साल 2007 के बाद से ही बसपा का प्रदर्शन लगातार खराब होता जा रहा है। पार्टी का वोट प्रतिशत लगातार गिरता जा रहा है। हालात यह है कि बसपा 2022 के विधानसभा के चुनाव में मात्र एक सीट ही जीत पाई थी, जबकि 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी से एक लोकसभा सीट भी नहीं जीत पाई। इतना ही नहीं बसपा के राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छीनने का भी खतरा मंडराने लगा हैष ऐसे में बसपा के लिए साल 2027 में होने वाला विधानसभा चुनाव उसके अस्तित्व की लड़ाई बन गई है। इसीलिए बसपा ने फैसला किया है कि कांशीराम के पुण्यतिथि पर भीड़ जुटाकर ना सिर्फ विपक्ष को अपनी ताकत दिखाएंगी, बल्कि कार्यकर्ताओं में भी उत्साह भरने की कोशिश भी होगी।
BSP: यूपी की राजनीति में हंसिए पर खड़ी बीएसपी (बहुजन समाज पार्टी) में नई जान फूंकने की बड़ी तैयारी शुरु हो गई है। पार्टी के संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि के मौके पर मायावती एक बड़ी जनसभा को संबोधित कर अपनी ताकत दिखायेंगी। 9 अक्टूबर को लखनऊ में बने कांशीराम स्मारक पर एक बड़ा आयोजन किया जाएगा और दावा है कि उसमें पांच लाख से ज्यादा की भीड़ जुटाने की तैयारी की जा रही है।
बीएसपी (बहुजन समाज पार्टी) में नई जान फूंकने की बड़ी तैयारी शुरु हो गई है। (फोटो सोर्स: PTI)
इस भीड़ के जरिए यह बताने की कोशिश होगी कि बसपा का कैडर अभी भी बसपा के साथ है और बीएसपी 2027 में 2007 वाला करिश्मा दोहराने की ताकत रखती है। इस आयोजन के जरिए मायावती विरोधियों को यह भी बताने की कोशिश करेंगी कि वो अकेले दम पर भी सत्ता में वापसी कर सकती हैं। दरअसल, 7 अगस्त को लखनऊ पार्टी कार्यालय में देश भर के पार्टी के नेताओं की बैठक को संबोधित करते हुए मायावती ने कांशीराम के पुण्यतिथि पर बड़ा आयोजन का ऐलान करते हुए नेताओं को इसकी अलग-अलग जिम्मेदारी सौंप दी।
यूपी में साल 2007 के बाद से ही बसपा का प्रदर्शन लगातार खराब होता जा रहा है। पार्टी का वोट प्रतिशत लगातार गिरता जा रहा है। हालात यह है कि बसपा 2022 के विधानसभा के चुनाव में मात्र एक सीट ही जीत पाई थी, जबकि 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी से एक लोकसभा सीट भी नहीं जीत पाई। इतना ही नहीं बसपा के राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छीनने का भी खतरा मंडराने लगा हैष ऐसे में बसपा के लिए साल 2027 में होने वाला विधानसभा चुनाव उसके अस्तित्व की लड़ाई बन गई है। इसीलिए बसपा ने फैसला किया है कि कांशीराम के पुण्यतिथि पर भीड़ जुटाकर ना सिर्फ विपक्ष को अपनी ताकत दिखाएंगी, बल्कि कार्यकर्ताओं में भी उत्साह भरने की कोशिश भी होगी।
पहले भतीजे फिर ससुर की पार्टी में हुई वापसी
बसपा सुप्रीमों पिछले कुछ सालों से पार्टी में लगातार प्रयोग कर रहीं है। सबसे पहले साल 2019 में अपने भतीजे आकाश आंनद को पार्टी में शामिल किया और पार्टी का नेशनल कोआर्डिनेटर बनाया। इतना ही साल 2023 में अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया। इसके बाद 2024 में मायावती के बाद पार्टी के दूसरे बड़े स्टार-प्रचार भी बने। यह वही समय है जब आकाश आनंद की शादी पार्टी के बड़े कद्दावर नेता और मायावती के करीबी माने जाने वाले राजसभा सांसद अशोक सिद्दार्थ के बेटी से हुई थी।
आकाश ने अपने ससुर के साथ मिलकर पार्टी को आगे बढ़ाने में शिद्दत से जुटे। हालांकि इस दौरान आकाश और उनके ससुर के खिलाफ पार्टी के अंदर विरोध के सुर उठने लगे। शिकायतें मायावती तक पहुंची और मायावती ने दोनों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। हलांकि इसके बाद अब एक-एक कर दोनों की पार्टी में वापसी हो गई है और यह माना जा रहा है कि यह कवायद मायावती ने पार्टी को एकजुट करने और 2027 विधानसभा चुनाव के मद्देनजर किया है।
मायावती का विपक्षी दलों पर पार्टी को कमजोर करने की साजिश का आरोप
आकाश आकाश आनंद की वापसी के साथ ही उन्हे राष्ट्रीय संयोजक घोषित किया गया है। इसके साथ पार्टी के बाकी नेताओं को भी राष्ट्रीय कोआर्डिनेटर और विभिन्न राज्यों के अध्यक्ष बनाया गया है।
इसके बाद आज 7 सितंबर को पार्टी मुख्यालय पर प्रदेश के सभी प्रमुख पदाधिकारियों से जिलों तक के प्रमुख नेताओं की बैठक बुलाई गई थी। बैठक में तय हुआ कि कांशीराम की पुण्यतिथि आयोजन के बाद बसपा अपने चुनावी अभियान को गति देगी। लखनऊ में हुई पार्टी की बैठक में मायावती ने विपक्षी दलों पर पार्टी को कमजोर करने की साजिश रचने का भी आरोप लगाया और कार्यकर्ताओं को इससे सावधान रहने की हिदायत भी दी।
मायावती ने बैठक में जनाधार बढ़ाने की कोशिश और बूथ समितियों के गठन की प्रगति की जानकारी ली। बताया गया कि 80 प्रतिशत लक्ष्य कर लिया गया है। मायावती ने बाकी काम आगे बढ़ाने से पहले कांशीराम की पुण्यतिथि के आयोजन की तैयारी में जुटने के निर्देश दिए। अधिक से अधिक भीड़ जुटाने की हिदायत दी गई। इससे पहले बसपा की सबसे बड़ी रैली 15 जनवरी 2009 को मायावती के जन्मदिन पर हुई थी, उस समय राज्य में बसपा की ही सरकार थी। 15 जनवरी 2014 को लोकसभा चुनाव से पहले राज्य स्तरीय आयोजन किया गया था।