10 प्वाइंट में जानें अक्षय तृतीया का दिन क्यों माना जाता है शुभ, इस दिन क्या-क्या हुआ था

अक्षय तृतीया को हिंदू धर्म में अबूझ मुहूर्त माना जाता है। यानी इस दिन किसी भी मांगलिक कार्य को करने के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन ये दिन क्यों इतना खास माना जाता है। चलिए इस बारे में जानते हैं।

अक्षय तृतीया क्यों है खास
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अक्षय तृतीया क्यों है खास?

सनातन धर्म में अक्षय तृतीया पर्व का खास महत्व माना जाता है। इस दिन किसी भी तरह का शुभ कार्य बिना मुहूर्त देखें किया जा सकता है। कहते हैं इस दिन सोने-चांदी के आभूषण खरीदने से माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन को क्यों इतना खास माना गया है और इसका इतिहास क्या है। चलिए जानते हैं इस बारे में विस्तार से यहां।

अक्षय तृतीया पर ही सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी।
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अक्षय तृतीया पर ही सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी।

ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने हयग्रीव अवतार भी अक्षय तृतीया तिथि पर ही लिया था।
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ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने हयग्रीव अवतार भी अक्षय तृतीया तिथि पर ही लिया था।

अक्षय तृतीया पर ही भगवान विष्णु ने नर-नारायण अवतार लिया था।
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अक्षय तृतीया पर ही भगवान विष्णु ने नर-नारायण अवतार लिया था।

अक्षय तृतीया के दिन ही वेदव्यास और भगवान गणेश द्वारा महाभारत ग्रंथ को लिखने की शुरुआत हुई थी।
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अक्षय तृतीया के दिन ही वेदव्यास और भगवान गणेश द्वारा महाभारत ग्रंथ को लिखने की शुरुआत हुई थी।

अक्षय तृतीया के पर्व के दिन ही महाभारत के युद्ध का समापन हुआ था।
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अक्षय तृतीया के पर्व के दिन ही महाभारत के युद्ध का समापन हुआ था।

धार्मिक मान्यताओं  के अनुसार अक्षय तृतीया पर ही मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आई थीं।
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया पर ही मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आई थीं।

अक्षय तृतीया पर ही प्रत्येक वर्ष श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट खोले जाते हैं।
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अक्षय तृतीया पर ही प्रत्येक वर्ष श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट खोले जाते हैं।

अक्षय तृतीया तिथि पर ही श्री बांके बिहारी जी के मंदिर में श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं। ये दर्शन साल में सिर्फ एक बार ही अक्षय तृतीया के दिन होते हैं।
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अक्षय तृतीया तिथि पर ही श्री बांके बिहारी जी के मंदिर में श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं। ये दर्शन साल में सिर्फ एक बार ही अक्षय तृतीया के दिन होते हैं।

इस दिन से ही उड़ीसा के प्रसिद्ध पुरी रथ यात्रा के लिए रथों का निर्माण कार्य शुरू हो जाता है।
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इस दिन से ही उड़ीसा के प्रसिद्ध पुरी रथ यात्रा के लिए रथों का निर्माण कार्य शुरू हो जाता है।

कहा जाता है कि युधिष्ठिर को अक्षय पात्र अक्षय तृतीया के दिन मिला था। युधिष्ठिर को मिला अक्षय पात्र एक तांबे का बर्तन था जिसे सूर्य देव ने दिया था। यह बर्तन हर दिन पांडवों को भोजन की कभी न खत्म होने वाली आपूर्ति प्रदान करता था।
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कहा जाता है कि युधिष्ठिर को अक्षय पात्र अक्षय तृतीया के दिन मिला था। युधिष्ठिर को मिला अक्षय पात्र एक तांबे का बर्तन था जिसे सूर्य देव ने दिया था। यह बर्तन हर दिन पांडवों को भोजन की कभी न खत्म होने वाली आपूर्ति प्रदान करता था।

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