Astronaut Shubhanshu Shukla: भारत के दूसरे अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला की 'ऐतिहासिक उड़ान' की कहानी

अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला की सफलता की कहानी
Astronaut Shubhanshu Success Story: 41 साल पहले भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब पूछा था कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है तो राकेश शर्मा ने कहा था सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा। अब 41 साल बाद दोबारा ये मौका आया है जब अंतरिक्ष की यात्रा पर जा रहे भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अपना संदेश दिया है भारत के हर नागरिक को गर्व से भरता संदेश। भारत के दूसरे अंतरिक्ष यात्री और भारत के पहले मानव मिशन 'गगनयान' का नेतृत्व करने जा रहे इंडियन एयरफोर्स के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरते ही भारत के लिए संदेश रिकॉर्ड किया है। अपने पहले संदेश में शुभांशु शुक्ला ने कहा, "नमस्कार.. मेरे प्यारे देशवासियों. क्या शानदार राइड रही, 41 साल बाद हम वापस अंतरिक्ष में पहुंच गए हैं. हम 7:30 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी के चारों ओर घूम रहे हैं. मेरे कंधे पर लगा तिरंगा इस जर्नी पर आप मेरे साथ हैं. यह सिर्फ मेरी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की यात्रा नहीं है बल्कि भारत के मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत है. मैं चाहता हूं कि सभी देशवासी इसका हिस्सा बनें. आपका भी सीना गर्व से चौड़ा होना चाहिए. आप सभी भी एक्साइटमेंट दिखाइए. आइए मिलकर भारत के मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत करें. जय हिंद! जय भारत!'
ये शब्द हैं ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के जिसने हर भारतवासी को गर्व से भर दिया है। इंडियन एयरफोर्स के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला अपने साथ तिरंगा लिए अंतरिक्ष की उड़ान पर निकल चुके हैं। नासा और इसरो के इस साझा मिशन को बतौर पायलट शुभांशु शुक्ला लीड कर रहे हैं। NASA और Axiom Space के कंबाइंड मिशन पर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की उड़ान में उनके साथ 4 लोग जा रहे हैं। इस मिशन का नाम-Axiom 4 है। शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में 14 दिन तक रहेंगे। ISS तक जैमो वैलो व पहले भारतीय होंगे। शुभांशु शुक्ला और उनके साथी अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस स्टेशन से जुड़ने में 28 घंटे से ज्यादा लगेंगे वो अगले 24 घंटे में 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखेंगे, ऐसा इसलिए है कि उनका स्पेसक्रॉफ्ट एक दिन में 16 बार पृथ्वी का चक्कर लगाएगा लेकिन ये मिशन इतना आसान नहीं रहा है। 6 बार ये मिशन टाला जा चुका है। कभी स्पेसक्राफ्ट की दिक्कत आई तो कभी ऑक्सीजन लीक हुआ। संकट के बादल भी मंडराए लेकिन इंडियन एयरफोर्स के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के नसीब में सिर्फ आसमान छूना नहीं बल्कि तारों को देखना भी लिखा था। जैसा कि वो बचपन में अपनी बहन से कहा करते थे कि मैं तारों को देखना चाहता हूं। आखिरकार 25 जून 2025 वो ऐतिहासिक तारीख साबित हुई जब भारतीय समयअनुसार दोपहर के 12 बजे शुभांशु शुक्ला की अगुवाई में। भारत के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान के लिए भी शुभांशु शुक्ला की यह उड़ान सफल हो ये बेहद जरूरी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पूरे भारत की तरफ से इंडियन एयरफोर्स के ग्रुप कैप्टन और एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला को शुभकामनाएं भेजीं।
क्या है शुभांशु शुक्ला की कहानी?
