'वोटर अधिकार यात्रा' से कांग्रेस-RJD को क्या हासिल हुआ? NDA की कितनी बढ़ी चुनौती, 5 प्वाइंट्स में समझें

एक सितंबर को समाप्त हुई कांग्रेस की वोटर अधिकार यात्रा। तस्वीर-@INCBihar
Voter Adhikar Yatra : बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस सांसद एवं लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की अगुवाई में महागठबंधन की 'वोटर अधिकार यात्रा' एक सितंबर को संपन्न हो गई। 16 दिनों की यह यात्रा बिहार के 38 जिलों में से 25 से होकर गुजरी और इसने करीब 1300 किलोमीटर का सफर तय किया। इस यात्रा का समापन एक सितंबर को पटना में हुआ। समापन मौके पर रैली को संबोधित करते हुए राहुल ने नया नारा दिया। यह नारा है 'वोट चोर, गद्दी छोड़'। कांग्रेस नेता ने कहा कि 'यह नारा चल गया है'। वहीं, रैली में मौजूद राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता एवं बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा कि 'लोग अब पूछ रहे हैं कि इस यात्रा से हमारे पक्ष में जो एक माहौल बना है उसे हम आगे कैसे जारी रखेंगे? तो सवाल करने वाले लोगों को इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि हम लोग इस पर काम कर रहे हैं।'
राहुल गांधी ने EC पर वोट चोरी का आरोप लगाया
एक्सपर्ट भी मान रहे हैं कि इस 'वोटर अधिकार यात्रा' से कांग्रेस और राजद के पक्ष में एक माहौल तो बना है लेकिन अपने पक्ष में बने इस माहौल को चुनाव तक ले जाना और लोगों के समर्थन को वोट में तब्दील करा पाना महागठबंधन के नेताओं के लिए एक बड़ी चुनौती है। 17 अगस्त से बिहार के सासाराम से शुरू होने वाली इस यात्रा के साथ तेजस्वी और महागठबंधन के अन्य नेता भी लगे रहे। जगह-जगह रोड शो हुए और जनसभाओं में भाजपा और चुनाव आयोग (EC) पर वोट चोरी करने का गंभीर आरोप लगाया गया। राहुल ने बार-बार आरोप लगाया कि 'महाराष्ट्र, हरियाणा के बाद अब बिहार में वोटों की चोरी की जा रही है और यह चोरी कैसे हुई है, इसे उन्होंने उजागर किया है लेकिन आगे वह इस वोट चोरी को होने नहीं देंगे।' चुनाव से ठीक पहले हुई इस यात्रा को कांग्रेस के लिए जनसमर्थन जुटाने और वोटरों में अपनी पकड़ मजबूत करने की राहुल की एक कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
1990 के बाद कमजोर होती चली गई कांग्रेस
बिहार में कांग्रेस की राजनीतिक उपस्थिति और उसके वोट बैंक की अगर बात करें तो 1990 के बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी लगातार कमजोर होती आई है। 1990 में कांग्रेस के हाथ से सत्ता जाने के बाद फिर वह अपने बलबूते सरकार में वापसी नहीं कर पाई। लालू प्रसाद यादव की अगुवाई में जनता दल ने कांग्रेस को हराया। इसके बाद के विधानसभा चुनावों में पार्टी सरकते-सरकते हाशिए पर चली गई। 2000 के विधानसभा चुनाव में उसे मजह 23 सीटों पर जीत मिली। राज्य में अपने जनाधार को बचाए और खुद को प्रांसगिक बनाए रखने के लिए वह राजद के साथ गठबंधन में यानी छोटे भाई की भूमिका में आ गई। बिहार में करीब दो दशक तक कांग्रेस ने अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किया। वह गठबंधन धर्म और राजद के 'छोटे भाई' की भूमिका निभाती रही।
2015 के चुनाव में 27 सीटों पर विजयी हुई कांग्रेस
2015 के विधानसभा चुनावों में जब जेडीयू प्रमुख और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन से जुड़े, तब कांग्रेस ने अपना प्रदर्शन सुधारा। इस महागठबंधन का लाभ उठाते हुए उसने 27 सीटें जीतीं। हालांकि, 2020 के चुनावों में जब नीतीश फिर से एनडीए में लौट आए, तब कांग्रेस 70 में से केवल 19 सीटें जीत सकी, जबकि इस चुनाव में राजद 75 सीटों पर विजयी हुआ। 2020 के चुनाव में एनडीए के खाते में 125 सीटें और महागठबंधन के हिस्से में 110 सीटें गईं। महागठबंधन की इस हार की एक बड़ी वजह कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन को बताया गया। कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन केवल 19 सीटें ही जीत पाई।
'वोटर अधिकार यात्रा' से किसे क्या मिला?
