मराठा आरक्षण पर क्यों बढ़ी तनातनी, क्या है रिजर्वेशन पर 50% की सीमा? मंडल केस के फैसले में उलझा है पूरा गणित

मराठा आरक्षण पर क्यों मचा है घमासान
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन को लेकर फिर से सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे अनशन पर बैठ गए हैं। राज्य में मराठा आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर से धधकने लगा है। फडणवीस सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी जरांगे ने यह अनशन नहीं रोका। जरांगे ने शुक्रवार को जब फिर से आमरण अनशन शुरू किया तो बड़ी संख्या में मराठा समुदाय के लोग उनके प्रति एकजुटता दिखाने के लिए दक्षिण मुंबई स्थित आजाद मैदान में एकत्रित हुए। वर्ष 2023 के बाद से यह जरांगे का सातवां अनशन है और इसे आरक्षण पाने के लिए मराठा समुदाय की अंतिम लड़ाई मानी जा रही है। अब सवाल ये है कि मराठाओं को आरक्षण के लिए बार-बार आंदोलन क्यों करना पड़ रहा है, सरकार से लेकर कोर्ट तक में जब यह लड़ाई लड़ी जा चुकी है तो फिर अनशन क्यों? सरकार क्यों मराठा समुदाय की मांगे नहीं मान रही है, क्या है आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की 50 प्रतिशत सीमा, जिसके कारण इस समस्या का अभी तक हल नहीं निकल पाया है?
ये भी पढ़ें- स्टारडम का जनाधार: एनटी रामाराव से थलापति विजय तक, दक्षिण में कैसे बदल देते हैं अभिनेता राजनीति की तस्वीर?
मराठा आरक्षण आंदोलन क्यों?
मराठा आरक्षण आंदोलन एक लंबे समय से चली आ रही सामाजिक और राजनीतिक मांग का परिणाम है। मराठा समुदाय, जो महाराष्ट्र में बहुसंख्यक है और ऐतिहासिक रूप से किसान, जमींदार और सैनिक पृष्ठभूमि से जुड़ा रहा है, अब खुद को आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा मानता है। समुदाय का यह दावा है कि उन्हें सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है। वर्तमान समय में सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण उन समुदायों के लिए उपलब्ध है जिन्हें सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा माना गया है। मराठा समुदाय की मांग है कि उन्हें भी इसी श्रेणी में शामिल किया जाए। इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि बदलती सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के कारण बड़ी संख्या में मराठा युवा बेरोजगार हैं और शिक्षा में भी पिछड़ रहे हैं।
सरकार से मिला आरक्षण लेकिन कोर्ट में अटका
2018 में तत्कालीन देवेंद्र फडणवीस सरकार ने मराठा समुदाय को SEBC (Socially and Educationally Backward Class) के तहत 16% आरक्षण देने का कानून बनाया। इसका आधार था – जस्टिस एम.जी. गायकवाड़ आयोग की रिपोर्ट, जिसमें कहा गया कि मराठा समाज सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा है। इसके बाद यह मामला बाम्बे हाईकोर्ट पहुंच गया। जहां बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस कानून को वैध माना, लेकिन आरक्षण को 16% से घटाकर 12% (शिक्षा में) और 13% (नौकरियों में) कर दिया। कोर्ट ने कहा कि गायकवाड़ आयोग की रिपोर्ट में पिछड़ेपन के कुछ तर्क हैं, लेकिन 16% आरक्षण अत्यधिक है। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया और सुप्रीम कोर्ट ने इस आरक्षण को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: (5 मई 2021)
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 5 मई 2021 को इस मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने साफ कहा कि मराठा समुदाय को दिया गया आरक्षण असंवैधानिक है क्योंकि यह 50 प्रतिशत की उस सीमा को पार करता है, जिसे पहले ही मंडल आयोग (1992) के फैसले में तय किया जा चुका है।
- मराठा समुदाय को पिछड़ा घोषित करना असंवैधानिक है।
- कोर्ट ने कहा कि मराठा समुदाय सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा सिद्ध नहीं होता है।
- गायकवाड़ आयोग की रिपोर्ट में ठोस आधार नहीं थे।
- 50% आरक्षण सीमा पार नहीं की जा सकती
- सुप्रीम कोर्ट ने 1992 के 'इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार' (मंडल केस) के फैसले को दोहराया: "आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% ही हो सकती है, केवल "अत्यंत असाधारण परिस्थितियों" में ही इससे छूट दी जा सकती है।"
- मराठा आरक्षण से महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 70% तक पहुंच गया था, जो संविधान के खिलाफ है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 102वें संविधान संशोधन के बाद, अब केवल राष्ट्रपति और केंद्र सरकार के पास अधिकार है कि वह किसी जाति को OBC सूची में शामिल करे।
