Mutual Funds में निवेश से पहले एक्सपेंस रेश्यो जरूर चेक करें, ले पाएंगे ज्यादा रिटर्न

Mutual Funds
आज म्यूचुअल फंड निवेशकों के लिए एक पसंदीदा विकल्प बन चुका है। वजह साफ है यहां निवेश करने पर अच्छा खासा रिटर्न मिल सकता है। हालांकि, यह रिटर्न पूरी तरह बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है। इसलिए किसी भी फंड में निवेश करने से पहले उससे जुड़े जोखिम (Risk) को समझना बेहद जरूरी है।
जोखिम कैसे मापें?
म्यूचुअल फंड का जोखिम जानने के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं।
बेटा (Beta): अगर फंड का बीटा 1 से कम है, तो वह फंड कम रिस्क वाला माना जाता है। वहीं, अगर बीटा 1 से ज्यादा है तो इसका मतलब है कि फंड ज्यादा रिस्की है।
स्टैंडर्ड डेविएशन (Standard Deviation): यह बताता है कि फंड का रिटर्न कितना स्थिर है। प्रतिशत जितना कम होगा, फंड उतना ही सुरक्षित माना जाएगा। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी फंड का स्टैंडर्ड डेविएशन 5% है और दूसरे का 10%, तो पहला फंड ज्यादा सुरक्षित माना जाएगा।
शार्प रेश्यो (Sharpe Ratio): इसके जरिए यह पता चलता है कि रिस्क के मुकाबले फंड कितनी कमाई कर रहा है। अगर शार्प रेश्यो 1 से कम है, तो रिस्क कम है। 1 से 2 के बीच होने पर रिस्क सामान्य है। 2 से 3 के बीच होने पर रिस्क ज्यादा है और 3 से ऊपर होने पर फंड बहुत ज्यादा रिस्की माना जाता है।
निवेश से पहले और किन बातों का रखें ध्यान?
फंड का प्रदर्शन: सिर्फ पिछले 1-2 साल नहीं, बल्कि अलग-अलग समयावधि में फंड के रिटर्न की तुलना करें। इससे पता चलेगा कि फंड कितना स्थिर और भरोसेमंद है।
चार्जिस (Charges): म्यूचुअल फंड में कई तरह के खर्च होते हैं जैसे Expense Ratio, Exit Load और Management Fees। खासकर एग्जिट लोड तब वसूला जाता है जब निवेशक एक साल के अंदर पैसा निकालते हैं। इसलिए निवेश से पहले इन चार्जिस को ध्यान से देखें।
फंड की तुलना: अलग-अलग कैटेगरी के फंड्स की तुलना करना सही नहीं होता। हमेशा समान कैटेगरी के फंड्स की तुलना करें, तभी सही निर्णय ले पाएंगे।
यानी, म्यूचुअल फंड में निवेश करने से पहले रिस्क फैक्टर, चार्जिस और पिछले प्रदर्शन को समझना जरूरी है। तभी आप सुरक्षित और बेहतर रिटर्न की उम्मीद कर सकते हैं।
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