12वीं में 39% नंबर आने के बाद भी पास कर दिखाया JEE परीक्षा, अब स्वीडन में कर रहे काम

​ये राजीव दंडोतिया की प्रेरणादायक कहानी है, जो कि औसत छात्र थे, या आप इन्हें औसत छात्र से भी नीचे आंक सकते हैं, लेकिन इनके कम नंबरों से इनकी योग्यता सिद्ध नहीं होती है, इनके इरादो को आंक पाना किसी के लिए आसान नहीं था, किसे पता था, 12वीं में महज 39% अंक लाने वाला लड़का ए​क दिन देश की सबसे कठिन परीक्षा में से एक आईआईटी जेईई को पास कर दिखाया। आज वे स्वीडन में इंजीनियर है, आइये उनके प्रेरणादायक सफर पर नजर मारते हैं।

कम नंबर नहीं बताते आपकी योग्यता 12वीं में 39 नंबर आने के बाद भी पास कर दिखाया JEE परीक्षा अब स्वीडन में कर रहे काम
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कम नंबर नहीं बताते आपकी योग्यता, 12वीं में 39% नंबर आने के बाद भी पास कर दिखाया JEE परीक्षा, अब स्वीडन में कर रहे काम

कठिन परिस्थितियों से लड़ने की प्रेरणादायक मिसाल है। राजस्थान के एक छोटे से कस्बे से निकलकर कॉरपोरेट दुनिया में काम करना और आज स्वीडन जैसे देश में रहना, उनकी जिंदगी के अप्रत्याशित लेकिन प्रेरणादायक पड़ाव हैं। इसमें कोई श​क नहीं कि इसके पीछे उनका आत्मविश्वास और संकल्प था।

मध्यम परिवार से विदेश में नौकरी
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मध्यम परिवार से विदेश में नौकरी

राजीव दंडोतिया एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं और अपने स्कूल के दिनों में एक औसत छात्र थे। लेकिन जीवन में कुछ बड़ा हासिल करने और अपने परिवार को संबल देने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की और असंभव को संभव कर दिखाया और कई मुश्किलों के बावजूद आईआईटी-जेईई जैसी कठिन परीक्षा को उत्तीर्ण किया।

कौन हैं राजीव दंडोतिया
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कौन हैं राजीव दंडोतिया?​

​राजस्थान में जन्मे राजीव के पिता एक छोटी फैक्ट्री चलाते थे और उनकी मां गृहणी थीं। उन्होंने अपनी पढ़ाई सामोद और धौलपुर के सरकारी स्कूलों से की। ये स्कूल बड़े शहरों के सुविधायुक्त स्कूलों की तरह नहीं थे। शिक्षक अक्सर स्कूल नहीं आते थे, और बच्चों को सिर्फ ट्यूशन लेकर रटकर परीक्षा पास करनी पड़ती थी। लेकिन यह तरीका राजीव के अध्ययन का हिस्सा नहीं बना।​

12वीं में 39 से लेकर स्वीडन की कंपनी तक का सफर
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12वीं में 39% से लेकर स्वीडन की कंपनी तक का सफर​

​स्कूल शिक्षा के कारण राजीव एक औसत छात्र माने जाते थे। उन्होंने 1995 में बोर्ड परीक्षा दी और केवल 39% अंक प्राप्त किए। रसायन विज्ञान में ग्रेस मार्क्स मिलने की वजह से वे पास हो सके। इन परिस्थितियों ने उनकी पढ़ाई में रुचि को और कम कर दिया। आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण उन्होंने स्कूल के बाद पिता की फैक्ट्री में काम करना शुरू कर दिया। कुछ सालों बाद यह कारोबार बंद हो गया और परिवार मुश्किल हालात में आ गया।​

कम नंबर की वजह से नहीं नहीं मिले फेवरेट सब्जेक्ट
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कम नंबर की वजह से नहीं नहीं मिले फेवरेट सब्जेक्ट​

​तब राजीव ने किसी भी बी.एससी. कोर्स में दाखिले की कोशिश की, लेकिन कम अंकों के कारण उन्हें प्रमुख विज्ञान पाठ्यक्रमों में प्रवेश नहीं मिला। यहां तक कि राजस्थान के पीईटी कोचिंग में भी उन्हें मौका नहीं मिला। हताश होकर उन्होंने अपने स्थानीय किताब बेचने वाले से पूछा कि वे कौन-सी परीक्षा दे सकते हैं। उस समय किताब विक्रेता ने उन्हें आईआईटी-जेईई की सलाह दी और किताबें भी उपलब्ध कराईं।​

सबसे बड़ी चुनौती थी अंग्रेजी
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सबसे बड़ी चुनौती थी अंग्रेजी​

​अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती अंग्रेजी थी। उनके स्कूल में अंग्रेजी का सही प्रशिक्षण नहीं मिला था। इसलिए उन्होंने हर कठिन शब्द को समझने के लिए डिक्शनरी का सहारा लिया। कई बाधाओं के बावजूद वे पढ़ाई का आनंद लेने लगे और आखिरकार साल 2000 में आईआईटी-जेईई परीक्षा पास कर ली।​

आईआईटी-खड़गपुर से की पढ़ाई
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आईआईटी-खड़गपुर से की पढ़ाई​

​राजीव ने आईआईटी-खड़गपुर से औद्योगिक इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट में 5 वर्षीय डुअल डिग्री प्रोग्राम किया। इसके बाद उन्होंने निर्णय लिया कि वे आगे पढ़ाई करेंगे और स्वीडन के लूलिया विश्वविद्यालय से पीएचडी की।​

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