दिल्ली एक ऐतिहासिक शहर है और यहां पर राज करने वाले सभी राजवंशों के अवशेष आज भी यहां देखने को मिलते हैं। दिल्ली में एक ऐसा किला भी मौजूद है, जिसे बनवाने के लिए दिल्ली में मौजूद सभी मजदूरों को लगा दिया गया था। इसके बावजूद सिर्फ 6 साल बाद ही राजवंश ने इस किले को छोड़ दिया।
दिल्ली के इतिहास में कई ऐसी बातें दफन हैं, जिन्हें जानना बेहद रोचक है। दिल्ली के इतिहास की बात होती है तो बात दिल्ली पर राज करने वाले तमाम वशों की होती है। बात चौहान वंश से लेकर खिलजी, मंगोल, तुगलक, मुगल और अंग्रेजों तक की होती है। बात दिल्ली सल्तनत की होती है। दिल्ली पर राज करने वाले हर वंश ने दिल्ली के इतिहास को समृद्ध किया है। आज की दिल्ली में इन वंशों की कई निशानियां मौजूद हैं। दिल्ली के अलग-अलग वंशों ने यहां पर क शहर बसाए। आज हम बात कर रहे हैं, लालकोट और सिरी के बाद दिल्ली के तीसरे ऐतिहासिक शहर तुगलकाबाद के बारे हैं। इस शहर की कहानी बहुत ही रोचक और रहस्यमय है। चलिए घुमक्कड़ी में आज तुगलकाबाद ही चलते हैं -
तुगलकाबाद का किला
कब और किसने बनाया तुगलकाबाद का किला
तुगलकाबाद के किले को गयासुद्दीन तुगलक ने बनाया था। गयासुद्दीन दिल्ली सल्तनत पर राज करने वाले मोहम्मद तुगलक का पिता था और तुगलक राजवंश की शुरुआत गयासुद्दीन ने ही की थी। उस समय दिल्ली सल्तनत पर राज करने वाले गयासुद्दीन तुगलक ने 1321 में इस किले की नींव रखी थी। गयासुद्दीन अपने लिए एक ऐसी नई राजधानी बसाना चाहता था और चाहता था जो उसकी शक्ति का परिचय दे और किला मजबूती का दूसरा नाम हो। किले की दीवारें कई जगहों पर 25 मीटर तक ऊंची हैं, जो शहर को हिफाजत देतीं। यहां पर अनाज के भंडार, तालाब और बावड़ियां बनाई गई थीं। हथियारों और दौलत के लिए अलग से चैंबर बनाए गए थे। इस तरह से तुगलकाबाद एक आत्मनिर्भर राज्य था।
जैसा कि हमने ऊपर बताया कि गयासुद्दीन ने ही तुगलक राजवंश की नींव रखी थी। इससे पहले वह दिल्ली पर राज करने वाले सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी का अजेय जनरल था। उस समय उसका नाम गाजी मलिक था। गाजी के पिता तुर्क और मां हिंदू जाट थी। वह बहुत ही बलशाली था, यही कारण है कि अलाउद्दीन खिलजी ने उसे प्रोविंशियल गवर्नर नियुक्त किया था। अलाउद्दीन खिलजी की मौत के बाद उसकी सल्तनत खतरे में पड़ गई थी। खिलजी का बेटा सुल्तान कुतुबद्दीन मुबारक शाह गद्दी पर बैठा, लेकिन जल्द ही उसके प्रधानमंत्री खुसरो खान या शाह ने उसकी हत्या करके सत्ता हथिया ली। वह सुल्तान नसीरूद्दीन खुसरो शाह के नाम से गद्दी पर बैठ गया। कुछ समय के बाद उसे गाजी मलिक ने हरा दिया और सत्ता पर कब्जा कर दिया। सत्ता कब्जाने के बाद गाजी मलिक ने स्वयं को गियास 'उद 'दिन घोषित कर दिया, जिसका मतलब होता है धर्म इस्लाम के सहायक। इस तरह से गाजी मलिक का नाम गयासुद्दीन तुगलक हो गया।
खिलजी से कहा था किला बनाने को
एक बार गाजी मलिक मौजूदा तुगलकाबाद की तरफ आया और उसे यह जगह बहुत पसंद आ गई। कहा जाता है कि गाजी मलिक नाम ने सुल्तान को इस जगह किला बनाने का सुझाव दिया था। तब खिलजी ने गाजी से कहा था कि जब खुद सुल्तान बनोगे तो यहां किला बना लेना। बाद में जब गाजी मलिक ने गयासुद्दीन तुगलक के रूप में दिल्ली सल्तनत पर कब्जा किया तो उसने यहां किला बनवाया। इस किले को बनवाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। एक समय तो ऐसा भी आया जब गयासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली के सभी मजदूरों को किला बनाने के काम में लगा दिया। दो साल में तैयार हुआ किला आज भले ही बहुत बुरी हालत में हो, लेकिन बीते युग की झलक दिखलाता है। आज भी आप इसकी विशाल दीवारों के बीच से गुजरकर, महल के अवशेषों को देखकर उस समय की इसकी भव्यता को अनुभव कर सकते हैं।
