महान फिल्मकार सत्यजीत रे के पुश्तैनी घर की क्या है असलियत? इमारत गिराने से क्यों पीछे हटी बांग्लादेश सरकार

बांग्लादेश में है सत्यजीत रे का पुश्तैनी घर! तस्वीर-टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल
Satyajit Ray ancestral home : मशहूर फिल्मकार सत्यजीत रे के बांग्लादेश में पुश्तैनी मकान को लेकर सोशल मीडिया में कई तरह के दावे किए गए हैं। दावा किया गया कि यह मैमनसिंह रोड पर स्थित ढहाया जा रहा मकान सत्यजीत रे के पूर्वजों का है, इन दावों पर भारत सरकार भी सक्रिय हुई और उसने बांग्लादेश सरकार से इस मकान को न तोड़ने का अनुरोध किया। साथ ही भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि वह इस आवास के पुनर्निमाण एवं पुनरुद्धार में मदद करने के लिए वह तैयार है। अब बांग्लादेश की सरकार ने कहा है कि मैमनसिंह रोड पर स्थित जिस जीर्ण इमारत को सत्यजीत रे का पुश्तैनी मकान बताया जा रहा है, दरअसल यह उनके पूर्वजों का नहीं है। तो यह जानना जरूरी है कि जिस घर को सत्यजीत रे का पुश्तैनी आवास कहा जा रहा है, आखिर वह किसका है और उसका मालिकाना हक किसके पास है।
कई रिपोर्टों में दावा किया गया है कि यह घर प्रसिद्ध बंगाली लेखक और सत्यजीत रे के दादा उपेन्द्रकिशोर राय चौधरी का था और इसे अब गिराए जाने पर लोग निराश और चिंतित हैं। यह रिपोर्ट उस समय सामने आई है जब बांग्लादेश में सरकार परिवर्तन के बाद भारत और ढाका के संबंधों में तनाव देखा जा रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने दिल्ली में शरण ली है और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार उनके प्रत्यर्पण को लेकर भारत सरकार पर लगातार दबाव बना रही है।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने दिया बयान
इस विवाद पर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की ओर से सफाई आई। विदेश मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा कि आर्काइव रिकॉर्ड की विस्तृत जांच से पुष्टि हुई है कि संबंधित घर का प्रख्यात साहित्यकार सत्यजीत रे के पूर्वजों से कोई संबंध नहीं है। यह घर स्थानीय जमींदार शशिकांत आचार्य चौधरी का है जिसे उन्होंने सत्यजीत रे के पूर्वजों के बंगले 'शशि लॉज' के पास अपने कर्मचारियों के लिए बनवाया था। जमींदारी प्रथा के खत्म होने के बाद यह घर सरकारी नियंत्रण में आ गया। बाद में इसे बांग्लादेश शिशु अकादमी को आवंटित कर दिया गया। तब से यह घर जिला शिशु अकादमी के कार्यालय के रूप में उपयोग हो रहा है। यह भूमि सरकारी (खास) गैर-कृषि भूमि थी और शिशु अकादमी को लंबे समय के लिए पट्टे पर दी गई थी।
रे परिवार से इसका कोई संबंध नहीं!
बयान में आगे कहा गया कि जिला अधिकारियों ने घर से संबंधित भूमि रिकॉर्ड की समीक्षा की और पुष्टि की कि पुराने रिकॉर्ड के अनुसार यह भूमि सरकार की है और रे परिवार से इसका कोई संबंध नहीं है। स्थानीय वरिष्ठ नागरिकों और विभिन्न समुदायों के सम्मानित व्यक्तियों ने भी इस बात की पुष्टि की कि रे परिवार और वर्तमान में शिशु अकादमी को पट्टे पर दी गई इस भूमि और भवन के बीच कोई ज्ञात ऐतिहासिक संबंध नहीं है। यह भवन किसी पुरातात्विक स्मारक के रूप में सूचीबद्ध भी नहीं है। बयान में यह भी उल्लेख किया गया कि इस घर के सामने वाली सड़क का नाम सत्यजीत रे के परदादा हरिकिशोर रे के नाम पर रखा गया है, जो उनके दादा उपेन्द्रकिशोर रे चौधरी के दत्तक पिता थे। रे परिवार का एक घर हरिकिशोर रे रोड पर था, जिसे उन्होंने बहुत पहले बेच दिया था। अब वहां नए मालिक ने एक बहुमंजिला इमारत बना दी है।
घर जमींदोज करने पर भारत सरकार ने जताया था खेद
इससे पहले भारत के विदेश मंत्रालय ने ध्वस्तीकरण पर खेद व्यक्त किया। मंत्रालय ने कहा कि यह संपत्ति वर्तमान में बांग्लादेश सरकार के स्वामित्व में है और जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। इस भवन को बंगाली सांस्कृतिक नवजागरण का प्रतीक मानते हुए, इसे ध्वस्त करने के बजाय इसके संरक्षण और एक साहित्य संग्रहालय के रूप में पुनर्निर्माण पर विचार करना बेहतर होगा, ताकि यह भारत और बांग्लादेश की साझा संस्कृति का प्रतीक बन सके। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में नई दिल्ली ढाका के साथ सहयोग करने के लिए तैयार है। भारत सरकार का अनुरोध बांग्लादेश सरकार मान लिया है। वह इस घर को फिलहाल नहीं गिराएगी।
भारतीय सिनेमा के युग पुरुष हैं सत्यजीत रे
रे की गिनती भारतीय सिनेमा के महान फिल्मकारों में होती है। वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। रे एक सफल निर्देशक, पटकथा लेखक, संगीतकार थे। इन्होंने कई चर्चित पुस्तकें लिखीं। चित्रकारी और ग्राफिक डिजाइनिंग में भी रे का नाम है । रे के दादा उपेन्द्रकिशोर राय चौधरी और पिता सुकुमार रे दोनों ही प्रसिद्ध लेखक और प्रकाशक थे। रे ने अपना फिल्मी करियर 1955 में 'पाथेर पंचाली' से शुरू किया, जिसने न केवल भारतीय बल्कि विश्व सिनेमा में भी क्रांति ला दी। इस फिल्म को कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। इस फिल्म को कान फिल्म फेस्टिवल में 'बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट' पुरस्कार शामिल है। इसके बाद उन्होंने 'अपूर संसार' और 'अपराजितो' बनाईं। इसे 'अपु त्रयी' के नाम से जाता है। इसकी गिनती विश्व सिनेमा की सबसे महान कृतियों में होती है।
1992 में रे को मिला 'भारत रत्न'
सत्यजीत रे की फिल्में मानव संवेदना, सामाजिक यथार्थ, और बांग्ला संस्कृति को गहराई से पेश करती हैं। 'चारुलता', 'नायक', 'शतरंज के खिलाड़ी' और 'घरे बाहर' जैसी फिल्मों में उन्होंने विभिन्न सामाजिक मुद्दों को बारीकी से चित्रित किया। भारतीय सिने जगत में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने साल 1992 में सत्यजीत रे को देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया। इसके अलावा उन्हें ऑस्कर का मानद पुरस्कार भी दिया गया, जो विश्व सिनेमा में उनके योगदान को मान्यता देता है।
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आलोक कुमार राव न्यूज डेस्क में कार्यरत हैं। यूपी के कुशीनगर से आने वाले आलोक का पत्रकारिता में करीब 19 साल का अनुभव है। समाचार पत्र, न्यूज एजेंसी, टेल...और देखें

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