सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में फैसलों की कॉपी अपलोड करने हो रही देरी पर जताई चिंता

Supreme Court of India flags High courts judgment delay tendency
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के एक मामले में बड़ी चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट्स कई बार फैसले का ऑपरेटिव हिस्सा सुना देते हैं, लेकिन पूरे आदेश की कॉपी वेबसाइट पर बहुत देर से अपलोड करते हैं। कई बार यह देरी महीनों या सालों तक खिंच जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि यह तरीका सही नहीं है क्योंकि इससे प्रभावित पक्ष को समय पर न्याय पाने का अधिकार नहीं मिल पाता।
पंजाब-हरियाणा हाइकोर्ट से हुई देरी के बाद आया आदेश
यह मामला साल 1998 के एक हत्या केस से जुड़ा है। एफआईआर के मुताबिक आरोपी राजन ने पिस्तौल से गोली चलाने की कोशिश की थी लेकिन निशाना चूक गया। इसके बाद दो अन्य आरोपी नरेश और विकास ने डबल बैरल गन से फायरिंग की, जिससे पीड़ित की मौत हो गई। एक अन्य आरोपी तलवार से लैस था। ट्रायल कोर्ट ने राजन और विकास को दोषी करार दिया जबकि तीन लोगों को बरी कर दिया। नरेश जो फरार था, बाद में पकड़ा गया और सजा पाई।
राजन ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में अपील की, लेकिन वहां भी उसकी सजा बरकरार रखी गई। इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। राजन का तर्क था कि हाई कोर्ट ने फैसला सुनाने के बाद पूरा आदेश अपलोड करने में 2 साल 5 महीने की देरी की, जिससे उसे भारी नुकसान हुआ। साथ ही उसके पास से कोई हथियार भी बरामद नहीं हुआ था
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को नहीं मिली राहत लेकिन कर दी बड़ी टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ हथियार बरामद न होने से दोषमुक्त नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब गवाहों की गवाही पक्की और भरोसेमंद हो। कोर्ट ने गवाहों की गवाही को सही माना और राजन की अपील खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि देरी के मुद्दे पर गंभीर चिंता जताई और कहा कि हाई कोर्ट का 2 साल 5 महीने बाद फैसला अपलोड करना सही नहीं है। यह न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले दिए गए अनिल राय बनाम बिहार राज्य के फैसले का हवाला देते हुए दोहराया कि ऐसे मामलों में देरी स्वीकार्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि भविष्य में ऐसा न हो और सभी हाई कोर्ट्स को इस आदेश की कॉपी भेजने के निर्देश दिए।
न्यायिक प्रक्रिया में समय पर फैसले की अहमियत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों को न्याय समय पर मिलना चाहिए। अगर फैसले देर से अपलोड होते हैं तो अपील या अन्य कानूनी कदम उठाने में रुकावट आती है। कोर्ट ने उम्मीद जताई कि आगे से हाई कोर्ट इस पर ध्यान देंगे और समय पर विस्तृत आदेश जारी करेंगे और आदेश के समय रहते अपलोड करेंगे।
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