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जीएसटी सुधार बनाम महंगाई: बिहार चुनाव में बीजेपी का नया दांव

इस पूरे फैसले की अहमियत बिहार की सामाजिक-आर्थिक हकीकत से और बढ़ जाती है। राज्य में 34% परिवार महीने में 6 हजार रुपए से भी कम पर गुजारा करते हैं। लगभग 31% आबादी मिडिल क्लास से आती है।
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पीएम मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (फाइल फोटो- PTI)

बिहार विधानसभा चुनाव की आहट के बीच केंद्र सरकार ने महंगाई के मोर्चे पर बड़ा कदम उठाया है। जीएसटी काउंसिल के फैसले के तहत 22 सितंबर से खाने-पीने का सामान, दवा, हेल्थ इंश्योरेंस और घर बनाने की सामग्री पर टैक्स घटाकर 5% कर दिया जाएगा। पहली नजर में यह सुधार सीधे तौर पर गरीब और मिडिल क्लास के लिए राहत का पैगाम है। लेकिन सवाल यह भी है—क्या यह आर्थिक सुधार है या चुनावी रणनीति?

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बीजेपी की रणनीति – राहत को वोट में बदलने का प्रयास

बीजेपी ने इस फैसले को महज नीतिगत बदलाव तक सीमित नहीं रखा। सोशल मीडिया पर सस्ती होने वाली चीज़ों की लिस्ट वायरल की जा रही है। नेताओं को हिदायत दी गई है कि हर रैली और भाषण में इसका ज़िक्र हो। साफ है, पार्टी इसे बिहार के चुनावी मैदान में महंगाई के मुद्दे का जवाब बनाने जा रही है।

विपक्ष की चुनौती और सरकार का पलटवार

विपक्ष लगातार महंगाई को मुद्दा बनाकर सरकार पर हमलावर रहा है। लेकिन अब बीजेपी जीएसटी सुधार को ढाल की तरह इस्तेमाल कर रही है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और पीयूष गोयल का दावा है कि जनता से इस फैसले पर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है और यह कदम भारत की मज़बूत अर्थव्यवस्था की मिसाल है। वहीं, यूपीए पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया जा रहा है कि पिछली सरकार ने भारत को “फ्रैजाइल फाइव” में ला खड़ा किया था।

बिहार का सामाजिक-आर्थिक संदर्भ

इस पूरे फैसले की अहमियत बिहार की सामाजिक-आर्थिक हकीकत से और बढ़ जाती है। राज्य में 34% परिवार महीने में 6 हजार रुपए से भी कम पर गुजारा करते हैं। लगभग 31% आबादी मिडिल क्लास से आती है। ऐसे में दूध, दाल, तेल और दवा जैसी रोजमर्रा की जरूरतों पर टैक्स में कटौती सीधे इन तबकों की जेब को राहत पहुंचा सकती है। यही वजह है कि इसे चुनावी राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।

राहत बनाम नरेटिव की जंग

बीजेपी का नारा है—“जेब में बचत, घर का बजट बेहतर।” लेकिन राजनीति सिर्फ राहत से तय नहीं होती, बल्कि नरेटिव गढ़ने से होती है। विपक्ष यह सवाल उठा सकता है कि अगर महंगाई पर काबू पाने की नीयत थी तो यह फैसला चुनाव से ठीक पहले क्यों आया? वहीं, बीजेपी यह दिखाने की कोशिश करेगी कि सरकार जनता की ज़रूरतों के प्रति संवेदनशील है।

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हिमांशु तिवारी author

हिमांशु तिवारी एक पत्रकार हैं जिन्हें प्रिंट से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक का 16 साल का अनुभव है। मैंने अपना करियर क्राइम रिपोर्टर के रूप में शुरू किया था...और देखें

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