दिल्ली में करीब 700 साल पुरानी एक मस्जिद है, जिसमें एक बार नहीं बल्कि दो बार लंबे समय के लिए गांव बस गया था। शुरुआत में मस्जिद के रूप में इस्तेमाल हुई इस बिल्डिंग में अब धार्मिक गतिविधियां नहीं होतीं, लेकिन आज भी यह दिल्ली के 700 साल पुराने इतिहास में झांकने का एक अच्छा झरोखा है।
दिल्ली का कण-कण में इतिहास है। मध्य काल की बात करें या आधुनिक इतिहास की, दिल्ली हमेशा से ही सत्ता का केंद्र रही है। सत्ता का केंद्र होने के कारण यहां पर कई राजवंशों ने राज किया। अपने शासन के दौरान उन्होंने दिल्ली में कई तरह के निर्माण करवाए, जो आज पुरातात्विक दृष्टि से बहुत ही अहम हैं। हालांकि, कुछ ऐसे निर्माण का रखरखाव नहीं होने के कारण वह बर्बाद हो चुके हैं, जबकि कुछ सदियों बाद भी जस के तस खड़े हैं। घुमक्कड़ी में आज हम देखने चलेंगे लगभग 700 साल पुरानी एक बिल्डिंग को जिसे जहांपनाह कहा जाता है। तो फिर देर किस बात की, चलिए दिल्ली के इतिहास में गुम जहांपनाह को तलाशते हैं और उसकी खास बातों से आपको रूबरू कराते हैं -
700 सालों का इतिहास है जहांपनाह में
नाम क्या है जहांपनाह?
ये प्रश्न ही उत्तर है। क्योंकि इस जगह का नाम ही जहांपनाह है। इसे बेगमपुर मस्जिद (Begumpur Mosque) के नाम से भी जाना जाता है। इस बिल्डिंग को जहांपनाह की जामी मस्जिद (Jam'i Masjid of Jahanpanah) भी कहा जाता है। पूर्व में यह एक जुमा मस्जिद थी, जिसमें हर शुक्रवार को नमाज होती थी। हालांकि, अब इसके कुछ हिस्से खंडहर हो गए हैं।
बेगमपुर मस्जिद को दिल्ली सल्तनत के तुगलक राजवंश के समय साल 1343 में बनाई गई थी। इस मस्जिद तको दिल्ली सल्तनत के केंद्र में बनाया गया था। जहांपनाह नाम से मशहूर यह बिल्डिंग पूर्व में एक विशाल मस्जिद थी जो 94x90 मीटर यानी 307X295 फीट में फैली है। जहांपनाह का मतलब ही धरती का केंद्र होता है। इस गांव को साल 1327 में मोहम्मद बिन तुगलक ने बसाया था। बाहरी आक्रमणकारियों से बचाने के लिए तुगलक ने दिल्ली में शहर बसाया। इस शहर के कुल 13 गेट हैं और कई स्मारक भी हैं, जो तुलगक वंश ने बनाई थीं।
इस बिल्डिंग के बारे में एक मान्यता यह भी है कि इसे फिरोज शाह तुगलक (1351-1388) के प्रधानमंत्री खान जाहां जुनानशाह ने बनाया था। उसने कुल सात मस्जिदें बनाई थीं। आश्चर्य की बात है कि एक मोरक्कन मुस्लिम विद्वान इब्न-बतूता, जिसने इतिहास में किसी भी अन्य खोजकर्ता से अधिक यात्राएं कीं, उसने अपने यात्रा वृतांतों में बेगमपुर मस्जिद का कोई जिक्र नहीं किया। बता दें कि इब्न बतूता साल 1333 से 1341 तक भारत में था।
लंबे समय तक मस्जिद के अंदर गांव बसा रहा
तस्वीर साभार : Times Now Digital
मस्जिद के अंदर बस गया गांव
20वीं सदी के शुरुआती वर्षों में कई दशकों तक मस्जिद के रूप में इस्तेमाल होने के बाद यहां एक गांव बस गया। हालांकि, बाद में इसे साफ करने और जीर्णोद्धार का काम भी शुरू हुआ। साल 1902 में एक अंग्रेज हर्बर्ट चार्ल्स फांशवे ने बेगमपुर मस्जिद के बारे में लिखा है। उन्होंने लिखा यह जहां खान की बनाई बहुत शानदार मस्जिद है और यहां जरूर जाना चाहिए। उन्होंने लिखा कुछ ग्रामीणों ने इस मस्जिद को अपना घर बना लिया है। साथ ही उन्होंने इसे शाहजहां की जामा मस्जिद के बाद दिल्ली की सबसे बड़ी मस्जिद करार दिया। 1947 में देश के आजाद होने के बाद पाकिस्तान से आए शरणार्थी भी लंबे समय तक इस मस्जिद के अंदर रहे। जिन्हें बाद में कहीं और बसाया गया।
जहांपनाह यानी बेगमपुर मस्जिद दिल्ली के शहरीकृत गांव बेगममुर में है। बेगमपुर मस्जिद या जहांपनाह दक्षिण दिल्ली में मालवीय नगर में अधचीनी और हौज खास के पास है। यह श्री औरबिंदो लेन, माता मंदिर के पास मौजूद है। आज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) इस राष्ट्रीय महत्व के धरोहर की देखरेख करता है।
कैसे पहुंचें यहां
जहांपनाह को देखने का मन है तो यह दक्षिण दिल्ली के मालवीय नगर में मौजूद है। जहां के लिए दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों से डीटीसी की बसें मिल जाती हैं। आप अपनी कार, टैक्सी या ऑटो से भी यहां आसानी से पहुंच सकते हैं। अगर मेट्रो से आने का मन बना रहे हैं तो यहां आने के लिए आपको नजदीकी मेट्रो स्टेशन हौज खास पड़ेगा। मालवीय नगर मेट्रो स्टेशन से भी यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। हौज खास किला और विजय मंडल भी यहां पास में ही है।