अंबेडकर राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय किए जाने के थे खिलाफ, प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर SC में हुई दिलचस्प बहस

प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट में हुई बहस
Presidential Reference: संसद और विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल की स्वीकृति से जुड़ी संवैधानिक शक्तियों पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को अहम सुनवाई हुई। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि संविधान सभा ने जानबूझकर राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए विधेयकों पर फैसला लेने की कोई समयसीमा तय नहीं की थी।
केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए SG तुषार मेहता की दलीलें
मेहता ने कहा कि संविधान सभा की बहस से साफ है कि प्रारंभिक मसौदे में राष्ट्रपति को 6 हफ्ते में मनी बिल पर निर्णय लेने का प्रावधान था। लेकिन डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संशोधन लाकर यह समयसीमा हटवा दी और उसकी जगह यथाशीघ्र या As Soon As Possible शब्द शामिल किया। जबकि दूसरे सदस्य एच.वी. कामथ ने इसका विरोध किया था और इसे अस्पष्ट कहा था, फिर भी संविधान सभा में अंबेडकर का संशोधन ही स्वीकार किया गया।
SG ने 1915 और 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट्स का हवाला दिया, जिनमें समयसीमा का प्रावधान था। एसजी के मुताबिक यह एक काफी सोच-समझकर हटाया गया प्रावधान था। क्योंकि राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च संवैधानिक पद को समयसीमा से बांधना सही नहीं था। ये मानकर चला जाता है कि वे कानून के अनुसार ही कार्य करेंगे। ऐसे में राष्ट्रपति को यह नहीं कहा जा सकता कि छह हफ्ते के भीतर ही वो बिल पर फैसला करें।
वही सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई की मौजूदा प्रक्रिया दरअसल अप्रत्यक्ष तौर पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले दिए गए फैसले के खिलाफ अपील जैसी है। उन्होंने कहा कि न तो उस आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की गई और न ही कोई सीधे अपील की गई, बल्कि सुप्रीम कोर्ट से उसके फैसले में संशोधन के लिए कहा जा रहा है। इस पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने साफ किया कि हम तमिलनाडु के मामले में दिए फैसले के खिलाफ अपील नहीं सुन रहे हैं। बल्कि ये संविधान बेंच सिर्फ राष्ट्रपति के द्वारा भेजे गए 14 सवालों के कानूनी पहलुओं पर सुनवाई कर रही है।
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