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डेवलपर्स से परेशान हैं होम बायर्स, RERA के पास शिकायतों का अंबार, सबसे ज्यादा नोएडा समेत इन 5 जिलों के केस

रियल एस्टेट सेक्टर की दिक्कतें कम होने का नाम नहीं ले रही है। तमाम सरकारी प्रयास के बावजूद होम बायर्स परेशान हैं। उन्हें समय पर घर नहीं मिल रहा। डेवलपर्स वादे के अनुसार प्रोजेक्ट बना कर नहीं दे रहे हैं।
डेवलपर्स से परेशान हैं होम बायर्स, RERA के पास शिकायतों का अंबार, सबसे ज्यादा नोएडा समेत इन 5 जिलों के केस

रियल एस्टेट सेक्टर में बहुत बदलाव आया है लेकिन अभी भी पारदर्शिता की बहुत कमी है। इसके चलते होम बायर्स अपने घर मिलने का इंतजार सालों से कर रहे हैं। नए होम बायर्स भी डेवलपर्स की नीतियों से परेशान है। इस कारण डेवलपर्स के पास शिकायतें लगातार बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश भू-सम्पदा नियामक प्राधिकरण (UP-RERA) के अनुसार गौतम बुद्ध नगर, लखनऊ, गाजियाबाद, वाराणसी और मेरठ में रियल एस्टेट प्रोजेक्ट से संबंधित होम बायर्स की शिकायतों की संख्या सबसे अधिक हैं। आपको बता दें कि यूपी रेरा को रेरा अधिनियम की धारा 31 के तहत 58,545 शिकायतें मिली हैं। प्राधिकरण ने रविवार को एक बयान में कहा कि इनमें से 50,812 मामलों का निपटारा किया जा चुका है, जो 85.20 प्रतिशत की निपटान दर को दर्शाता है।

इन मामलों को लेकर सबसे अधिक शिकायतें

UP-RERA के अनुसार, ज्यादातर शिकायतें कब्जे में देरी, धन वापसी और प्रवर्तकों के ब्याज भुगतान से संबंधित हैं। उत्तर प्रदेश में दर्ज की गई शिकायतें देश भर में दर्ज सभी उपभोक्ता शिकायतों का 39 प्रतिशत हैं। होम बायर्स के शिकायतों के मामले में शीर्ष पांच जिले गौतम बुद्ध नगर, लखनऊ, गाजियाबाद, वाराणसी और मेरठ हैं। ये जिले रियल एस्टेट विकास के प्रमुख केंद्र हैं और इस वजह से आवास परियोजनाओं और कब्जे में देरी से संबंधित ज्यादातर शिकायतें भी यही हैं।

तमाम प्रयासों के बावजूद दिक्कत खत्म नहीं हो रही

केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से होम बायर्स की परेशानियों को कम करने के लिए कई बड़े बदलाव किए गए हैं। हालांकि, इसके बावजूद अभी भी प्रॉपर्टी बाजार में सबसे ज्यादा शिकायतें हैं। रियल एस्टेट सेक्टर में सबसे आम समस्या प्रोजेक्ट डिले की है, जहां खरीदारों को तय समय पर फ्लैट का कब्जा नहीं मिलता। इसके चलते उन्हें एक साथ EMI और किराया दोनों भरना पड़ता है। बिल्डर्स अक्सर छिपे हुए चार्ज वसूलते हैं और वादे की अनुसार प्रोजेक्ट में सुविधाएं मुहैया नहीं कराते। कई प्रोजेक्ट कानूनी पचड़ों में फंस जाते हैं और सालों तक अटके रहते हैं।

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आलोक कुमार author

आलोक कुमार टाइम्स नेटवर्क में एसोसिएट एडिटर के पद पर कार्यरत हैं। इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल और प्रिंट मीडिया में उन्हें 17 वर्षों से अधिक का व्यापक अनुभव ह...और देखें

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