1-जनसमर्थन को वोट में तब्दील करने की चुनौती
'वोटर अधिकार यात्रा' की शुरुआत से पहले कांग्रेस को महागठबंधन की 'कमजोर कड़ी' माना जा रहा था लेकिन, राज्यभर में यात्रा के दौरान जुटी भारी भीड़ ने कांग्रेस को अपनी जमीनी हालत मजबूत होते दिखी है, राहुल की बातें सुनने और उन्हें देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग जुटे। बिहार चुनाव में जद-यू भी बड़ी खिलाड़ी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनाव में स्टार प्रचारक तो रहेंगे ही महागठबंधन को प्रधानमंत्री मोदी की ललकार का भी सामना करना होगा। जाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी एनडीए का नेतृत्व करेंगे। इस वजह से राजद को राहुल पर अधिक निर्भर रहना होगा ताकि वे पीएम मोदी के अभियान का राष्ट्रीय स्तर पर जवाब दे सकें। कांग्रेस ने दरभंगा, मधुबनी और अररिया जैसे कई मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी जमीन बनाई है, जो राजद के गढ़ माने जाते हैं। बिहार में कांग्रेस का पतन 1989 के भागलपुर दंगों से जोड़ा जाता है, जब कथित तौर पर कांग्रेस की विफलताओं के चलते बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता जनता दल और बाद में राजद की ओर चले गए। 1990 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू यादव अल्पसंख्यक समुदाय के प्रमुख नेता बन गए।
2-तेजस्वी ने खुद को सीएम फेस के रूप में किया पेश
यात्रा के दौरान राहुल के साथ हमेशा विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव मौजूद रहे, जिससे वे राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गए। साथ ही, उन्होंने महागठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरे के तौर पर अपनी स्थिति को और मजबूत किया। अररिया में यात्रा के दौरान जब एक पत्रकार ने तेजस्वी की सीएम उम्मीदवारी को लेकर राहुल से सवाल किया तो उन्होंने टाल दिया। लेकिन समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, जिन्होंने 30 अगस्त को आरा में यात्रा में हिस्सा लिया, ने 'नए बिहार के निर्माण' के लिए तेजस्वी का समर्थन करने की बात कही। इसके बाद, तेजस्वी ने आरा और पटना की यात्रा में खुद को विपक्षी गठबंधन का सीएम उम्मीदवार बताते हुए भीड़ से पूछा कि वे 'असली मुख्यमंत्री चाहते हैं या नकली'। तेजस्वी ने एनडीए सरकार पर उनकी योजनाओं जैसे सामाजिक सुरक्षा पेंशन बढ़ोतरी, मुफ्त बिजली और युवा आयोग की नकल करने का आरोप लगाया है।
3-मजबूत हुई INDIA गठबंधन की एकजुटता
राहुल ने यात्रा के जरिए भाजपा और चुनाव आयोग (ईसी) के खिलाफ विभिन्न चुनावों में अपने 'वोट चोरी' के आरोपों को उठाया और बिहार में ईसी की चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया का विरोध किया। यह मुद्दा पूरे विपक्षी INDIA गठबंधन को एकजुट करने वाला साबित हुआ है। यात्रा के दौरान समय-समय पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन, अखिलेश यादव, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, टीएमसी के युसूफ पठान और शिवसेना के संजय राउत जैसे कई नेता इसमें शामिल हुए। यात्रा के बाद महागठबंधन को पुर्णिया से निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव का समर्थन मिला, जिनका कांग्रेस से संबंध रहा है लेकिन उनका राजद के साथ मतभेद थे। पप्पू यादव कई मौकों पर तेजस्वी यादव को 'अनुभवहीन और अपरिपक्व' नेता बताकर उनकी आलोचना कर चुके हैं लेकिन इस यात्रा के दौरान पुर्णिया में उन्होंने तेजस्वी यादव की तारीफ की और उन्हें लालू यादव की तरह 'जननायक' बताया। जानकार मानते हैं कि तेजस्वी की तारीफ कर वह पुरानी बातों को भुलाना चाहते हैं।
4-यात्रा से NDA पर बढ़ा दबाव
यात्रा ने एनडीए को अपनी रणनीतियां बदलने पर मजबूर कर दिया है। भले ही सार्वजनिक रूप से इसे खारिज किया गया हो, लेकिन जद-यू और भाजपा के कई नेता मानते हैं कि इससे महागठबंधन को मजबूती मिली है। राजद के राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा ने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा कि 'यात्रा खत्म हो गई है, लेकिन संदेश जारी है। पखवाड़े भर में यात्रा को जो जनसमर्थन मिला है वह अपने आप घटनाएं पैदा करेगा।' वहीं, प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता प्रेम चंद्र मिश्रा ने कहा कि 'हमें अगला कदम क्या उठाना है, इसके बारे में बिहार प्रदेश कांग्रेस समिति ने बैठक की है। हमारे बूथ स्तर के कार्यकर्ता SIR अभ्यास के दौरान मतदाताओं की शिकायतें संबंधित BLOs तक ले जाएंगे।'
5-यात्रा का चुनाव पर असर नहीं-भाजपा, जदयू
इस बीच, राहुल पर हमला बोलते हुए भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि यही राहुल गांधी थे जिन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान ‘मोहब्बत की दुकान’ खोली थी। क्या हुआ? वोटर अधिकार यात्रा में वे खुद को इस तरह पेश कर रहे थे मानो वे महागठबंधन के सीएम उम्मीदवार हों। जब 99% मतदाताओं ने अपने फॉर्म भर दिए हैं, तब SIR कोई मुद्दा ही नहीं है। उन्हें तो दरभंगा की घटना की निंदा करनी चाहिए थी, जिसमें एक व्यक्ति ने पीएम की मां के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया।' जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि एनडीए नेताओं ने करीब 120 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया है। हमें जमीन पर SIR का कोई असर नहीं दिख रहा। असल में विपक्ष मतदाताओं की समस्याओं को उठाने के मौकों का सही इस्तेमाल नहीं कर पाया। बल्कि, वोटर अधिकार यात्रा महागठबंधन में दरार डाल सकती है क्योंकि इस प्रक्रिया में कांग्रेस ने राजद पर हावी होने की कोशिश की है।'
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आलोक कुमार राव न्यूज डेस्क में कार्यरत हैं। यूपी के कुशीनगर से आने वाले आलोक का पत्रकारिता में करीब 19 साल का अनुभव है। समाचार पत्र, न्यूज एजेंसी, टेल...और देखें

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