लखनऊ

जब राजनीति ने दी रिश्तों को मात; सीएम योगी और अखिलेश यादव की अनकही कहानी, बंगले से शुरू हुई दूरी

उत्तर प्रदेश की राजनीति में कभी निजी रिश्ते सियासी मतभेदों से ऊपर हुआ करते थे, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ के बीच की दूरी इसकी एक बड़ी मिसाल बन गई है। कुछ घटनाओं ने दोनों नेताओं के बीच संभावित संवाद और रिश्तों की शुरुआत को रोक दिया।

FollowGoogleNewsIcon

CM Yogi vs Akhilesh Yadav Controversy: लोकतंत्र की खूबसूरती यही है कि यहां सियासी विरोध तो होता है लेकिन निजी नहीं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई ऐसी दोस्तियों की मिसालें हैं जो दलगत सीमाओं से परे जाकर इतिहास का हिस्सा बन गईं। यहां ऐसी घटनाएं दर्ज हैं जब निजी रिश्तों ने सियासत की दिशा ही बदल दी- सरकारें बनीं, गिरीं और नई समीकरण बने। मुलायम सिंह यादव और राजनाथ सिंह की दोस्ती, कल्याण सिंह से उनके रिश्ते, प्रमोद तिवारी से निजी लगाव, कलराज मिश्र से मित्रता और लालजी टंडन व मायावती के बीच भाई-बहन जैसा संबंध, इन सभी ने यह साबित किया कि सियासी विरोध भले तीखा हो, मगर निजी रिश्ते उससे अलग रहते थे। इन नेताओं के बीच मंच पर भले ही तल्खी दिखती थी, लेकिन पर्दे के पीछे दोस्ती की गर्माहट हमेशा बनी रही। वे अपने मतभेदों को व्यक्तिगत संबंधों पर हावी नहीं होने देते थे। मगर अब वक्त बदल गया है। आज की राजनीति में निजी रिश्ते पीछे छूटते जा रहे हैं। नेताओं के बीच सियासत ने इतनी जगह ले ली है कि व्यक्तिगत भावनाएं दब गई हैं। अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ के रिश्तों में भी यही कहानी दोहराई गई है, जहां सियासी दूरी ने निजी संवाद की संभावना को पीछे छोड़ दिया है।

सीएम योगी और अखिलेश यादव का विवाद (फोटो: ANI)

साल 2017 में चुनाव में हार के बाद निवर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लखनऊ स्थित अपना सरकारी आवास, 5 कालिदास मार्ग, खाली कर दिया। इसके बाद नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 20 मार्च को हिंदू परंपराओं के अनुसार विधिवत पूजा-पाठ कर इस बंगले में गृह प्रवेश किया। धार्मिक परंपराओं के तहत गृह प्रवेश से पहले गंगाजल से पूरे आवास का शुद्धिकरण कराया गया, जिसमें हर द्वार को पवित्र किया गया। यहीं से विवाद शुरू हो गया। अखिलेश यादव को यह शुद्धिकरण रास नहीं आया। उन्होंने इसे निजी तौर पर नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से देखा। उनका मानना था कि इस प्रक्रिया में पिछड़ी जातियों को लेकर भेदभाव झलकता है। उन्होंने योगी आदित्यनाथ पर यह आरोप लगाया कि एक महंत होने के बावजूद वे जातिवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। इस घटना ने दोनों नेताओं के बीच पहले से मौजूद सियासी खटास को और गहरा कर दिया।

करीब एक साल ही बीता था कि कोर्ट का एक बड़ा फैसला आया, जिसमें कहा गया कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन आवंटित सरकारी बंगले अब खाली करने होंगे। उस समय उत्तर प्रदेश में कुल छह पूर्व मुख्यमंत्री जीवित थे, जिनमें मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह और एन. डी. तिवारी भी शामिल थे। सभी को सरकारी बंगले आवंटित थे। कल्याण सिंह के नाती संदीप सिंह राज्य सरकार में मंत्री थे, लिहाजा उन्हें आवंटित बंगला बाद में संदीप को दे दिया गया। मुलायम सिंह यादव ने भी इस फैसले के बाद मई 2018 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की और अनुरोध किया कि 4 और 5 विक्रमादित्य मार्ग के बंगले, जो पहले अखिलेश यादव और उनके नाम पर थे, उन्हें नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी (विधानसभा) और अहमद हसन (विधान परिषद) के नाम कर दिया जाए। मुलायम सिंह ने इस बाबत एक गोपनीय पत्र भी मुख्यमंत्री को सौंपा था लेकिन वह पत्र लीक होकर वायरल हो गया। इसके बाद सरकार ने तुरंत कार्रवाई करते हुए दो निजी सचिवों को निलंबित कर दिया। मामला राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा में रहा।

End Of Feed