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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: हादसे में घायल नाबालिग को मिलेगा 4 गुना ज़्यादा मुआवज़ा

सुप्रीम कोर्ट ने सड़क हादसे में दिव्यांग हुए 8 वर्षीय बच्चे हितेश पटेल का मुआवज़ा 8.65 लाख से बढ़ाकर 35.90 लाख कर दिया। कोर्ट ने कहा कि नाबालिग को गैर-आय अर्जक (non earning) नहीं माना जा सकता और उसकी आय का आकलन कुशल मज़दूर की न्यूनतम मज़दूरी से होगा। फैसले में दर्द और पीड़ा, विवाह की संभावनाओं के नुकसान और कृत्रिम पैर के लिए अतिरिक्त राशि भी मंजूर की गई।

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सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि सड़क हादसे में स्थायी दिव्यांगता झेल चुके नाबालिग को गैर-आय अर्जक मानकर मुआवज़ा तय नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के आदेश में बदलाव करते हुए मुआवज़ा की रकम 8.65 लाख रुपये से बढ़ाकर 35.90 लाख रुपये कर दी। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने कहा कि नाबालिग की आय का आकलन कम से कम संबंधित राज्य में घोषित कुशल मज़दूर की न्यूनतम मज़दूरी के आधार पर किया जाना चाहिए।

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सड़क हादसे की कहानी क्या है?

यह मामला 14 अक्टूबर 2012 का है, जब गुजरात के बनासकांठा जिले में 8 वर्षीय हितेश नागजीभाई पटेल अपने पिता के साथ एक कच्ची सड़क पर खड़ा था। तभी तेज़ रफ़्तार और लापरवाही से चलाई जा रही गाड़ी (GJ-8V-3085) ने उसे टक्कर मार दी। हादसे में हितेश के सिर पर गंभीर चोटें आईं और उसका बायां पैर काटना पड़ा। इसके बाद हितेश ने अपने पिता के माध्यम से मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के तहत 10 लाख रुपये मुआवज़े की मांग करते हुए दावा दायर किया।

सितंबर 2021 में मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) ने हितेश की स्थायी विकलांगता को केवल 30% मानते हुए 3.90 लाख रुपये मुआवज़ा 9% ब्याज सहित तय किया। हालांकि, अगस्त 2024 में गुजरात उच्च न्यायालय ने विकलांगता को 90% मानकर मुआवज़ा बढ़ाकर 8.65 लाख रुपये कर दिया और कृत्रिम पैर समेत अन्य मदों में अतिरिक्त राशि जोड़ी।

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