Chenab Bridge: कश्मीर घाटी को देश से जोड़ने वाले दुनिया के सबसे ऊँचे रेलवे आर्च ब्रिज की कहानी

दुनिया के सबसे ऊँचे रेलवे आर्च ब्रिज की कहानी (फोटो:PTI)
जम्मू-कश्मीर की वादियों में बादल, बर्फ़ और भूकंपीय चुनौतियों के बीच खड़ा है चिनाब ब्रिज (Chenab Bridge) दुनिया का सबसे ऊँचा रेलवे आर्च ब्रिज। यह सिर्फ़ एक पुल नहीं, बल्कि भारतीय इंजीनियरिंग का साहस, धैर्य और संकल्प का प्रतीक है।
कहां से शुरू हुई कहानी
कश्मीर को रेलमार्ग से देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने का सपना साल 1997 में उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक (USBRL) प्रोजेक्ट के साथ शुरू हुआ। इससे पहले, 1983 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जम्मू-उधमपुर रेलवे लाइन की नींव रखी थी। उस 53 किलोमीटर लंबी लाइन को पूरा करने में ही लगभग 22 साल और 515 करोड़ रुपये लग गए।
1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने USBRL प्रोजेक्ट को औपचारिक रूप से शुरू किया। उस समय अनुमानित लागत 2,500 करोड़ रुपये थी, जो अब बढ़कर लगभग 42,930 करोड़ रुपये तक पहुँच चुकी है।
चिनाब ब्रिज का सपना और चुनौतियाँ
2003 में चिनाब ब्रिज बनाने की मंज़ूरी मिली। योजना थी कि यह 2009 तक तैयार हो जाएगा, लेकिन घाटी का कठिन भूगोल, सुरक्षा हालात और डिज़ाइन में लगातार बदलावों ने इस प्रोजेक्ट को लंबा खींच दिया।2010 में काम शुरू हुआ, और फिर साल दर साल चुनौतियों से जूझते हुए अगस्त 2022 में इसका निर्माण पूरा हुआ।
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इसके बाद फरवरी 2023 में ट्रैक बिछाने का काम शुरू हुआ और 20 जून 2024 को संगलदान से रियासी स्टेशन तक पहली बार ट्रेन का ट्रायल रन किया गया।
लागत और खासियतें
• चिनाब ब्रिज के निर्माण पर लगभग 1,486 करोड़ रुपये की लागत आई।
• यह 272 किलोमीटर लंबी रेल लाइन का हिस्सा है जिसमें –
• 36 सुरंगें
• 943 पुल
• और 12.77 किलोमीटर लंबी T-50 टनल (देश की सबसे लंबी ट्रांसपोर्ट टनल) शामिल हैं।
359 मीटर ऊँचाई से चिनाब नदी पर खड़ा यह आर्च ब्रिज एफ़िल टॉवर से भी ऊँचा है और दुनियाभर में इंजीनियरिंग का अजूबा माना जा रहा है।
मोदी सरकार की गति और निगरानी
2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने PRAGATI पहल के तहत इस प्रोजेक्ट की बारीकी से निगरानी की। फंडिंग सुनिश्चित हुई, और निर्माण कार्य में तेज़ी आई।
आख़िरकार, 6 जून 2025 को प्रधानमंत्री मोदी ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
भारत का गर्व, दुनिया की मिसाल
चिनाब ब्रिज सिर्फ़ एक कंस्ट्रक्शन नहीं, बल्कि यह इस बात का सबूत है कि असंभव दिखने वाले सपनों को भी इंजीनियरिंग, तकनीक और संकल्प से साकार किया जा सकता है। यह पुल अब कश्मीर घाटी को देश से जोड़ने का सबसे मज़बूत जरिया है और भारत के आत्मविश्वास की पहचान भी।
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हिमांशु तिवारी एक पत्रकार हैं जिन्हें प्रिंट से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक का 16 साल का अनुभव है। मैंने अपना करियर क्राइम रिपोर्टर के रूप में शुरू किया था...और देखें

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