दिल्ली के इतिहास का एक ऐसा महल जिसे सिर्फ शिकार करने के दौरान राजा के रहने के लिए बनाया गया था। राजा की कथित वंशज एक विधवा रानी ने इस महल में 62 साल की उम्र में आत्महत्या की और उसी रानी का बेटा 2017 में यहां मृत मिला। इसे दिल्ली की सबसे ज्यादा डरावनी जगह भी माना जाता है।
नई दिल्ली देश की राजधानी है। यहां के बारे में बहुत सी बातें आप जानते होंगे। लेकिन कई ऐसी बातें भी हैं, जिनके बारे में कम ही लोगों को पता होता है। विशेषतौर पर दिल्ली में कई ऐसी जगहें हैं, जिनके इतिहास के बारे में लोगों को कोई जानकारी नहीं है। ऐसी ही एक जगह के बारे में आज हम घुमक्कड़ी में बात करेंगे। दिल्ली हमेशा से ही सत्ता का केंद्र रही है। दिल्ली के तख्त पर बैठने वाले को हिंदुस्तान का राजा या शहंशाह माना जाता था। दिल्ली पर प्रतिहार, तोमर, गुलाम वंश, खिजली वंश, लोदी वंश, तुगलक, मुगलों, मराठों और अंग्रेजों आदि ने राज किया और सभी ने अपनी निशानियां इस शहर को दी हैं। इसी में से एक निशानी के सफर पर आज घुमक्कड़ी में चलते हैं। जिस जगह की बात हम यहां करेंगे उसे शिकार के लिए बनाया गया था। तो फिर देर किस बात की चलिए -
दिल्ली के दिल में है विलायत महल
नाम क्या है?
जैसा कि आपने ऊपर फोटो में नाम पढ़ा होगा, इस जगह को विलायत महल कहा जाता है। लेकिन इसका फेमस नाम, जिसे ज्यादातर लोग जानते हैं, वह माल्चा महल है। आपमें से कई लोगों ने माल्चा महल का नाम सुना होगा। इसे दिल्ली की सबसे ज्यादा डरावनी जगहों (Haunted Places of Delhi) में से एक माना जाता है।
माल्चा महल देश की राजधानी नई दिल्ली के पॉश इलाके चाणक्यपुरी में है। यह इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) के दिल्ली अर्थ स्टेशन के बिल्कुल बगल में है। माल्चा महल दिल्ली में रायसीना हिल्स के पास एक ऐतिहासिक गांव था। इसके अलावा यहां रायसीना, टोडापुर, अलीगंज, पिलांजी, जयसिंगपुरा और कुशक गांव भी थे। इन सभी गांवों को अंग्रेजों ने 1920 के दशक में यहां से हटा दिया था। इन गांवों को हटाकर ही अंग्रेजों ने नई दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया और इन गांवों की जमान पर वायसराय हाउस बनाया, जिसे आज राष्ट्रपति भवन कहा जाता है।
माल्चा महल को एक समय दिल्ली पर राज करने वाले फिरोज शाह तुगलक ने बनवाया था। इस महल को उस समय शिकार करने के लिए बनवाया गया था। इस महल का संबंध अवध के नवाब वाजिद अली शाह से भी जोड़ा जाता है। 1854 में अंग्रेजों ने नवाब वाजिद अली शाह को उनकी कुर्सी से हटाकर उन्हें कलकत्ता भेज दिया था, जहां 3 दशक बाद उनका निधन हुआ। इसके बाद उनके परिवार के लोग देशभर में बिखर गए।
माल्चा महल के खंडहर
तस्वीर साभार : Twitter
आजादी के बाद माल्चा महल का इतिहास
1947 में देश की आजादी के बाद भारत सरकार ने नवाब वाजिद अली शाह की कथित परपोती बेगम विलायत महल को श्रीनगर में रहने के लिए एक घर दिया। लेकिन 1971 में उनका यह घर जल गया। इसके बाद वह घर की तलाश में अपने बच्चों और कुत्तों के साथ दिल्ली आ गईं। रिपोर्ट के अनुसार 1985 में भारत सरकार ने मालचा महल बेगम विलायत महल को रहने के लिए दिया। तभी से इसे विलायत महल भी कहा जाता है, पूर्व में इसे बिस्तादरी के खंडहर भी कहते थे। कहा जाता है कि साल 1993 में 62 साल की उम्र में बेगम विलायत महल ने यहां आत्महत्या कर ली थी। विलायत महल की बेटी शकीना महल भी यहां रही और साल 2017 तक शकीना महल के भाई और विलायत महल के बेटे राजकुमार अली राजा यहां पर रहे। वह अपने को साइरस कहा करते थे। साल 2017 में अली राजा यहां मृत मिले, उसके बाद माल्चा महल खाली है। माल्चा महल अब जर्जर हालत में है और इसके अवशेष ही बचे हैं।
स्थानीय लोगों का मानना है कि माल्चा महल भूतिया है। यहां पर बेगम विलायत महल की आत्मा आज भी घूमती है, जिन्होंने 1993 में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। विलायत महल ने 1970 के दशक में श्रीनगर में घर जलने के बाद नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के फर्स्ट क्लास वेटिंग रूम में 9 साल तक धरना प्रदर्शन किया, जिसके बाद उन्हें माल्चा महल अलॉट किया गया। जितने समय तक बेगम विलायत महल और उनका परिवार यहां रहा, यह महल रहस्यमय ही रहा। ऐसा इसलिए क्योंकि यह परिवार बाहरी लोगों का यहां आना पसंद नहीं करता था।
माल्चा महल चाणक्यपुरी में मौजूद है। यहां पहुंचने के लिए नजदीकी मेट्रो स्टेशन धौलाकुआं और दुर्गाबाई देशमुख साउथ कैंपस मेट्रो स्टेशन हैं। दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों से यहां पहुंचने के लिए बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं, जो सरदार पटेल मार्ग तक आपको पहुचा देंगी। इसके अलावा सेंट्रल दिल्ली से ऑटो-टैक्सी के जरिए भी यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां पहुंचने के लिए सरदार पटेल मार्ग से बिस्तादरी रोड से होकर जाना होता है। यहां पास में ही बुद्ध जयंती पार्क और दिल्ली पोलो क्लब भी हैं।