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सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की सीमाओं पर दिया बड़ा फैसला, बेटी के अधिकार को मान्यता

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट अपने पुनर्विचार अधिकार का इस्तेमाल करते हुए अपीली अदालत की तरह काम नहीं कर सकता। अदालत ने मद्रास हाई कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया जिसने तथ्यों का पुनर्मूल्यांकन करते हुए बेटी मल्लीस्वरी के अधिकार पर सवाल उठाया था। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 के तहत बेटी को पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलता है और इस मामले को ट्रायल कोर्ट को भेजते हुए उसके अधिकार का निर्धारण जल्द करने का निर्देश दिया।

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सुप्रीम कोर्ट ने 8 सितम्बर एक अहम आदेश देते हुए कहा कि हाई कोर्ट पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान केस से जुड़े तथ्यों का फिर से मूल्यांकन नहीं कर सकता। अदालत ने साफ किया कि पुनर्विचार का दायरा केवल उन गलतियों के सुधार तक सीमित है जो पिछले आदेश के देते वक्त की गई हो। अगर हाई कोर्ट तथ्यों को नए सिरे से जांचे या अपीली अदालत की तरह काम करे, तो यह उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

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मद्रास HC के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बदला

यह विवाद एक संपत्ति के विभाजन से जुड़े मामले का है, जो साल 2000 में दायर हुआ था। इसमें सुब्रमणी नाम के व्यक्ति ने 2003 में निचली अदालत से एक डिक्री हासिल की थी, जिसके बाद उसकी बहन मल्लीस्वरी को सम्पत्ति की हिस्सेदारी से बाहर कर दिया गया था। 2005 में हिंदू उत्तराधिकार संशोधन कानून लागू होने के बाद मल्लीस्वरी ने अपने हिस्से पर दावा किया और साथ ही पिता की वसीयत के आधार पर संपत्ति में अतिरिक्त अधिकार भी मांगे। हालांकि ट्रायल कोर्ट ने 2019 में उसकी याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन 2022 में मद्रास हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा (2020) के फैसले का हवाला देते हुए मल्लीस्वरी के पक्ष में आदेश दिया।

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