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बरसात में क्यों आ जाती है दिल्ली में बाढ़, जानिए क्यों कम हो रही है यमुना की जलधारण क्षमता

यमुना नदी की सफाई के दावों के बावजूद, पिछले 60 वर्षों में इसकी जल धारण क्षमता में 50% की कमी आई है यानी करीब आधे सदी में नदी की गहराई आधी रह गई है। हथिनी कुंड से छोड़े गए पानी के कारण गाद के प्रभाव से दिल्ली की सड़कों पर जलभराव हो जाता है। आइए जानते हैं इसका कारण।
यमुना का जलस्तर थोड़ा बढ़ने पर क्यों डूब जाती है दिल्ली? चौंकाने वाली वजह आई सामने

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Yamuna Flood Reason: दिल्ली की जीवनदायिनी मानी जाने वाली यमुना नदी आज अपने अस्तित्व के सबसे गंभीर संकट से गुजर रही है। पिछले छह दशकों में यमुना की जलधारण क्षमता में 50 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। इसका सीधा कारण है, नदी तल में जमा गाद, बाढ़ क्षेत्र में तेजी से हो रहा अतिक्रमण और अनियंत्रित रेत खनन। हर बार सरकार की ओर से नदी की सफाई को लेकर बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, टेंडर जारी होते हैं, बजट आवंटित किया जाता है, लेकिन यमुना की गहराई घटती ही जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समय रहते गाद हटाने (ड्रेजिंग) जैसे जरूरी कदम उठाए गए होते, तो हथिनी कुंड बैराज से छोड़ा गया पानी दिल्ली की सड़कों पर बाढ़ नहीं लाता, बल्कि यमुना खुद उसे समाहित कर पाती।

जलस्तर की तुलना से समझें स्थिति

यमुना की वर्तमान स्थिति पर नजर डालें तो स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है। सितंबर 1978 में जब हथिनी कुंड से 8 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया था, तब यमुना का जलस्तर 207.49 मीटर पहुंचा था। जुलाई 2023 में केवल 3.59 लाख क्यूसेक पानी छोड़े जाने पर जलस्तर 208.66 मीटर हो गया और 2025 में 3.29 लाख क्यूसेक पानी पर भी जलस्तर 204.88 मीटर दर्ज किया गया। यह साफ संकेत है कि यमुना अब पहले जितना पानी धारण नहीं कर पा रही है, और इसका सीधा असर दिल्ली की बाढ़ स्थितियों पर पड़ रहा है।

गाद, अतिक्रमण और निर्माण बने बाधा

केंद्रीय जल आयोग के अधिकारियों के अनुसार, यमुना की गहराई में कमी और प्रवाह में बाधा का सबसे बड़ा कारण है, तलहटी में जमा गाद और नदी क्षेत्र में अनधिकृत निर्माण। दिल्ली में यमुना के 22 किलोमीटर क्षेत्र में तीन बैराज और 20 पुल बनाए गए हैं, जो नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करते हैं। सिग्नेचर ब्रिज, आईटीओ बैराज और यमुना बैंक जैसे इलाकों में नदी की तलहटी में रेत के टीले बन गए हैं, जो जल प्रवाह को और जटिल बनाते हैं।

संसदीय समिति की रिपोर्ट ने जताई थी चिंता

फरवरी 2024 में संसद में पेश यमुना पर स्थायी समिति की रिपोर्ट में भी इस समस्या को गंभीरता से उठाया गया था। रिपोर्ट में बताया गया कि हरियाणा में पिछले 5 साल में 3,792 अवैध रेत खनन मामले दर्ज किए गए। अवैध खनन और मलबा डंपिंग ने नदी के मार्ग को बदल दिया है। समिति ने ड्रेजिंग और पोर्टल आधारित निगरानी तंत्र बनाने की सिफारिश की थी, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

भविष्य में और गंभीर हो सकते हैं हालात

साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल के समन्वयक बीएस रावत कहते हैं कि "अगर नदी का प्रवाह इसी तरह बाधित होता रहा, और गाद की सफाई नहीं की गई, तो आने वाले वर्षों में दिल्ली को बाढ़ की भीषण स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।" यमुना खादर में अब भी सड़कें, निर्माण सामग्री, और अनधिकृत निर्माण किए जा रहे हैं। निर्माण कार्यों के बाद छोड़े गए मलबे से नदी का प्रवाह और अधिक जाम हो जाता है, जिससे नदी की प्राकृतिक स्वच्छता क्षमता भी समाप्त होती जा रही है।

लापरवाही बनी बड़ी चुनौती

बार-बार चेतावनी के बावजूद यमुना के लिए कोई ठोस योजना लागू नहीं की गई है। जब-जब बाढ़ का खतरा सामने आता है, तब प्रशासन जागता है, लेकिन जैसे ही खतरा टलता है, योजनाएं फाइलों में दबी रह जाती हैं। इस समय जरूरत है संयुक्त प्रयासों की, जिसमें दिल्ली और यमुना बेसिन के सभी राज्यों को मिलकर अवैध खनन रोकने, मलबा हटाने, और गाद साफ करने की ठोस कार्ययोजना बनानी होगी। नहीं तो यमुना सिर्फ एक दावे और घोषणाओं की नदी बनकर रह जाएगी।

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