Nepal Election: नेपाल में संसद भंग करने के फैसले पर मचा सियासी तूफान, राजनीतिक दलों और वकीलों का राष्ट्रपति पर निशाना
नेपाल में संसद भंग करने का फैसला अब सिर्फ एक राजनीतिक घटनाक्रम नहीं रह गया है, बल्कि यह एक संवैधानिक बहस और लोकतांत्रिक भविष्य का सवाल बन चुका है। इस फैसले के खिलाफ नेपाली कांग्रेस, सीपीएन-यूएमएल, सीपीएन (माओवादी केंद्र) जैसे सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ-साथ नेपाल बार एसोसिएशन जैसे शीर्ष कानूनी निकायों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल और प्रधानमंत्री सुशीला कार्की (फोटो- AP)
क्या है मामला?
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राजनीतिक दलों की तीखी प्रतिक्रिया
- नेपाली कांग्रेस- नेपाल की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी नेपाली कांग्रेस ने संसद भंग करने के फैसले को “लोकतांत्रिक उपलब्धियों के खिलाफ” बताया है। पार्टी की केंद्रीय कार्यकारी समिति की आपात बैठक में कहा गया कि संविधान का उल्लंघन कर जो भी कदम उठाए जाएंगे, वे किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं होंगे। महासचिव विश्व प्रकाश शर्मा ने कहा, “संविधान की अवहेलना करने वाला हर कदम लोकतंत्र की नींव को कमजोर करता है और हम इसका विरोध करते हैं।”
- सीपीएन-यूएमएल- सीपीएन (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के महासचिव शंकर पोखरेल ने संसद भंग किए जाने को “चिंताजनक और विडंबनापूर्ण” करार दिया। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने मीडिया से कहा- “अतीत में संसद भंग करने के ऐसे प्रयासों को असंवैधानिक कहकर खारिज किया गया था। दुखद बात यह है कि अब वही ताकतें इस कदम का समर्थन कर रही हैं।”
- सीपीएन (माओवादी केंद्र)- पार्टी प्रवक्ता अग्नि प्रसाद सापकोटा ने इस फैसले को संवैधानिक ढांचे के विरुद्ध बताया। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सत्ता पक्ष ने मनमाने तरीके से संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग किया, तो देश की लोकतांत्रिक साख को गंभीर क्षति पहुंच सकती है।
वकीलों का विरोध और संवैधानिक चिंता
शिशुपाल कुमार टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल के न्यूज डेस्क में कार्यरत हैं और उन्हें पत्रकारिता में 13 वर...और देखें
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