अध्यात्म

4 सितंबर को है वामन जयंती, कल्कि द्वादशी के साथ बन रहा अद्भुत संयोग, जानें क्या है इस दिन का महत्व

Vaman Jayanti 2025 kab hai (वामन जयंती 2025 डेट), कल्कि द्वादशी कब है 2025: 4 सितंबर को गुरुवार के दिन वामन जयंती और कल्कि द्वादशी का संयोग बन रहा है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा बहुत फलदायी मानी जाती है। इस दिन भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि है। यहां देखें दिन का शुभ मुहूर्त और क्या है दोनों व्रत का महत्व।
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4 सितंबर को है वामन जयंती, कल्कि द्वादशी के साथ बन रहा अद्भुत संयोग (Pic: iStock)

Vaman Jayanti 2025 kab hai (वामन जयंती 2025 डेट), कल्कि द्वादशी कब है 2025: भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि (गुरुवार) को वामन जयंती और कल्कि द्वादशी दोनों हैं। इस दिन सूर्य सिंह राशि और चंद्रमा मकर राशि में रहेगा। दृक पंचांग के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 55 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय दोपहर के 1 बजकर 55 मिनट से शुरू होकर 3 बजकर 29 मिनट तक रहेगा।

आईएएनएस की एक खबर के मुताबिक, धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित है कि इस दिन भगवान वामन की विशेष पूजा करने का विधान है। यह भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक हैं। विष्णु पुराण (भागवत पुराण भी) के अनुसार, वामन देव ने भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को अभिजीत मुहूर्त में श्रवण नक्षत्र में माता अदिती और ऋषि कश्यप के पुत्र के रूप में जन्म लिया था।

त्रेता युग में भगवान विष्णु ने स्वर्ग लोक पर इंद्र देव के अधिकार को पुनः स्थापित करवाने के लिए वामन अवतार लिया था। पौराणिक कथा के अनुसार, असुर राजा बलि ने अपनी तपस्या और शक्ति के बल पर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। उनकी शक्ति से देवता परेशान थे। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी।

भगवान विष्णु ने एक छोटे ब्राह्मण बालक (वामन) का रूप धारण किया और राजा बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि मांगी। जब राजा बलि ने उन्हें यह दान दिया, तो वामन ने अपना आकार बढ़ाकर दो पगों में दो लोक (पृथ्वी और स्वर्ग) नाप लिए। तीसरे पग के लिए कोई जगह न होने पर, राजा बलि ने अहंकार छोड़कर अपना सिर झुकाया। वामन ने उनके सिर पर तीसरा पग रखकर उन्हें पाताल लोक भेज दिया। बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया और सभी देवताओं को उनका स्वर्ग लौटा दिया।

इसी के साथ ही इस दिन कल्कि महोत्सव भी है, यह दिन भगवान विष्णु के दसवें और अंतिम अवतार, भगवान कल्कि के अवतरण को समर्पित है।

धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित है कि कलयुग के अंत में सावन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को कल्कि अवतार में भगवान विष्णु का जन्म होगा। श्रीमद्भागवत पुराण के 12वें स्कंद के 24वें श्लोक के अनुसार जब गुरु, सूर्य और चंद्रमा एक साथ पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करेंगे तब भगवान विष्णु, कल्कि अवतार में जन्म लेंगे।

कल्कि पुराण के अनुसार, भगवान कल्कि का जन्म उत्तरप्रदेश, मुरादाबाद के एक गांव में होगा। अग्नि पुराण में भगवान कल्कि अवतार के स्वरूप का चित्रण दिया गया है। इसमें भगवान को देवदत्त नामक घोड़े पर सवार और हाथ में तलवार लिए हुए दिखाया गया है, जो दुष्टों का संहार करके सतयुग की शुरुआत करेंगे।

भगवान कल्कि कलयुग के अंत में तब अवतरित होंगे जब अधर्म, अन्याय और पाप अपने चरम पर होगा। उनका उद्देश्य पृथ्वी से पापियों का नाश करना, धर्म की फिर से स्थापना करना और सतयुग का आरंभ करना होगा। भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की पूजा उनके जन्म के पहले से ही की जा रही है।

इनपुट : आईएएनएस

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मेधा चावला author

टाइम्स नाउ नवभारत में मेधा चावला सीनियर एसोसिएट एडिटर की पोस्ट पर हैं और पिछले सात साल से इस प्रभावी न्यूज प्लैटफॉर्म पर फीचर टीम को लीड करने की जिम्म...और देखें

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