महंत अवेद्यनाथ का जीवन धर्म, सामाजिक समरसता और राष्ट्रसेवा की त्रिवेणी रहा। उन्होंने संत परंपरा और जनसेवा को एक सूत्र में पिरोते हुए समाज को एकजुट करने का सतत प्रयास किया। श्रीराम मंदिर आंदोलन से लेकर जातिगत भेदभाव के उन्मूलन तक, उनका योगदान युगों तक स्मरणीय रहेगा।
Mahant Avaidyanath: गोरक्षपीठ के युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज की 56वीं एवं राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ महाराज की 11वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह का समापन गुरुवार, 11 सितंबर (आश्विन कृष्ण चतुर्थी) को होगा। इस दिन गोरक्षपीठ के वर्तमान पीठाधीश्वर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा अपने पूज्य गुरुदेव महंत अवेद्यनाथ जी के विराट व्यक्तित्व का स्मरण कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी।
सीएम योगी के गुरु (फोटो: पीटीआई)
गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व
महंत अवेद्यनाथ महाराज, जिन्होंने जीवनपर्यंत सामाजिक समरसता को अपना लक्ष्य बनाया, न केवल धर्मक्षेत्र में अपितु राजनीति के मंच पर भी लोककल्याण की नाथ परंपरा को जीवंत रखते हुए जनसेवा में अग्रणी रहे। वे श्रीराम मंदिर आंदोलन के अग्रणी नायक थे, और उनका योगदान आज भी देशभर के सनातन श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। नाथपंथ की गौरवशाली परंपरा को जीवंत बनाए रखते हुए, महंत अवेद्यनाथ ने पांच बार मानीराम विधानसभा और चार बार गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर जनसेवा को नया आयाम दिया। श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण हेतु हुए संघर्ष में उनकी भूमिका निर्णायक रही। राष्ट्रसंत महंत अवेद्यनाथ का जीवन, विचार और योगदान युगों-युगों तक स्मरणीय रहेगा।
18 मई 1919 को उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र स्थित ग्राम कांडी में जन्मे महंत अवेद्यनाथ का बचपन से ही धर्म और अध्यात्म के प्रति गहरा आकर्षण था। उनके इस आध्यात्मिक रुझान को नई दिशा और गहराई मिली गोरक्षपीठ में, जहां उन्हें नाथपंथ के युगपुरुष महंत दिग्विजयनाथ जी का सान्निध्य मिला। 8 फरवरी 1942 को उन्हें विधिवत दीक्षा प्राप्त हुई और 29 सितंबर 1969 को, अपने पूज्य गुरुदेव के समाधिस्थ होने के बाद, वे गोरखनाथ मंदिर के महंत एवं पीठाधीश्वर बने। योग और दर्शन के ज्ञाता महंत अवेद्यनाथ ने अपने गुरुदेव के लोक कल्याण व सामाजिक समरसता के सिद्धांतों को और अधिक व्यापकता दी। पीठाधीश्वर के रूप में उनका नेतृत्व 2014 में आश्विन कृष्ण चतुर्थी को चिर समाधि तक निरंतर समाज सेवा, धर्म प्रचार और सांस्कृतिक जागरण के कार्यों में समर्पित रहा।
राम जन्मभूमि आंदोलन में गोरक्षपीठ का योगदान
श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियों का अमिट योगदान रहा है। जहां महंत दिग्विजयनाथ ने इस आंदोलन की क्रांतिकारी शुरुआत की, वहीं उसके बाद इसकी बागडोर संभाली महंत अवेद्यनाथ जी ने। 1990 के दशक में उनके नेतृत्व में यह आंदोलन एक निर्णायक चरण में पहुंचा। श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति और श्रीराम जन्मभूमि निर्माण उच्चाधिकार समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने संतों, राजनेताओं और आमजन को एकजुट कर रामभक्तों के बीच ऊर्जा का संचार किया। यह गौरवपूर्ण संयोग है कि जिन महंत अवेद्यनाथ ने इस आंदोलन को दिशा दी, उनके ही शिष्य योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में पांच शताब्दियों का सपना साकार हुआ और प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण अयोध्या में प्रारंभ हुआ।
