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Jitiya Puja Vidhi 2025: जीवितपुत्रिका व्रत की पूजा कैसे करें? जानें जितिया व्रत की पूजा विधि स्टेप बाय स्टेप

Jitiya Vrat, Puja Vidhi In Hindi (जितिया पूजा विधि): जितिया व्रत की विधि बहुत ही श्रद्धा और नियमों के साथ की जाती है। यह व्रत आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है, और यह मुख्य रूप से माताएं अपने पुत्रों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। इस व्रत को पूरे विधि-विधान के साथ किया जाता है। यहां से आप जितिया की पूजा विधि और साथ ही व्रत रखने की विधि के बारे में विस्तार से जानें।

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Jitiya Vrat, Puja Vidhi In Hindi (जितिया पूजा विधि): आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जितिया का व्रत किया जाता है। इस साल ये खास दिन कल यानी 14 सितंबर को है। जितिया व्रत बहुत ही श्रद्धा और नियमों के साथ किया जाता है। हर घर में माताएं अपने पुत्रों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। व्रत से एक दिन नहाय-खाय होता है और फिर अगले दिन निर्जल और निराहार उपवास रखती हैं। इस दिन महिलाएं भगवान जिमूतवाहन, चील-सियार, और अपने कुल-देवता की पूजा करती हैं। रात में पारंपरिक जिउतिया गीत गाए जाते हैं। यहां से आप जितिया व्रत की पूरी विधि जान सकते हैं। यहां पूजा और व्रत दोनों की विधि बताई गई है।

जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा विधि 2025 (AI Generated)

जितिया पूजा विधि (Jitiya Puja Vidhi In Hindi)

जितिया व्रत के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर ओंगठन की रस्म निभाती हैं। इस रस्म को निभाने के बाद ही जितिया व्रत की शुरुआत की जाती है। बता दें जितिया व्रत की मुख्य पूजा पूजा प्रदोष काल में की जाती है। इस दिन महिलाएं पूजन स्‍थल को गोबर से लीपकर साफ करती हैं या पूजा के स्थान पर गंगाजल छिड़कर उसे शुद्ध कर लेती हैं। इसके बाद पूजा स्थल पर एक छोटा-सा तालाब बनाया जाता है और उसके पास एक पाकड़ की डाल भी खड़ी की जाती है। फिर तालाब के जल में कुशा से बनी जीमूतवाहन की मूर्ति स्‍थापित की जाती है। साथ ही मिट्टी और गाय के गोबर से चील और सियारिन की मूर्तियां बनाई जाती हैं। इसके बाद विधि विधान पूजा की जाती है। इसके बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है। अंत में आरती करके भोग लगाया जाता है।

जीवित्पुत्रिका व्रत विधि (Jitiya Vrat Vidhi In Hindi)

जितिया व्रत से एक दिन पहले सप्तमी तिथि को व्रती महिलाएं खुरचन (यानी सात प्रकार के अनाज से बनी विशेष भोजन) खाकर व्रत की शुरुआत करती हैं, जिसे नहाय-खाय कहा जाता है। अगले दिन अष्टमी को सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत का संकल्प लेती हैं और दिनभर निर्जल और निराहार उपवास रखती हैं। और शाम में जितिया की कथा सुनी जाती है। रात्रि में जागरण होता है, जिसमें पारंपरिक जिउतिया गीत गाए जाते हैं। इसके बाद अगले दिन व्रत का पारण किया जाता है। जितिया व्रत पारण से पहले महिलाएं सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इसके बाद ही भात, मरुआ की रोटी और नोनी का साग खाकर अपना व्रत खोलती हैं।

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