भारत को गर्व का ये पल देने वाले शुभांशु शुक्ला की कहानी के शुरुआत में चलते हैं। शुभांशु का जन्म 1986 में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ था। पिता शंभु दयाल शुक्ला सरकारी अधिकारी थे तो मां आशा शुक्ला शुभांशु और उनकी दो बड़ी बहनों निधि और सुचि की देखभाल करती थीं। अलीगंज में उनका स्कूल था सिटी मॉन्टेसरी स्कूल। यहीं उन्हें मिली थीं डॉ. कामना मिश्रा जो बाद में उनकी पत्नी बनीं।
कारगिल युद्ध ने भरा सेना में जाने का जज्बा
1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध का टीनएजर रहे शुभांशु पर काफी असर हुआ। कारगिल की बर्फीली चोटियों की सफेद चादर को दुश्मन के खून से लाल कर भारतीय सेना ने पाकिस्तान के नापाक इरादे नेस्तनाबूत कर दिए थे। उसी वक्त शुभांशु ने तय कर लिया कि ये ज़िंदगी देश के तिरंगे की शान बढ़ाने में खर्च करनी है। भारतीय सेना में जाना है। UPSC के NDA एक्जाम को क्लियर कर नेशनल डिफेंस एकेडमी पहुंचे। 2005 में पासआउट होने के बाद इंडियन एयरफोर्स अकादमी में शुभांशु सेलेक्ट होते हैं।
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फाइटर जेट्स उड़ाने की ट्रेनिंग हासिल कर बन जाते हैं इंडियन एयरफोर्स के फ्लाइंग ऑफिसर शुभांशु शुक्ला। भारतीय वायु सेना की वर्दी बदन पर थी, तिरंगा कंधे पर और हवा से बातें करतीं फाइटर जेट्स में उड़ान भरते शुभांशु की उड़ान वायुमंडल को पार करने वाली थी। मार्च 2024 तक शुभांशु शुक्ला इंडियन एयरफोर्स के ग्रुप कैप्टन बन चुके थे। उनके पास 2,000 से अधिक घंटे की उड़ान का अनुभव है, और उन्होंने Su-30 MKI, मिग-21, मिग-29, जगुआर, हॉक, डोर्नियर 228 और एएन-32 जैसे कई प्रमुख एयरक्राफ्ट उड़ाए हैं।अपनी एयरोस्पेस विज्ञान में दिलचस्पी को आगे बढ़ाते हुए शुभांशु शुक्ला ने बेंगलुरु के प्रतिष्ठित भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर ऑफ टेक्नोलॉजी की डिग्री हासिल की। वो भारत के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान की अगुवाई करेंगे। लेकिन उससे पहले ही वो मिशन Axiom 4 के जरिए 26 जून 2025 को अंतरिक्ष में कदम रखने वाले दूसरे भारतीय बनने का खिताब हासिल कर लेंगे।
भारत का पहला मानव मिशन 'गगनयान'
शुभांशु शुक्ला को ISRO के गगनयान मिशन के लिए भी चुना गया है, जो भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन है। अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए शुभांशु ने रूस और अमेरिका में खास ट्रेनिंग ली। इसमें उन्होंने माइक्रोग्रैविटी में काम करना, इमरजेंसी हैंडलिंग, और वैज्ञानिक प्रयोग सीखे। शुभांशु इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर 14 दिनों तक रहेंगे और 7 प्रयोग करेंगे, जो भारतीय शिक्षण संस्थानों ने तैयार किए हैं। इनमें ज्यादातर बायोलॉजिकल स्टडीज होंगी, जैसे कि अंतरिक्ष में मानव स्वास्थ्य और जीवों पर असर देखना। इसके अलावा, वो NASA के साथ 5 और प्रयोग करेंगे, जो लंबे अंतरिक्ष मिशनों के लिए डेटा जुटाएंगे। इस मिशन में किए गए प्रयोग भारत के गगनयान मिशन को मजबूत करेंगे। स्पेस स्टेशन पहुंचने के बाद शुभांशु की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत करने की उम्मीद भी है। शुभांशु शुक्ला अपने साथ विशेष रूप से तैयार की गई भारतीय मिठाइयां ले जा रहे हैं। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, उन्होंने बताया था कि वह अंतरिक्ष में आम का रस, गाजर का हलवा, और मूंग दाल का हलवा ले जाएंगे। उन्होंने कहा कि वह इन्हें ISS पर अपने साथी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ मिल बांट कर खाएंगे।
भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है ये मिशन?
