सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: हादसे में घायल नाबालिग को मिलेगा 4 गुना ज़्यादा मुआवज़ा

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सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि सड़क हादसे में स्थायी दिव्यांगता झेल चुके नाबालिग को गैर-आय अर्जक मानकर मुआवज़ा तय नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के आदेश में बदलाव करते हुए मुआवज़ा की रकम 8.65 लाख रुपये से बढ़ाकर 35.90 लाख रुपये कर दी। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने कहा कि नाबालिग की आय का आकलन कम से कम संबंधित राज्य में घोषित कुशल मज़दूर की न्यूनतम मज़दूरी के आधार पर किया जाना चाहिए।
सड़क हादसे की कहानी क्या है?
यह मामला 14 अक्टूबर 2012 का है, जब गुजरात के बनासकांठा जिले में 8 वर्षीय हितेश नागजीभाई पटेल अपने पिता के साथ एक कच्ची सड़क पर खड़ा था। तभी तेज़ रफ़्तार और लापरवाही से चलाई जा रही गाड़ी (GJ-8V-3085) ने उसे टक्कर मार दी। हादसे में हितेश के सिर पर गंभीर चोटें आईं और उसका बायां पैर काटना पड़ा। इसके बाद हितेश ने अपने पिता के माध्यम से मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के तहत 10 लाख रुपये मुआवज़े की मांग करते हुए दावा दायर किया।
सितंबर 2021 में मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) ने हितेश की स्थायी विकलांगता को केवल 30% मानते हुए 3.90 लाख रुपये मुआवज़ा 9% ब्याज सहित तय किया। हालांकि, अगस्त 2024 में गुजरात उच्च न्यायालय ने विकलांगता को 90% मानकर मुआवज़ा बढ़ाकर 8.65 लाख रुपये कर दिया और कृत्रिम पैर समेत अन्य मदों में अतिरिक्त राशि जोड़ी।
सुप्रीम कोर्ट ने मानवीय संवेदनाओं को ध्यान में रखकर दिया फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नाबालिग को गैर-आय अर्जक मानना गलत है क्योंकि किसी बच्चे का भविष्य पूरी तरह अज्ञात होता है और उसे न्यूनतम मज़दूरी के आधार पर आंका जाना चाहिए। अदालत ने 2012 में गुजरात में कुशल मज़दूर की न्यूनतम मज़दूरी 227.85 रुपये प्रतिदिन मानकर हितेश की मासिक आय 6,836 रुपये तय की। इसमें 40% भविष्य की संभावनाओं का इज़ाफ़ा जोड़कर और 90% स्थायी दिव्यांगता को ध्यान में रखते हुए कुल मुआवज़ा 35.90 लाख रुपये तय किया गया।
पीड़ित नाबालिक का अतिरिक्त मुआवज़ा भी मंजूर
कोर्ट ने नाबालिक के गैर-आर्थिक मदों में भी राहत दी है। हितेश को 5 लाख रुपये दर्द और पीड़ा के लिए, 3 लाख रुपये विवाह की संभावनाओं के नुकसान के लिए और 5 लाख रुपये कृत्रिम पैर के लिए दिए जाएंगे। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि अगर किसी मामले में आय का सटीक प्रमाण न हो तो बीमा कंपनी की ज़िम्मेदारी होगी कि वह अदालत के सामने संबंधित राज्य की न्यूनतम मज़दूरी का विवरण पेश करे। यह निर्देश देशभर के सभी मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरणों तक भेजा जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल हितेश जैसे पीड़ित बच्चों के अधिकारों को मज़बूत करता है बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि भविष्य में सड़क हादसों के मामलों में नाबालिगों को न्यायसंगत और पर्याप्त मुआवज़ा मिले। यह निर्णय उन परिवारों के लिए भी एक मिसाल बनेगा, जिनके बच्चे सड़क हादसों में गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं।
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