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क्या 'नो कॉस्ट EMI' धोखा है? जानिए असली खेल

क्या "नो कॉस्ट EMI" नाम के पीछे कंपनियां स्मार्ट मार्केटिंग करती हैं? और क्या यह सिर्फ धोखा है? ग्राहक सोचते हैं कि ब्याज नहीं लगेगा, लेकिन असल में लागत किसी और तरीके से वसूली जाती है। यहां हम नो कॉस्ट EMI को डिटेल में समझा रहे हैं।

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No Cost EMI: आपने ऑनलाइन शॉपिंग और बड़े इलेक्ट्रॉनिक स्टोर्स पर "नो कॉस्ट EMI" का ऑफर खूब देखा होगा। इसको लेकर दावा किया जाता है कि ग्राहक को बिना ब्याज के आसान किस्तों में सामान मिलेगा। लेकिन असलियत में इसमें कई छिपे हुए चार्जेज और ट्रिक्स छिपे होते हैं, जिनके चलते ग्राहक अक्सर ज्यादा पैसे चुका देता है। यहां हम नो कॉस्ट ईएमआई के बारे में डिटेल में बता रहे हैं।

No Cost EMI

'नो कॉस्ट EMI' का मतलब

नो कॉस्ट EMI का मतलब होता है कि ग्राहक से ब्याज नहीं लिया जाएगा। लेकिन बैंक और NBFC इस ऑफर को सीधे नहीं देते, बल्कि कंपनियां प्रोडक्ट की कीमत में हेरफेर करके ब्याज को पहले ही एडजस्ट कर देती हैं। या फिर प्रोसेसिंग फीस के रूप में ब्याज लिया जा सकता है। यानी ब्याज दिखता नहीं है, पर वसूला जरूर जाता है।

कैसे काम करता है यह मॉडल

अधिकतर मामलों में रिटेलर प्रोडक्ट की MRP पर डिस्काउंट देने के बजाय उसी रकम को EMI ब्याज चुकाने में लगा देता है। ग्राहक को लगता है कि उसने 0% ब्याज पर प्रोडक्ट खरीदा है, लेकिन असलियत में वह डिस्काउंट खो चुका होता है। इसके अलावा यदि ग्राहक किस्त देने में जरा भी देर करता है तो उससे भारी पेनाल्टी वसूली जाती है।

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