बिहार SIR मामला: सुप्रीम कोर्ट से विपक्ष को बड़ा झटका, ड्राफ्ट वोटर लिस्ट की समय सीमा बढ़ाने से इनकार

बिहार SIR विवाद पर चुनाव आयोग का सुप्रीम कोर्ट में जवाब (PTI)
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में बिहार में चल रहे SIR को लेकर अहम सुनवाई हुई। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने बिहार के विपक्षी दलों की उस मांग को ठुकरा दिया जिसमें दावा और आपत्ति दाखिल करने की समय सीमा बढ़ाने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी देते हुए कहा कि इन सारे मुकदमेबाजी के बीच सबसे अहम बिहार का मतदाता है। आम मतदाताओं की सहूलियत के लिए सुप्रीम कोर्ट में बिहार के राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के जरिए हर जिले में पैरा लीगल वॉलिंटियर्स को तैनात किए जाने के आदेश दिए हैं। ये सभी वॉलंटियर्स आम लोगों के साथ ही राजनीतिक दलों को दावा और आपत्ति दाखिल करने के लिए मदद करेंगे। SIR के दिशा-निर्देशों के मुताबिक आज यानी 1 सितम्बर दावा और आपत्ति दाखिल करने की आखिरी तारीख है।
SIR में आधार कार्ड मान्य दस्तावेज नहीं- SC
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा क्या हम आधार को मान्य दस्तावेजों की सूची में शामिल कर सकते हैं? ये पहले के सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में साफ हो चुका है कि आधार कार्ड का दायरा नहीं बढ़ाया जा सकता है। इस पर टाइम्स नाउ नवभारत से बात करते हुए केंद्रीय निर्वाचन आयोग के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एकलव्य द्विवेदी ने कहा कि, याचिकाकर्ताओं की कोशिश थी कि आने वाले समय के लिए आधार कार्ड को मान्यता दिला दी जाए। लेकिन बिहार के विपक्षी दलों को कोर्ट ने ये साफ कर दिया कि आधार एक्ट के मुताबिक आधार कार्ड सिर्फ व्यक्ति की पहचान बताता है न कि नागरिकता तय करता है।'
वहीं ADR की तरफ से वकील प्रशांत भूषण ने दलील देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले आदेश में कहा था कि आधार को दस्तावेज के तौर पर स्वीकार करना है। चुनाव आयोग ये नहीं बता रहा कि रिन्यूमेरेशन फॉर्म के साथ क्या दस्तावेज लगाया गया है। हमें आशंका है कि कई सारे रिन्यूमेरेशन फॉर्म (गणना प्रपत्र) खुद BLO के द्वारा ही भरा गया है। चुनाव आयोग कुछ मतदाताओं को नोटिस जारी कर रहा है और कह रहा है कि दस्तावेज में कमी है।
सिर्फ आधा फीसदी लोगों का दस्तावेज देना बाकी
सुनवाई के दौरान ही चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी कि 7.24 करोड़ लोगों में से 99.5% ने दस्तावेज़ जमा किए हैं। चुनाव आयोग के वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि अधिकांश राजनीतिक दल और वोटर, वोटरलिस्ट में नाम जोड़ने के लिए नहीं बल्कि हटाने के लिए आवेदन कर रहे हैं, यह कुछ बहुत ही अजीब है। इसके अलावा चुनाव आयोग ने मतदाता सूची को लेकर उठ रहे सवालों पर जवाब देते हुए कहा है कि पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाए गए हैं। BLAs को लिस्ट सौंपी गई है, वेबसाइट पर सूचनाएं जारी हुई हैं और अखबारों के माध्यम से जनता को जानकारी दी गई है।
नामांकन के दिन वोटर लिस्ट में जुड़ सकेगा नाम
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने साफ किया कि 30 सितंबर के बाद भी दावे और आपत्तियां दर्ज कराई जा सकती हैं और जिनका नाम शामिल होने के योग्य है, उन्हें अंतिम मतदाता सूची में जगह मिलेगी। आयोग ने दलील दी कि तारीख आगे बढ़ाने से यह प्रक्रिया कभी खत्म नहीं होगी। एडवोकेट एकलव्य द्विवेदी ने भी कहा कि देश में जबसे चुनाव हो रहे हैं तबसे ही नामांकन की तारीख तक मतदाता सूची में नाम जोड़े जाने की परम्परा है। इसके अलावा SIR को लेकर चुनाव आयोग ने जून महीने में जो दिशा-निर्देश जारी किया था उसके पैराग्राफ 12(a) (2) में भी ये लिखा है कि नामांकन के दिन तक भी वोटर लिस्ट में योग्य मतदाता का नाम जोड़ा और अयोग्य मतदाता का नाम काटा जा सकता है।
BLO की भूमिका को लेकर उठाए सवाल
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने गंभीर आपत्तियां उठाईं। वकील प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि 22 अगस्त को आधार लिंक करने का आदेश आया था और इस बीच बिहार में बाढ़ की स्थिति भी है। उन्होंने आरोप लगाया कि आयोग अपनी ही मैनुअल के पारदर्शिता संबंधी प्रावधानों का पालन नहीं कर रहा और लोगों को यह तक नहीं पता कि उनका फॉर्म अपलोड हुआ या नहीं। इसके अलावा कुछ पक्षों ने दावा किया कि बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं और कई जगह बीएलओ फॉर्म स्वीकार करने से इनकार कर रहे हैं।
8 सितंबर को होने वाली अगली सुनवाई बेहद अहम
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई 8 सितंबर को होगी। इस सुनवाई से पहले बिहार के सभी 12 राजनीतिक दलों को इस बात को लेकर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करना है कि उनके बूथ लेवल एजेंट ने मतदाताओं की मदद करने के लिए क्या योगदान दिया।
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