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'मुझे 17 साल तक अपमानित किया, मेरा पूरा जीवन बर्बाद कर दिया', मालेगांव ब्लास्ट केस में बरी होने के बाद साध्वी प्रज्ञा का बयान

मालेगांव ब्लास्ट केस में NIA कोर्ट द्वारा बरी होने के बाद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने कहा कि 'उन्हें अपने ही देश में आतंकी बनाया गया, इससे उनका जीवन पूरी तरह बर्बाद हो गया।' साध्वी ने कोर्ट के फैसले को भगवा और हिंदुत्व की जीत बताया। एनआईए की अदालत ने सबूतों के अभाव में साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया।

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Sadhvi Pragya Thakur : साल 2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की विशेष कोर्ट से बरी होने के बाद साध्वी प्रज्ञा ने गुरुवार को कहा कि इस मामले में 17 साल तक उन्हें अपमानित किया गया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व सांसद ने कहा कि 'उन्हें अपने ही देश में आतंकी बनाया गया और इससे उनका पूरा जीवन बर्बाद हो गया।' साध्वी ने कोर्ट के फैसले को भगवा और हिंदुत्व की जीत बताया। बता दें कि एनआईए की अदालत ने सबूतों के अभाव में साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। मालेगांव में हुए इस विस्फोट में छह लोगों की मौत हुई थी।

एनआईए कोर्ट ने मालेगांव ब्लास्ट के सभी आरोपियों को बरी किया। तस्वीर-PTI

विस्फोट में छह लोग मारे गए, 100 से ज्यादा घायल

मुंबई की एक विशेष अदालत ने सितंबर 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सभी सातों आरोपियों को बृहस्पतिवार को बरी कर दिया। इस विस्फोट में छह लोग मारे गए थे और 101 अन्य घायल हुए थे। राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के मामलों की सुनवाई के लिए नियुक्त विशेष न्यायाधीश ए के लाहोटी ने अभियोजन पक्ष के मामले और जांच में कई खामियों को उजागर किया और कहा कि आरोपी व्यक्ति संदेह का लाभ पाने के हकदार हैं।

आरोप साबित करने के लिए ठोस सबूत नहीं-कोर्ट

मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर मालेगांव शहर में 29 सितंबर 2008 को एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल में लगाए गए विस्फोट उपकरण में विस्फोट होने से छह लोगों की मौत हो गयी थी और 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे। न्यायाधीश ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि मामले को संदेह से परे साबित करने के लिए कोई ‘विश्वसनीय और ठोस’सबूत नहीं है। अदालत ने कहा कि इस मामले में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधान लागू नहीं होते।

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