इलेक्शन

सियासी दलों का परिवारवाद कैसे पहुंचा रहा BJP को फायदा, बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक बल्ले-बल्ले

परिवार आधारित पार्टियों में विभाजन के बाद कई राज्यों में अप्रत्यक्ष रूप से भगवा पार्टी को फायदा पहुंचाया है। क्षेत्रीय दलों में हालिया विभाजन से बीजेपी की बल्ले-बल्ले हुई है।
Political families in BJP

सियासी परिवारवाद

Parivarvaad in Parties Helping BJP: सियासत में परिवारवाद का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी हर चुनाव में प्रमुखता से उठाती रही है। वंशवादी राजनीति पर पीएम मोदी से लेकर नड्डा तक तमाम नेता विपक्ष को घेरते हैं। लेकिन इसी वंशवादी सियासत ने बीजेपी को जबरदस्त फायदा भी पहुंचाया है। यूपी से लेकर बिहार और महाराष्ट्र तक ये साफ नजर आता है। जिस परिवारवाद पर बीजेपी लगातार हमला करती है, उसी परिवार आधारित पार्टियों में विभाजन के बाद कई राज्यों में अप्रत्यक्ष रूप से भगवा पार्टी को फायदा पहुंचाया है। क्षेत्रीय दलों में हालिया विभाजन से बीजेपी की बल्ले-बल्ले हुई है।

बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक2019 के बाद से बिहार में पासवान, हरियाणा में चौटाला और महाराष्ट्र में पवार परिवार को विभाजन का सामना करना पड़ा है। अलग हुए समूहों ने बीजेपी से हाथ मिला लिया, जिससे इन राज्यों भगवा पार्टी मजबूत हो रही है। यहां तक कि उसे सरकार बनाने में भी मदद मिली। हरियाणा और महाराष्ट्र में इसे साफ देखा जा सकता है। इस सूची में शामिल होने वाला नया नाम है सोरेन परिवार। झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के परिवार में विभाजन हुआ है पार्टी के संस्थापक शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन मंगलवार को भाजपा में शामिल हो गईं।

सीता सोरेन पर बीजेपी का दांव

झामुमो परिवार में तनाव लंबे समय से चल रहा था। राज्य में भाजपा के पास कोई मजबूत चेहरा नहीं है। लोकसभा चुनाव से पहले सीता सोरेन के पाला बदलने का समय अहमियत रखता है। इस साल के अंत में झारखंड में भी विधानसभा चुनाव होंगे। इससे बीजेपी को खनन मामले में गिरफ्तार पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन के पक्ष में सहानुभूति लहर को रोकने में मदद मिलेगी। बीजेपी सीता सोरेन का इस्तेमाल प्रचारक या उम्मीदवार के रूप में कर सकती है। यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब झामुमो कल्पना सोरेन को अपने अभियान का चेहरा बनाने की रणनीति में जुटी थी। दरअसल, सीता सोरेन ने जनवरी में तब नाराजगी जाहिर की थी जब ऐसी अटकलें चल रही थीं कि कल्पना को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।

बिहार में चाचा-भतीजे की लड़ाई

इससे पहले बिहार में भी पासवान परिवार में ऐसी ही टूट दिखाई दी। 2021 में बिहार के दिग्गज नेता राम विलास पासवान के निधन के कुछ महीनों बाद उनकी पार्टी एलजेपी में विभाजन हो गया। भाई पशुपति कुमार पारस और भतीजे प्रिंस राज चार सांसदों के साथ बाहर हो गए। इस घटनाक्रम ने बीजेपी को ही फायदा पहुंचाया, जो नीतीश कुमार के साथ चिराग पासवान की लगातार अनबन से परेशान थी। उस वक्त बीजेपी ने पारस के गुट को मान्यता देते हुए उन्हें समर्थन दिया था और केंद्र में मंत्री पद भी दिया। चिराग पासवान राजनीतिक हाशिए पर चले गए। लेकिन उन्होंने बीजेपी के साथ अपने संबंधों में खटास नहीं आने दी। वह अक्सर खुद को प्रधानमंत्री मोदी का हनुमान कहते थे।

चिराग पासवान की मजबूत पैठ

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने रणनीतिक रूप से उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिससे नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडी (यू) को नुकसान पहुंचा। इसका फायदा बीजेपी को ही मिला। 2024 के चुनाव से पहले स्थिति उलट गई है। बीजेपी अब पशुपति पारस को छोड़कर चिराग पासवान के साथ है। यहां भी बीजेपी ने अपना हिसाब-किताब बखूबी लगा लिया। कुरहानी और गोपालगंज में 2022 के उपचुनावों में भाजपा के लिए चिराग पासवान का समर्थन एनडीए की जीत के प्रमुख कारणो में से एक रहा था। इसके अलावा, पिछले बिहार विधानसभा चुनावों से पता चला कि पासवान समुदाय जो बिहार में लगभग 6% आबादी है, चिराग का समर्थन कर रहा है। इसके अलावा, पारस को पार्टी के लोकसभा सांसदों के बीच अपनी पकड़ और समर्थन खोते हुए देखा जा रहा है। 19 मार्च को जिस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफे की घोषणा की, वहां एक भी सांसद उनके साथ नजर नहीं आया।