यह मिशन भारत का भी है। भारत की उम्मीदें और पैसे दोनों इस मिशन पर लगे हैं। इस मिशन पर भारत ने अब तक करीब 548 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। इसमें शुभांशु और उनके बैकअप ग्रुप कैप्टन प्रशांत नायर की ट्रेनिंग का खर्च भी शामिल है। ये पैसे ट्रेनिंग, उपकरण, और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी में लगे हैं। शुभांशु का ये अनुभव गगनयान मिशन जो 2027 में प्लान्ड है उसके लिए बहुत मददगार होगा। वापस आने के बाद वो जो डेटा और अनुभव लाएंगे, वो भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम को आगे बढ़ाने में हेल्प कर सकता है।
क्या होता है अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन?
वैसे आपके ज़ेहन में ये भी सवाल आ सकता है कि ये इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन असल में है क्या। चलिए इसे भी समझने की कोशिश करते हैं। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पृथ्वी के चारों ओर घूमने वाला एक बड़ा अंतरिक्ष यान है। इसमें एस्ट्रोनॉट रहते हैं और माइक्रो ग्रेविटी में एक्सपेरिमेंट करते हैं। यह 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रैवल करता है। यह हर 90 मिनट में पृथ्वी की परिक्रमा पूरी कर लेता है। 5 स्पेस एजेंसीज ने मिलकर इसे बनाया है। स्टेशन का पहला पीस नवंबर 1998 में लॉन्च किया गया था। साल 2000 से कोई ना कोई एस्ट्रोनॉट वहां पर मौजूद रहा है।
किस मिशन पर गए हैं शुभांशु शुक्ला?
शुभांशु शुक्ला जिस मिशन पर गए हैं उसका मकसद क्या है ये भी जान लेते हैं। Ax-4 मिशन का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष में रिसर्च करना और नई टेक्नोलॉजी को टेस्ट करना है। ये मिशन प्राइवेट स्पेस ट्रैवल को बढ़ावा देने के लिए भी है और एक्सियम स्पेस प्लानिंग का हिस्सा है, जिसमें भविष्य में एक कॉमर्शियल स्पेस स्टेशन (एक्सियम स्टेशन) बनाने की योजना है।
इसके अलावा माइक्रोग्रेविटी में कई तरह के प्रयोग करना, टेक्नोलॉजी टेस्टिंग, विभिन्न देशों के अंतरिक्ष यात्रियों को एक मंच प्रदान करना और अंतरिक्ष से पृथ्वी पर लोगों को प्रेरित करना और जागरूकता फैलाना जैसे लक्ष्य यह मिशन हासिल करना चाहता है।
रवाना होने पर मां की आंखों में आंसू छलक आए
शुभांशु शुक्ला एक्सिअम मिशन-4 के तहत इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन यानी ISS पर रवाना हुए तो यह दृश्य देखने के लिए लखनऊ में उनके माता-पिता भी मौजूद थे। बेटे के अंतरिक्ष के लिए रवाना होने पर मां की आंखों में आंसू छलक आए। उन्होंने कहा गर्व तो हो रहा है लेकिन मां का दिल है तो डर भी लग रहा है। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की ऐतिहासिक उड़ान ने हर भारतवासी को गर्व से भर दिया है। भारत के अपने मानव मिशन गगनयान का रास्ता भी इससे मजबूत हुआ है। ये कहानी भारत के अंतरिक्ष मिशन की कामयाबी की कहानी है। ये नींव की इमारत है जिसे शुभांशु शुक्ला ने तय किया है। सारा भारत उनकी कामयाबी से खुश है और उनकी सुरक्षित वापसी के लिए दुआएं करेगा।
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सत्याग्रह की धरती चंपारण से ताल्लुक रखने वाले आदर्श शुक्ल 10 सालों से पत्रकारिता की दुनिया में हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय और IIMC से पत्रकारिता की पढ़ा...और देखें

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