरवेंशन का हिस्सा है।

एनर्जी ड्रिंक और सॉफ्ट ड्रिंक में क्या फर्क होता है?

बहुत से लोग एनर्जी ड्रिंक को कोला या सोडा जैसा ही समझ लेते हैं, लेकिन दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है। एक कैन एनर्जी ड्रिंक में कैफीन की मात्रा 320 mg प्रति लीटर तक हो सकती है - यानी लगभग 4 कप कॉफी के बराबर। इसमें टॉरिन, ग्वाराना और जिनसेंग जैसे स्टिमुलेंट्स भी होते हैं, जो सीधे दिल, दिमाग और मेटाबॉलिज्म को तेजी से स्टिमुलेट करते हैं।

2022 में जर्नल ऑफि पीडियाट्रिक्ट्स में छपी एक स्टडी में यह सामने आया कि एनर्जी ड्रिंक पीने वाले टीनएजर्स में दिल की धड़कन बिगड़ने या अनियमित होने का खतरा दोगुना बढ़ जाता है। सोडा सिर्फ शुगर और कार्बोनेशन देता है, जबकि एनर्जी ड्रिंक शरीर की नर्वस सिस्टम को झकझोर देती है।

बच्चे ज्यादा संवेदनशील क्यों होते हैं?

  • बच्चों का शरीर अभी डेवलपिंग स्टेज में होता है, इसलिए कैफीन का असर उन पर ज्यादा होता है।
  • बच्चों का मेटाबॉलिज्म धीमा होता है, जिससे कैफीन जल्दी टूटता नहीं।
  • यूरोपियन फूड सेफ्टी अथॉरिटी कहती है कि 40 किलो वजन वाले बच्चे के लिए सिर्फ 100 mg कैफीन (आधा कैन) ही सुरक्षित सीमा से ज्यादा है।
  • इसके परिणाम स्वरूप बच्चों में बेचैनी, अनिद्रा, धड़कन तेज होना और चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं।
  • बच्चों का दिमाग और मानसिक स्थिति विज्ञापनों और दोस्तों के दबाव से जल्दी प्रभावित होती है।

एनर्जी ड्रिंक्स का बच्चों की पर शॉर्ट-टर्म असर

डॉक्टर्स के अनुसार एनर्जी ड्रिंक का असर तुरंत दिखने लगता है। इनके सेवन से बच्चों को कुछ समस्याएं तुरुंत होने लगती हैं जैसे,

  • नींद की समस्या या सोने में कठिनाई
  • पेट दर्द और एसिडिटी
  • तेज धड़कन और ब्लड प्रेशर बढ़ना
  • मूड स्विंग, चिड़चिड़ापन और चिंता
  • थकान और स्टडी में ध्यान की कमी

अमेरिका में सेंटर फॉल डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के डेटा के अनुसार, हर साल 1500 से ज्यादा किशोर एनर्जी ड्रिंक के कारण अस्पताल पहुंचते हैं। भारत में भी बाल रोग विशेषज्ञ लगातार बढ़ते केस रिपोर्ट कर रहे हैं।

एनर्जी ड्रिंक्स का बच्चों की सेहत पर लॉन्ग-टर्म

आपको बता दें कि एनर्जी ड्रिंक पीने से समस्या सिर्फ उसी दिन तक नहीं रहती, बल्कि यह लंबे समय तक बच्चे की सेहत पर डाल सकती है। इसके कई दुष्प्रभाव देखने को मिल सकते हैं,

  • कैफीन एडिक्शन: बच्चे जल्दी इसकी आदत में फंस जाते हैं।
  • मोटापा और डायबिटीज: एक कैन में मौजूद 25–30 ग्राम शुगर से खतरा बढ़ता है।
  • दिल की बीमारियां और मेटाबॉलिक डिसऑर्डर: लगातार सेवन से हार्ट पर दबाव।
  • मानसिक स्वास्थ्य: रिसर्च बताती है कि यह डिप्रेशन और एंग्जायटी से जुड़ा हो सकता है।
  • स्लीप डिसऑर्डर और ग्रोथ रुकना: सालों तक खराब नींद से शरीर और दिमाग का विकास रुक सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट बताती है कि भारत में पहले से ही 1.44 करोड़ बच्चे मोटापे से जूझ रहे हैं, और एनर्जी ड्रिंक इस खतरे को और बढ़ा सकती हैं।

बच्चों की सेहत पर एनर्जी ड्रिंक्स का सामाजिक और व्यवहारिक असर

आपको बता दें कि एनर्जी ड्रिंक का असर सिर्फ शरीर पर नहीं बल्कि सोच और व्यवहार पर भी होता है जैसे,

  • म्यूजिक फेस्टिवल्स और सोशल मीडिया प्रमोशन इन्हें “कूल” दिखाते हैं।
  • 65% बच्चे दोस्तों के दबाव में इन्हें ट्राई करते हैं।
  • पैकेजिंग और सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट बच्चों को गलत मैसेज देते हैं।
  • धीरे-धीरे बच्चे दूध और जूस छोड़कर इन्हें चुनने लगते हैं।
  • यह आदत बच्चों की हेल्दी डाइट और लाइफस्टाइल को बिगाड़ देती है।

बच्चों को एनर्जी ड्रिंक्स देने पर एक्सपर्ट की राय क्या है?

इस विषय पर गहराई से जानने के लिए हमने अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद की बालरोग विशेषज्ञ डॉ. पूजा खन्ना (सीनियर कंसल्टेंट, पीडियाट्रिक्स) से बात की। डॉक्टर कहती हैं,

'एनर्जी ड्रिंक कोई हेल्दी ड्रिंक नहीं बल्कि एक केमिकल स्टिमुलेंट्स हैं जिनके गंभीर खतरे हैं। हम रोज देखते हैं कि बच्चे नींद न आने, दिल की धड़कन तेज होने और चिंता जैसी समस्याओं के साथ हमारे पास आते हैं। लंबे समय में ये मोटापा, हार्ट पर दबाव और कैफीन डिपेंडेंसी पैदा करते हैं। पेरेंट्स को यह समझना होगा कि यह कैजुअल बेवरेज नहीं है। पॉलिसी मेकर्स को भी जल्दी कदम उठाने होंगे, वरना यह बच्चों के लिए बड़ी हेल्थ क्राइसिस बन जाएंगी।'

AIIMS दिल्ली की 2021 की रिपोर्ट भी बताती है कि भारत में एनर्जी ड्रिंक से जुड़ी हेल्थ इमरजेंसी लगातार बढ़ रही है।

अब समझें जरूरी बात

बच्चों की सेहत के लिए एनर्जी ड्रिंक्स के सेवन को लेकर समय रहते कदम उठाना जरूरी है। इनमें मौजूद हाई कैफीन और शुगर बच्चों को धीरे-धीरे एडिक्शन, मोटापा और मानसिक बीमारियों की ओर धकेलते हैं। भारत में भी आंकड़े बताते हैं कि यह समस्या तेजी से बढ़ रही है।

इसलिए पेरेंट्स, स्कूल्स और पॉलिसी मेकर्स को मिलकर बच्चों को समझाना होगा कि असली एनर्जी नींद, हेल्दी डाइट और एक्सरसाइज से आती है, न कि कैफीन और शुगर से।

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