लनखऊ के पास सीतापुर के नारनी महोली क्षेत्र के कई गांव टाइगर के दहशत में जी रहे है । दुधवा टाइगर रिज़र्व की मोहम्मदपुर रेंज से एक बाघ निकलकर लखीमपुर से सीतापुर के ग्रामीण इलाके में आ गया है।
लखनऊ: सीतापुर के नारनी महोली क्षेत्र के कई गांव की गलियां सन्नाटे से पसरी है । सूरज ढलते ही खौफ पैर पसार लेता है। सवेरा सुकून जरूर देता है लेकिन बंदिशों के सहारे ही जिंदगी महफूज लगती है। ये खौफ किसी गुंडे मवाली की बंदूक का नही बल्कि बाघ की दहाड़ के चलते है। दुधवा टाइगर रिज़र्व की मोहम्मदपुर रेंज से एक बाघ निकलकर लखीमपुर से सीतापुर के ग्रामीण इलाके में आ गया है। बाघ के इंसानों बस्तियों में ठिकाना बना लेने से इंसानी जिंदगियों पर खतरा मंडरा रहा है।
सीतापुर में बाघ से दहशत
दुधवा टाइगर रिजर्व से सटे गांवों में वैसे तो हर सीजन और महीना बाघ और बाकी जानवरो का आना जाना बना रहता है लेकिन बारिश होते ही बाघों का रुख जंगलों से कई सौ किमी की दूरी तय करके रिहायशी इलाको की तरफ होने लगता है। इसके पीछे कई वजह होती है कई बार बाघ अपनी टोली में क्षेत्रीय विवाद के चलते जंगलों से बाहर निकल आते है। जंगलों में बारिश के चलते जब शिकार में दिक्कत होती है तो शिकार की तलाश में बाघ अक्सर रिहायशी इलाकों की तरफ चले आते है।
सीतापुर का महोली इलाका इसी दहशत का शिकार है बीते कई महीनों से बाघ का मूवमेंट इस इलाके में बना हुआ है। बाघ ने हाल ही में खेतों में काम कर रहे एक युवक पर हमला कर उसकी जान ले ली । ये बाघ दिन के उजाले में खेतो में टहलता है और राते के अंधेरे में शिकार कर रहा है ।इससे पहले भी इस क्षेत्र में अक्सर बाघ आते रहते है। गांव वालो का कहना है कि ये बाघ लंबे समय से यहां बना हुआ है अब तक नील गाय और जंगली सूअर पर हमले की घटना होती थी अब बाघ ने उनके गांव के युवक को शिकार बनाया है। ऐसे में वन विभाग के अधिकारियों के लिए जंगल में बाघों को खदेड़ना और लोगों को सुरक्षित करना बड़ी चुनौती हैं।
वन विभाग की कई दिनों से इस इलाके में डेरा डाले हुए है। 8 -8 लोगो की टीम गांवों में बाघ के मूवमेंट पर नजर रख रही है। गांव की आबादी में कैमरे लगाए गए है जगह जगह खेतो में पिंजड़े लगाए गए है। फुट पेट्रोलिंग , ट्रेक्टर और बाइक पर पेट्रोलिंग की जा रही है। वन विभाग की कोशिश है कि बाघ को वापस दुधवा की तरफ भेज दिया ज़ाय।
दिन के उजाले में भी घर में रहने को मजबूर गांव के लोग
यू तो रात में हर घर के दरवाजे बंद हो जाते है लेकिन महोली इलाके के कई गांव में तो सन्नाटा पसरा हुआ है तो कई जगह दहशत को दूर करने के लिए लोग गांव के लोग रात को गश्त कर रहे है । रात में दिक्कतें है तो दिन में भी परेशानी है बाघ के चलते बच्चों को आंगन में आने की इजाजत नही है उन्हें बन्द करके रखा जाता है। बीते 10 रोज से कोई बच्चा स्कूल तक नही गया। गांवों की तरफ बाघ की चहलकदमी गांव वालों के लिए खौफ तो पैदा कर ही रही