सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों को सड़क पर खाना देने पर आपत्ति जताते हुए नोएडा की याचिकाकर्ता से पूछा कि वे उन्हें अपने घर ले जाकर क्यों नहीं खिलातीं। कोर्ट ने सुझाव दिया कि आवारा कुत्तों के लिए घर में ही आश्रय बनाएं और खिलाएं, ऐसा करने से उन्हें कोई नहीं रोकेगा।
नई दिल्ली, भाषा। सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा में आवारा कुत्तों को खाना देने पर परेशान किए जाने का आरोप लगाने वाली एक याचिका पर मंगलवार 15 जुलाई को सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा 'आप उन्हें अपने घर में खाना क्यों नहीं देते हैं?'
सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों को खाना खिलाने पर याचिकाकर्ता को दिया अनोखा सुझाव (फोटो - AI Image)
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, 'क्या हमें इन बड़े दिल वाले लोगों के लिए हर गली, हर सड़क खुली छोड़ देनी चाहिए? इन जानवरों के लिए तो पूरी जगह है, लेकिन इंसानों के लिए कोई जगह नहीं है। आप उन्हें अपने घर में खाना क्यों नहीं देते? आपको कोई नहीं रोक रहा है।'
यह याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट के मार्च 2025 के आदेश से संबंधित है। वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता को परेशान किया जा रहा है और वह पशु जन्म नियंत्रण नियमों के अनुसार सड़कों पर रहने वाले कुत्तों को भोजन देने में असमर्थ है।
पशु जन्म नियंत्रण नियमावली, 2023 का नियम 20 सड़कों पर रहने वाले पशुओं के भोजन से संबंधित है और यह परिसर या उस क्षेत्र में रहने वाले पशुओं के भोजन के लिए आवश्यक व्यवस्था करने का दायित्व स्थानीय ‘रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन’ या ‘अपार्टमेंट ऑनर एसोसिएशन’ या स्थानीय निकाय के प्रतिनिधि पर डालता है।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा, 'हम आपको अपने घर में ही एक आश्रय स्थल खोलने का सुझाव देते हैं। गली-मोहल्ले के प्रत्येक कुत्ते को अपने घर में ही खाना दें।' याचिकाकर्ता के वकील ने नियमों के अनुपालन का दावा किया और कहा कि नगर प्राधिकरण ग्रेटर नोएडा में तो ऐसे स्थान बना रहा है, लेकिन नोएडा में नहीं।
उन्होंने कहा कि ऐसे स्थानों पर भोजन केंद्र बनाए जा सकते हैं, जहां लोग अक्सर नहीं आते। पीठ ने पूछा, 'आप सुबह साइकिल चलाने जाते हैं? ऐसा करके देखिए क्या होता है।' जब वकील ने कहा कि वह सुबह की सैर पर जाते हैं और कई कुत्तों को देखते हैं, तो पीठ ने कहा, 'सुबह की सैर करने वालों को भी खतरा है। साइकिल सवार और दोपहिया वाहन चालकों को ज़्यादा खतरा है।'
इसके बाद पीठ ने इस याचिका को इसी तरह के एक अन्य मामले पर लंबित याचिका के साथ संलग्न कर दिया। इससे पहले याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए नियमों के प्रावधानों को उचित देखभाल और सतर्कता के साथ लागू करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध किया था।
हाई कोर्ट ने कहा, 'कानून के प्रावधानों के अनुसार गलियों में रहने वाले कुत्तों का संरक्षण आवश्यक है, लेकिन साथ ही अधिकारियों को आम आदमी की चिंता को भी ध्यान में रखना होगा, ताकि इन आवारा कुत्तों के हमलों से सड़कों पर उनकी आवाजाही बाधित न हो।'
हाईकोर्ट ने राज्य के अधिकारियों से अपेक्षा की कि वे याचिकाकर्ता और सड़क से गुजरने वाले लोगों की चिंताओं के प्रति 'उचित संवेदनशीलता' दिखाएं। हाई कोर्ट ने कहा कि यह निर्देश इसलिए जरूरी है, क्योंकि हाल में कुत्तों द्वारा लोगों पर हमले की कई घटनाएं हुई हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई लोगों की जान गई है और पैदल चलने वालों को भारी असुविधा हुई है।
हाई कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए प्राधिकरणों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि अदालत द्वारा उठाई गई चिंताओं पर समुचित ध्यान दिया जाए तथा आवारा पशुओं का संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय किए जाएं तथा यह भी सुनिश्चित किया जाए कि सड़कों से गुजरने वाले लोगों के हितों को कोई नुकसान न पहुंचे।