पुणे, जहाँ से सार्वजनिक गणेशोत्सव की परंपरा की शुरुआत हुई थी, अब एक बार फिर इतिहास रचने जा रहा है। लगातार तीसरे वर्ष पुणे के सात प्रमुख गणेश मंडल *के जरिए कश्मीर की वादियों में ‘सार्वजनिक गणेशोत्सव’ मनाया जाएगा*। इस बार 27 अगस्त से शुरू होने वाले गणेशोत्सव में पाँच दिवसीय महोत्सव का आयोजन श्रीनगर, अनंतनाग और कुलगाम में होगा।
शनिवार को पुणे के श्रीमंत भाऊसाहेब रंगारी गणपति मंडल में ढोल-ताशों की गूंज और जयकारों के बीच तीन प्रसिद्ध गणेश प्रतिमाओं की प्रतिकृतियाँ कश्मीरी मंडलों को सौंपी गईं। इनमें केसरीवाडा गणपति, अखिल मंडई मंडल के गणेश और श्रीमंत भाऊसाहेब रंगारी गणेश शामिल हैं।
इस अवसर पर दक्षिण कश्मीर वेसू वेलफेयर कमेटी के अध्यक्ष सनी रैना ने भावुक होकर कहा, “सबको पता है कि 90 के दशक में हालात कैसे थे, जब बहुत से लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा। लेकिन अब 35 साल बाद फिर से यह उत्सव मना पाना बेहद खास और भावुक अनुभव है। बप्पा की कृपा से हम इसे पूरे उत्साह और भव्यता के साथ मनाएँगे।”
श्रद्धा और सांस्कृतिक एकता की इस पहल को आगे बढ़ाते हुए महोत्सव प्रमुख और श्रीमंत भाऊसाहेब रंगारी गणपति मंडल के ट्रस्टी पुनीत बालन ने कहा, “यह पहल महाराष्ट्र के सबसे बड़े उत्सव की सांस्कृतिक ऊर्जा को कश्मीर तक पहुँचाने का प्रयास है। यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता और भक्ति की भावना को महाराष्ट्र से बाहर भी साझा करने की सोच है।”
उन्होंने आगे कहा, “अगर गणेशोत्सव 75 देशों में मनाया जा सकता है तो कश्मीर क्यों नहीं? मेरे कश्मीरी मित्रों ने बताया कि 34 साल बाद यहाँ फिर से बप्पा का उत्सव मनाया जा सकेगा। यह लगातार तीसरा साल है जब कश्मीर में गणेशोत्सव होगा। जैसे पिछले वर्ष तीन स्थानों पर आयोजन हुआ था, वैसे ही इस बार भी श्रीनगर, अनंतनाग और कुलगाम में बप्पा विराजेंगे। आगे की योजना इसे घाटी के और जिलों तक पहुँचाने की है।”
पुनीत बालन ने यह भी कहा कि, “हम सब जानते हैं कि पहले जब आतंकवाद चरम पर था तो हालात बेहद कठिन थे। लेकिन अब परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं। लोग देर रात तक कीर्तन, भजन और भक्ति कार्यक्रमों के साथ उत्साह से गणेशोत्सव मना रहे हैं। आने वाले वर्षों में हमारा लक्ष्य है कि यह उत्सव कश्मीर के और हिस्सों तक पहुँचे।”
इस अनोखी पहल में पुणे के सात प्रमुख मंडल—श्रीमंत भाऊसाहेब रंगारी गणपति, कसाबा गणपति, अखिल मंडई मंडल, तांबडी जोगेश्वरी, केसरीवाडा, गुरुजी तालीम और तुलसीबाग—ने हाथ मिलाया है। आयोजन समिति का कहना है कि इन आयोजनों के जरिए कश्मीर की वादियाँ भक्ति, भजनों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सराबोर हो जाएँगी।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में पुणे से जिस सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत की थी, वही परंपरा अब सीमाओं को लाँघकर कश्मीर तक पहुँच रही है। आयोजकों के अनुसार, यह पहल न केवल धार्मिक भावनाओं को जोड़ने वाली है, बल्कि राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक सद्भाव का जीवंत प्रतीक भी है।