- राज्य OBC लिस्ट बना सकते हैं, लेकिन उसे केंद्र की मंजूरी के बिना लागू नहीं किया जा सकता।
आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा और मंडल केस
भारत में आरक्षण व्यवस्था का उद्देश्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाना रहा है। लेकिन यह आरक्षण कितना हो सकता है, इसकी एक संवैधानिक और न्यायिक सीमा तय की गई है- 50 प्रतिशत। यह सीमा सीधे संविधान में तो नहीं लिखी गई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर अपने फैसलों के जरिए इसे स्थापित किया है। खासकर 1992 में दिए गए ऐतिहासिक "इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार" यानी मंडल केस के फैसले में इसे बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया। मंडल आयोग की सिफारिशों के बाद केंद्र सरकार ने 1990 में OBC वर्ग को 27% आरक्षण देने की घोषणा की। इस फैसले के खिलाफ देशभर में भारी विरोध हुआ और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। नौ जजों की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई की और 1992 में फैसला सुनाया। कोर्ट ने आरक्षण को संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत वैध तो माना, लेकिन एक अहम शर्त के साथ- कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि यह सीमा इसलिए जरूरी है ताकि आरक्षण के नाम पर योग्यता और समानता के अधिकारों का हनन न हो। मंडल केस में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 50 प्रतिशत की सीमा को केवल “अत्यंत असाधारण परिस्थितियों” में ही पार किया जा सकता है।
मराठाओं को आरक्षण मिलना कितना संभव है?
मराठा समुदाय को आरक्षण मिलना एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है, जिसमें कानून, समाज, राजनीति और न्यायपालिका सभी गहराई से जुड़े हुए हैं। इस पर फैसला सिर्फ भावनाओं या जनसंख्या के आधार पर नहीं हो सकता, बल्कि यह संविधान की सीमाओं, सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और सामाजिक आंकड़ों की कसौटी पर तय होता है। वर्तमान में सरकार कुनबी प्रमाणपत्र के जरिए कुछ मराठाओं को OBC कोटे में लाने की कोशिश कर रही है। यह तरीका सीमित रूप से कुछ व्यक्तियों को लाभ दे सकता है, लेकिन पूरे समुदाय को आरक्षण देने का रास्ता अब भी कानूनी तौर पर मुश्किल है। साथ ही, OBC समुदाय इस कदम का विरोध कर रहा है क्योंकि उन्हें लगता है कि मराठा समुदाय के शामिल होने से उनके हिस्से के अवसर कम हो जाएंगे। राजनीतिक तौर पर, आरक्षण देने की मांग को नजरअंदाज करना आसान नहीं है, क्योंकि मराठा महाराष्ट्र की सबसे बड़ी आबादी में से एक हैं। लेकिन राजनीतिक इच्छा शक्ति और संवैधानिक बाधाओं के बीच संतुलन बनाना सरकारों के लिए चुनौतीपूर्ण है। इसलिए जब तक कोई ठोस और संवैधानिक रूप से टिकाऊ समाधान नहीं निकलता, तब तक पूरे समुदाय को आरक्षण मिलना आसान नहीं लगता।
मराठा आरक्षण पर सरकार अब क्या कर रही है
2024 में एक बार फिर महाराष्ट्र विधानसभा ने नया कानून पास किया जिसमें मराठा समुदाय को 10% आरक्षण देने का प्रस्ताव लाया गया, लेकिन यह भी न्यायिक समीक्षा के अधीन है। सरकार अब “कुनबी प्रमाणपत्र” देने की प्रक्रिया से कुछ मराठा लोगों को OBC कोटे के भीतर लाने की कोशिश कर रही है। लेकिन OBC समुदाय इसका विरोध कर रहा है, क्योंकि उन्हें डर है कि इससे उनके कोटे पर असर पड़ेगा।
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) पढ़ें हिंदी में और देखें छोटी बड़ी सभी न्यूज़ Times Now Navbharat Live TV पर। एक्सप्लेनर्स (Explainer News) अपडेट और चुनाव (Elections) की ताजा समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से।
शिशुपाल कुमार टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल के न्यूज डेस्क में कार्यरत हैं और उन्हें पत्रकारिता में 13 वर्षों का अनुभव है। पटना से ताल्लुक रखने वाले शिशुपा...और देखें

क्या पीटर नवारो के बयान बन रहे भारत-यूएस संबंधों के बीच रोड़ा, किन बयानों ने भड़काई आग?

Explainer: हज़रतबल विवाद पर फिर छिड़ी बहस, अशोकस्तंभ राष्ट्रीय प्रतीक या धार्मिक चिह्न

ट्रेड वॉर से न्यू वर्ल्ड ऑर्डर तक: ट्रंप की टैरिफ रणनीति कैसे होती चली गई फेल, दोस्तों को भी बना दिया दुश्मन

गूगल पर EU ने क्यों लगाया 3.4 अरब डॉलर का जुर्माना, आखिर क्या है एड टेक टेक्नॉलजी?

क्या 150 साल तक जिंदा रह सकते हैं इंसान? बायोटेक्नोलॉजी पर पुतिन-जिनपिंग की सीक्रेट बातचीत हुई लीक; सुनकर दुनिया दंग
© 2025 Bennett, Coleman & Company Limited