मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपने निवास पर एक सर्वदलीय बैठक बुलाई और इस बैठक में सभी दलों ने राज्य में 27 फीसद ओबीसी आरक्षण लागू करने पर सहमति जतायी। इस बैठक में भाजपा के अलावा कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सहित अन्य दलों के नेता शामिल थे।
मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर लंबे समय से चल रही बहस ने एक बार फिर नया मोड़ ले लिया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने आज यानी गुरुवार 28 अगस्त को मुख्यमंत्री निवास पर सर्वदलीय बैठक बुलाकर इस विषय पर बड़ा निर्णय लिया। बैठक में भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सहित तमाम दलों ने भाग लिया। सभी दलों ने एकमत होकर यह संकल्प लिया कि किसी भी कीमत पर राज्य में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण लागू किया जाएगा।
मध्य प्रदेश में 27 फीसद ओबीसी आरक्षण पर सभी दलों में सहमति
बैठक के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि यह सिर्फ सरकार का नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश का मुद्दा है। सुप्रीम कोर्ट में 22 सितंबर से इस मामले की सुनवाई रोजाना होगी। उन्होंने कहा कि अब जरूरत इस बात की है कि सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग पक्ष रखने वाले वकील एक मंच पर आएं। इसीलिए 10 सितंबर से पहले सभी वकीलों की संयुक्त बैठक कराई जाएगी, ताकि एकमत होकर मामले को आगे बढ़ाया जा सके।
हर योग्य उम्मीदवार को मिले नौकरी का अवसर
मुख्यमंत्री ने बताया कि इस समय 14 फीसदी अभ्यर्थियों का मामला क्लीयर हो चुका है, लेकिन शेष 13 फीसदी अभ्यर्थियों का मामला लंबित है। सरकार और विपक्ष दोनों चाहते हैं कि इस मुद्दे का जल्द समाधान निकले, ताकि कोई भी उम्मीदवार आयु सीमा या अन्य कारणों से वंचित न रह जाए। सीएम ने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि हर योग्य उम्मीदवार को नौकरी का अवसर मिले।
ओबीसी आरक्षण को लेकर अब तक का सफर काफी जटिल रहा है। मार्च 2019 में सरकार ने अध्यादेश जारी कर 14 फीसदी की जगह 27 फीसद आरक्षण लागू किया था। इसके बाद विधानसभा ने इसे अधिनियम का स्वरूप भी दिया। हालांकि, कई याचिकाओं के चलते हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाई। इसके चलते एमपीपीएससी, पीईबी और टीईटी जैसी भर्तियों पर भी असर पड़ा।
वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में अंतिम सुनवाई 22 सितंबर 2025 से शुरू होने वाली है। अब सभी दलों की एकजुटता और सर्वदलीय संकल्प से यह उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही ओबीसी वर्ग को उनका 27 फीसदी आरक्षण मिल सकेगा और वर्षों से अटकी भर्तियों का रास्ता साफ होगा।
आरक्षण के लिए सरकार की कोशिशें
मध्य प्रदेश सरकार ने ओबीसी आरक्षण के पक्ष में लगातार प्रयास किए हैं। जबलपुर हाईकोर्च में लंबित विभिन्न याचिकाओं (WP No.-25181/2019, WP No.-8923/2020 सहित 40 अन्य) को WP No.-5901/2019 के साथ जोड़ा गया। रोस्टर नोटिफिकेशन पर लगी रोक और अन्य अंतरिम आदेशों के कारण उत्पन्न परिस्थितियों से निपटने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने परीक्षा परिणामों को दो भागों में घोषित करने का निर्देश दिया—87 फीसद पदों पर अंतिम परिणाम और 13 फीसद पदों पर प्रावधिक परिणाम घोषित करने के निर्देश जारी किए गए।
2 सितंबर 2021 को मध्यप्रदेश पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य पिछड़े वर्गों की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति का अध्ययन, पिछड़ेपन के कारणों की पहचान और विशेष परिस्थितियों को चिह्नित करना था। आयोग ने 5 मई 2022 को पहली और 12 मई 2022 को दूसरी रिपोर्ट सरकार को सौंपी।
18 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने सुरेश महाजन बनाम मप्र शासन मामले में स्थानीय निकाय चुनावों में 35% तक ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव कराने की अनुमति दी, जो राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिहाज से ऐतिहासिक कदम था।
आखिरकार 16 फरवरी 2023 को हाईकोर्ट ने WP No.-24847/2022 (हरिशंकर बारोधिया बनाम मप्र शासन) मामले में 87%-13% फार्मूले को वैध ठहराया, जिससे सरकार के प्रयासों को मजबूती मिली।
बैठक में कौन-कौन हुए शामिल
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल पर आयोजित इस सर्वदलीय बैठक में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हेमंत खण्डेलवाल, पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल, मंत्री कृष्णा गौर, पिछड़ा वर्ग कल्याण अध्यक्ष रामकृष्ण कुसमारिया, लोकसभा सदस्य, सतना गणेश सिंह, मऊगंज विधायक प्रदीप पटेल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी, विधायक-नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव, बहुजन समाज पाटी प्रदेश अध्यक्ष रमाकांत पिप्पल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सचिव अरविंद श्रीवास्तव, प्रदेश समाजवादी पार्टी अध्यक्ष मनोज यादव, छत्तीसगढ़ विधायक-प्रदेश अध्यक्ष गोंडवाना गणतंत्र पार्टी तलेश्वर सिंह मरकाम, प्रदेश अध्यक्ष आम आदमी पार्टी-महापौर सिंगरौली रानी अग्रवाल शामिल रहे।