मराठा नेता मनोज जरांगे-पाटिल का आरक्षण आंदोलन मुंबई के आजाद मैदान में ऐतिहासिक रूप से खास रहा और सरकार ने उनकी 8 में से 6 मांगें मान लीं। यह इलाका कभी ब्रिटिश काल में बनी ‘मराठा डिच’ के पास था, जिसे मराठाओं से बचाव के लिए बनाया गया था। इतिहास गवाह है कि कभी इस जगह को शादी में दहेज के तौर पर दिया गया था।
हाल में मराठा नेता मनोज जरांगे-पाटिल ने महाराष्ट्र ओबीसी आरक्षण को लेकर बड़ा आंदोलन किया। वह मुंबई के आजाद मैदान में अनसन पर बैठ गए और पांच दिनों तक यहीं पर डटे रहे। आखिरकार मंगलवार 2 सितंबर को उन्होंने अपना आंदोलन और भूख हड़ताल वापस ली। लेकिन इससे पहले महाराष्ट्र सरकार ने उनकी 8 में से 6 मांगों पर सहमति जता दी। इस तरह से मनोज जरांगे ने अपने आरक्षण आंदोलन में एक बड़ी सफलता हासिल की। इसके बाद उन्होंने आजाद मैदान को छोड़ा। आजाद मैदान कोई भी रेंडम मैदान नहीं है, बल्कि इसका इतिहास काफी पुराना है। शायद आपको पता नहीं होगा कि एक बार इस पूरे इलाके को दहेज में दिया गया था। चलिए विस्तार से जानते हैं।
आंदोलन के दौरान मराठा नेता मनोज जरांगे-पाटिल (फोटो - PTI)
पुर्तगालियों ने लीज पर लिया द्वीप
आजाद मैदान कभी ब्रिटिश काल में बने ‘मराठा डिच’ (Maratha Ditch) के पास स्थित था, जिसे मराठाओं के हमले से बचाव के लिए बनाया गया था। यहां के इतिहास को समझने के लिए मुंबई के आधुनिक इतिहास को जनना होगा, जो 1554 से शुरू होता है। साल 1554 में ही पुर्तगाली डॉक्टर और वनस्पति शास्त्री गार्सिया द ऑर्टा ने बंबई द्वीप लीज पर लिया और यहां पर अपना 'मैनर हाउस' बनाया।
बाद में साल 1665 में यह द्वीप तब अंग्रेजों के हाथ आया, जब पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरीन ऑफ ब्रेगेंजा की शादी इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय से हुई। पुर्तगालियों ने अंग्रोजों को यह द्वीप दहेज में दे दिया। इंग्लैंड के राजा ने मात्र 10 पाउंड प्रति वर्ष के किराए पर इस द्वीप को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को लीज पर दे दिया। इसे इतिहास का अब तक का सबसे सस्ता सौदा भी माना जाता है।
जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने भंडारी मिलिशिया बनाई
लीज पर लेने के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने द्वीप पर छोटे-छोटे किलों का निर्माण किया और वहां तोपें तैनात कर दीं। छत्रपति शिवाजी महाराज के हमलों के बाद अंग्रेज मजबूर होकर अपना व्यापारिक मुख्यालय सूरत से बंबई ले आए। इसके बाद बंबई का महत्व लगातार बढ़ते चला गया और यह प्रमुख व्यापारिक केंद्र बन गया। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने यहां पर ‘भंडारी मिलिशिया’ भी बनाई, जो आगे चलकर मुंबई पुलिस की नींव बनी।
एस्प्लेनेड की भी कहानी जानें
फिर 1715 में गवर्नर चार्ल्स बून ने बंबई को मजबूत बनाने के लिए यहां पर बड़ी किलेबंदी करवाई। इसके चारों ओर दीवारें और दरवाजे बनाए गए। किले के बाहर का खाली इलाका ‘एस्प्लेनेड’ कहलाया। जहां आज ओवल, क्रॉस, कूपरेज और आजाद मैदान स्थित हैं, वह उस समय एस्प्लेनेड का हिस्सा थे।
मुंबई का आजाद मैदान (फोटो - PTI)
तस्वीर साभार : PTI
मराठा डिच की कहानी
1739 में पेशवा बाजीराव प्रथम के भाई चिमाजी अप्पा ने वसई किला पुर्तगालियों से जीत लिया। इससे अंग्रेजों में भी डर फैल गया और उन्होंने 1743 में ‘मराठा डिच’ नामक एक खाई खुदवाई। इस खाई के निर्माण का खर्च स्थानीय व्यापारियों ने उठाया और इसके लिए व्यापार पर 1 फीसद कर लगाया गया। इसका उद्देश्य मराठाओं के हमलों से बंबई को सुरक्षित करना था।
हालाकि, बाद में यह खाई धीरे-धीरे समस्या बन गई। लोग इसमें कचरा और गंदगी फेंकने लगे, जिससे क्षेत्र में दुर्गंध फैलने लगी। गर्मियों में यूरोपीय लोग खाई की बदबू से बचने के लिए एस्प्लेनेड पर तंबुओं में रहने लगे और बरसात के दिनों में वापस किले में लौट आते थे।
आखिर भर दी गई खाई
1818 के बाद मराठाओं का खतरा समाप्त हो गया और 1862 में गवर्नर बार्टल फ्रेयर ने किलेबंदी हटवाने का आदेश दिया। इसके बाद बंबई का विस्तार हुआ और यह शहर धीरे-धीरे भारत की आर्थिक राजधानी बन गया। फिर 1867 तक खाई को पूरी तरह भर दिया गया।
जहां पर मराठाओं से बचने के लिए अंग्रेजों ने कभी खाई खुदवाई थी, वहीं पर मराठा आंदोलन होता है और उनकी जीत भी होती है, तो यह दर्शाता है कि समय कैसे बदलता है। तब भी यह जगह इतिहास का हिस्सा बनी थी और आज मराठा आरक्षण की मांग को लेकर भी जो आंदोलन हुआ, उसका इतिहास भी इसी जगह से जुड़ा है।