है साथ ही खेती को भी नुकसान पहुंचा रही है। सीतापुर जिले में गन्ना की अच्छी पैदावार होती है। अगस्त के महीने में गन्ना की फसल को बारिश के चलते देखरेख की जरूरत होती है। लेकिन गांव में बाघ के आतंक के चलते गांव के लोग अकेले खेतो में जाने से डर रहे है। झुंड बनाकर और हाथों में लाठियां लेकर गन्ना की देखरेख की जा रही है हालांकि कई किसानों की फसल का नुकसान हो रहा है और इसका नुकसान मिल में इसकी कम कीमत के रूप में सामने आएगा।
लखनऊ में भी तेंदुए का मूवमेंट, रहमान खेड़ा के गांवों में दहशत
सीतापुर लखीमपुर तो ठीक है राजधानी लखनऊ के देहात के इलाके को बाघ अपना ठिकाना बना चुका है। साल की शुरुआत में लगभग 90 दिनों तक रहमान खेड़ा के जंगलों में ये बाघ गांवों वालो के लिए दहशत और वन विभाग के बड़ी चुनौती बन गया था। हालांकि तीन महीने बाद वन विभाग ने बाघ को ट्रैप कर लिया था। बाघ के खौफ से मुक्ति मिली तो अब रहमान खेड़ा इलाके में तेंदुए की दहशत ने फिर गांव वालो की नींद उड़ा दी है। दो दिन पहले तेंदुए ने मीठा नगर गांव में एक किसान की गाय को अपना शिकार बना लिया। गांवों वालो के दौड़ाने पर तेंदुए भागा। अब वन विभाग तेंदुए को पकड़ने में जुटा है ।
बाघों की संख्या भी शहरों की तरफ भागने का कारण
5000 वर्ग किलोमीटर में फैले दुधवा-पीलीभीत क्षेत्र में चार महत्वपूर्ण रिजर्व हैं। जिनमें दुधवा राष्ट्रीय उद्यान, कतरनीघाट , किशनपुर , महेश पर और मोहम्मदीपुर रेंज और पीलीभीत टाइगर रिजर्व खास है। यूनाइटेड नेशनल डवलपमेंट प्रोग्राम यानि यूएनडीपी और इंटरनेशनल यूनीयन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर यानि आईयूसीएन की तरफ पीलीभीत के टाइगर रिजर्व को नंबर वन बताया गया है। यँहा टाइगर रिज़र्व बनने के बाद से बाघों की आबादी 30 से बढ़कर 65 यानी दुगुनी हो गयी है। एक तरफ तो इस रिकॉर्ड ने यूपी का गौरव बढ़ा दिया तो दूसरी तरफ चिंता की बात ये है रिज़र्व क्षेत्रो को छोड़कर बाघों के ठिकाना अब गांव बनते जा रहे है। यँहा इंसानों और बाघो के बीच संघर्ष चरम पर है। बीते सालों में लखीमपुर में बाघो के हमले में सबसे ज्यादा लोग मरे हैं। हर साल बारिश के सीजन में लगभग आधा दर्जन लोग बाघ का शिकार हो जाते है।
क्यों बढ़ रहा है जंगली जानवरों का आतंक
अपनी रिहाइश को लेकर इंसान और जंगली जानवरों के बीच जंग सी छिड़ी हुई है। विकास के नाम पर वन इलाको को कम किया जा रहा हैं इंसान बाघों के घर यानी जंगल में घुस रहे हैं। बाघ अपने इलाके में दूसरे बाघ की दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करता तो इंसानों की घुसपैठ कैसे बर्दाश्त कर सकता है। यही वजह है कि जंगल में लगातार इंसानी दखलंदाजी से बाघ आक्रामक हो रहे हैं पूरे देश में ऐसी घटनाएं रुकने की बजाए बढ़ती जा रही हैं। लेकिन सवाल ये है कि जानवर इसानों की बस्ती में घुस रहे हैं या इंसान जानवरों के क्षेत्र को कब्जा रहे हैं।