एक संत का श्राप
जैसा कि हमने ऊपर बताया गयासुद्दीन तुगलक ने शहर के सभी मजदूरों को तुगलकाबाद के किले में काम पर लगा दिया था। उसी समय एक सूफी संत निजामुद्दीन औलिया अपने निवास पर एक बावड़ी बनवा रहे थे। सभी मजदूरों को तुगलकाबाद का किला बनाने में लगा दिया गया था, इसलिए निजामुद्दीन औलिया को मजदूर ही नहीं मिल रहे थे। कुछ मजदूर दिनभर सुल्तान के किले में काम करने के बाद रात के अंधेरे में निजामुद्दीन औलिया की बावड़ी में काम करते थे। जब सुल्तान को इस बात की जानकारी मिली तो उसने तेल की आपूर्ति बंद कर दी, ताकि अंधेरे में काम न हो सके। कहा जाता है कि अपनी जादुई ताकत से निजामुद्दीन औलिया ने बावड़ी के पानी को ही तेल में बदल दिया और उनका काम नहीं रुका। कहा जाता है कि गयासुद्दीन तुगलक के तेल रोकने के फरमान से नाराज निजामुद्दीन औलिया ने किले को श्राप दिया, जिसमें उन्होंने कहा, 'या रहे उजाड़, या बसे गुर्जर'। शायद यही कारण है कि 1321 में तुगलकाबाद किले का निर्माण शुरू हुआ और 1327 में ही तुगलक राजवंश ने यह किला छोड़ दिया।
गयासुद्दीन तुगलक और निजामुद्दीन औलिया से जुड़ी एक और कहानी मशहूर है। बात 1325 की है, गयासुद्दीन बंगाल विजय के अभियान पर था। सुल्तान दिल्ली के काफी करीब था। गयासुद्दीन ने निजामुद्दीन औलिया से कहा कि उसके दिल्ली लौटने से पहले वह दिल्ली छोड़ दें। इस बीच गयासुद्दीन को पता चला कि उसका बेटा मोहम्मद बिन तुगलक भी निजामुद्दीन औलिया का शिष्य बन गया है। निजामुद्दीन औलिया ने मोहम्मद बिन तुगलक के सुल्तान बनने की भविष्यवाणी भी कर दी थी। इस बात की जानकारी मिलने पर गयासुद्दीन ने निजामुद्दीन औलिया को दिल्ली छोड़कर जाने का हुक्म दिया। उस समय गयासुद्दीन को डर था कि कहीं सुल्तान की गद्दी के लालच में उसका बेटा मोहम्मद बिन तुगलक उसकी हत्या न करवा दे। सुल्तान गयासुद्दीन दिल्ली के पास अफगानपुर पहुंचा तो औलिया के शुभचिंतकों ने उनसे दिल्ली छोड़ने की गुजारिश की। इस पर औलिया ने कहा, 'हुनूज दिल्ली दूर अस्त!' यानी दिल्ली अभी दूर है। गयासुद्दीन के सम्मान में जो शामियाना बनाया गया था, वह ढह गया और उसकी इसमें दबने से मौत हो गई। चौदहवीं सदी के इतिहासकार इब्न-बतूता के अनुसार गयासुद्दीन के खिलाफ साजिश हुई और उसकी हत्या की गई थी। यानी गयासुद्दीन का डर सही साबित हुआ।
तुगलकाबाद भले ही हमेशा एक अधूरा शहर रहा हो, लेकिन इसके खंडहर आज भी इसके अतीत के आकर्षण की झलक दिखलाते हैं। तुगलक वंश की वास्तुकला की पहचान, विशाल पत्थर की दीवारें, शहर के ऊबड़-खाबड़ भूभाग के चारों ओर फैली है। यहां पर गोलाकार वॉचटावर बने थे, जिनमें से कुछ 2 मंजिला थे। तुगलकाबाद में 56 कोट और 52 गेट थे, जिनमें से आज सिर्फ 13 ही बचे हैं। इन 14 दरवाजों के नाम इस प्रकार हैं -
दिल्ली दरवाजा
नीमवाला दरवाजा
धोबन दरवाजा (पश्चिम की तरफ)
चकला खाना दरवाजा (उत्तर)
भाटी दरवाजा
रावल दरवाजा
बिंडोली दरवाजा (पूर्व )
अंधेरिया दरवाजा
हाथी दरवाजा (दक्षिण की तरफ)
खिड़की दरवाजा
होदी दरवाजा
लाल घंटी दरवाजा
तहखाना दरवाजा
तलाकी दरवाजा
यहां बारिश के पानी को रोकने के लिए 7 टैंक बनाए गए थे, जो शहर की पानी की आवश्यकताओं को पूरा करते थे। किले की दीवारें काफी मोटी हैं और इसकी दक्षिणी दीवारें 40 फीट तक ऊंची हैं। बीच-बीच में बनाए गए झरोखे सैनिकों के तीर चलाने के लिए बनाए गए थे। यहां थोड़ी ही दूरी पर लाल बलुआ पत्थर का एक मकबरा है। इसके बारे में माना जाता है कि तुगलक के शासनकाल में ही इसे बनाया गया था। गयासुद्दीन तुगलक और उसकी पत्नी के साथ ही उसके बेटे और उत्तराधिकारी मोहम्मद बिन तुगलक को यहीं पर दफनाया गया था।