संत समाज में अत्यंत आदरणीय स्थान
महंत अवेद्यनाथ वास्तविक अर्थों में एक धर्माचार्य थे, जिनके जीवन का मूल उद्देश्य धर्म की आत्मा और सामाजिक समरसता को व्यवहार में उतारना रहा। उन्होंने जीवनपर्यंत छुआछूत, जातिवाद और ऊंच-नीच जैसे सामाजिक विकारों के विरुद्ध अभियान चलाया। अखिल भारतवर्षीय अवधूत भेष बरहपंथ योगी महासभा के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने देशभर के संतों को इस विचार से जोड़ते हुए समरस समाज की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। उनकी स्पष्ट और निर्भीक वाणी ने उन्हें पूरे संत समाज में अत्यंत आदरणीय स्थान दिलाया। दक्षिण भारत के मीनाक्षीपुरम में हुए दलितों के सामूहिक धर्मांतरण की घटना से वे अत्यंत व्यथित हुए। उन्होंने अनुभव किया कि यदि समाज की अंतर्कलह को नहीं रोका गया, तो इस तरह की घटनाएं उत्तर भारत में भी हो सकती हैं। इसीलिए उन्होंने धर्म के साथ-साथ राजनीति को भी जनसेवा का माध्यम बनाया।
सामाजिक समरसता को प्राथमिकता
महंत अवेद्यनाथ का संकल्प था हिंदू समाज की कुरीतियों को मिटाकर सामाजिक एकता का निर्माण करना। इसके लिए उन्होंने दलित बस्तियों में सहभोज कार्यक्रम प्रारंभ किया, जहां हर वर्ग के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते। काशी में डोमराजा के घर संत समाज सहित भोजन कर उन्होंने सामाजिक समरसता का प्रबल संदेश पूरे देश को दिया। राम मंदिर आंदोलन में भी उन्होंने सामाजिक समरसता को प्राथमिकता दी। भूमिपूजन की पहली ईंट उन्होंने दलित समाज के प्रतिनिधि कामेश्वर चौपाल के हाथों रखवाई, जिससे यह संदेश स्पष्ट हो गया कि सनातन परंपरा समावेशी है। महंत अवेद्यनाथ व्यावहारिक उदाहरणों से लोगों को समझाते थे कि प्रभु श्रीराम ने शबरी के झूठे बेर खाकर, निषादराज को गले लगाकर, गिद्धराज जटायु का अंतिम संस्कार अपने हाथों कर और वनवासियों से मैत्री कर यह स्पष्ट किया कि समाज में कोई ऊंच-नीच नहीं, सभी बराबर हैं।
देवी दुर्गा की तरह शक्तिशाली समाज
इसी प्रकार देवी दुर्गा की अष्टभुजाओं का अर्थ बताते हुए वे समझाते कि चार वर्णों की दो-दो भुजाएं यदि संगठित हो जाएं, तो समाज दुर्गा की तरह शक्तिशाली हो जाएगा, जो सबसे तेज व बलवान जीव शेर को भी नियंत्रित कर सकती है। राजनीतिक जीवन में भी महंत अवेद्यनाथ जी ने एक मिसाल कायम की। उन्होंने पांच बार मानीराम विधानसभा (1962, 1967, 1969, 1974, 1977) और चार बार गोरखपुर लोकसभा (1970, 1989, 1991, 1996) क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। इसके अलावा वे अखिल भारतीय हिंदू महासभा के उपाध्यक्ष और महासचिव जैसे पदों पर भी प्रतिष्ठित रहे। महंत अवेद्यनाथ जी का संपूर्ण जीवनधर्म, सामाजिक सुधार और राष्ट्रसेवा की त्रिवेणी था जो आज भी अनेक प्रेरणाओं का स्रोत बनी हुई है।