महाराष्ट्र में भी चाचा-भतीजा

महाराष्ट्र की कहानी भी बिहार जैसी ही है। यहां एनसीपी के विभाजन और अजित पवार गुट के एनडीए में शामिल होने के बाद नई सियासी तस्वीर उभरकर सामने आई। बारामती में एक और चाचा-भतीजे की जोड़ी शरद पवार और अजित पवार के बीच पासवान परिवार जैसी ही लड़ाई देखी जा रही है। यहां भी एनसीपी में विभाजन ने बीजेपी के लिए फायदेमंद काम किया है। 2019 में बीजेपी ने अविभाजित शिवसेना के साथ मिलकर महाराष्ट्र की सभी 48 सीटें जीती थीं। शिवसेना उद्धव गुट के चले जाने के बाद उसके लिए मुकाबला मुश्किल हो गया है। अब बीजेपी अजित पवार और एकनाथ शिंदी की पार्टी के साथ पुरानी सफलता दोहराने की कोशिश में है। अजित की एनसीपी का पश्चिमी महाराष्ट्र में प्रभाव है, और एकनाथ शिंदे की सेना का मराठवाड़ा क्षेत्र पर नियंत्रण है।

इसके अलावा, बीजेपी को अजित पवार के सहारे शरद पवार का गढ़ बारामती सीट हासिल करने की उम्मीद है। बीजेपी ने प्रतिष्ठित बारामती सीट कभी नहीं जीती है, 1984 के बाद से पवार इस सीट पर जीत हासिल कर रहे हैं। इस बार इस सीट पर पवार बनाम पवार की लड़ाई देखने को मिल सकती है। अजित पवार अपनी पत्नी सुनेत्रा को मौजूदा सांसद और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ मैदान में उतार सकते हैं।

हरियाणा में चौटाला परिवार की यही कहानी

2019 में परिवार-आधारित पार्टी में एक और विभाजन ने बीजेपी को लोकसभा चुनावों के साथ-साथ हरियाणा में सत्ता में आने में मदद की थी। वह अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा पार करने में विफल रही थी। पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के उत्तराधिकारियों के बीच मतभेदों के बीच इंडियन नेशनल लोक दल में टूट हुई और एक नई पार्टी अस्तित्व में आई। पार्टी में विभाजन के बाद एक अलग पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के गठन के कारण जाट वोटों में विभाजन हुआ, जिससे बीजेपी को जीत हासिल करने में मदद मिली। उसने सभी 10 लोकसभा सीटों पर कब्जा जमाया। महीनों बाद जब बीजेपी हरियाणा विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने से चूक गई, तो उसने राज्य में लगातार दूसरी सरकार बनाने के लिए जेजेपी से हाथ मिलाया। हालांकि अब दोनों की राहें जुदा हो गई हैं।

यूपी में पटेल परिवार में जंग

उत्तर प्रदेश में पटेल परिवार में छिड़ी जंग भी बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हुई है। एक तरफ कृष्णा पटेल हैं तो दूसरी तरफ उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल। जहां कृष्णा पटेल ने इंडिया गठबंधन के साथ हाथ मिलाया है, वहीं अनुप्रिया पटेल लंबे समय से एनडीए के साथ हैं केंद्र में मंत्री हैं। इस परिवार की लड़ाई में साफ फायदा बीजेपी को ही मिला है। इस राजनीतिक परिवार की पैठ मिर्जापुर, फूलपुर, कौशांबी जिलों में है।

देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) पढ़ें हिंदी में और देखें चुनाव से जुड़ी सभी छोटी बड़ी न्यूज़ Times Now Navbharat Live TV पर। भारत के चुनाव (Elections) अपडेट और विधानसभा चुनाव के प्रमुख समाचार पाएं Times Now Navbharat पर सबसे पहले ।

अमित कुमार मंडल author

पत्रकारिता के सफर की शुरुआत 2005 में नोएडा स्थित अमर उजाला अखबार से हुई जहां मैं खबरों की दुनिया से रूबरू हुआ। यहां मिले अनुभव और जानकारियों ने खबरों ...और देखें

End of Article

© 2025 Bennett, Coleman & Company Limited