सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की सीमाओं पर दिया बड़ा फैसला, बेटी के अधिकार को मान्यता

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सुप्रीम कोर्ट ने 8 सितम्बर एक अहम आदेश देते हुए कहा कि हाई कोर्ट पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान केस से जुड़े तथ्यों का फिर से मूल्यांकन नहीं कर सकता। अदालत ने साफ किया कि पुनर्विचार का दायरा केवल उन गलतियों के सुधार तक सीमित है जो पिछले आदेश के देते वक्त की गई हो। अगर हाई कोर्ट तथ्यों को नए सिरे से जांचे या अपीली अदालत की तरह काम करे, तो यह उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
मद्रास HC के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बदला
यह विवाद एक संपत्ति के विभाजन से जुड़े मामले का है, जो साल 2000 में दायर हुआ था। इसमें सुब्रमणी नाम के व्यक्ति ने 2003 में निचली अदालत से एक डिक्री हासिल की थी, जिसके बाद उसकी बहन मल्लीस्वरी को सम्पत्ति की हिस्सेदारी से बाहर कर दिया गया था। 2005 में हिंदू उत्तराधिकार संशोधन कानून लागू होने के बाद मल्लीस्वरी ने अपने हिस्से पर दावा किया और साथ ही पिता की वसीयत के आधार पर संपत्ति में अतिरिक्त अधिकार भी मांगे। हालांकि ट्रायल कोर्ट ने 2019 में उसकी याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन 2022 में मद्रास हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा (2020) के फैसले का हवाला देते हुए मल्लीस्वरी के पक्ष में आदेश दिया।
इसके बाद 2024 में हाई कोर्ट ने भाई द्वारा दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका की सुनवाई करते हुए फैसला पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को रद्द करते हुए कहा कि हाई कोर्ट ने अपनी समीक्षा शक्तियों (revision powers) का दुरुपयोग किया है और अपीली अदालत की तरह काम किया, जो कानून के मुताबिक गलत है।
बेटियों के लिए समान अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी दोहराया कि हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 के बाद बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में पुत्रों की तरह ही कौपार्सनेरी (संयुक्त उत्तराधिकार) अधिकार है। इसका मतलब है कि बेटी अपने पिता की संपत्ति में उसी तरह की हिस्सेदार है जैसी बेटे को होती है। अदालत ने कहा कि इस कानून का उद्देश्य परिवारों में बराबरी सुनिश्चित करना है और बेटियों को किसी भी तरह से वंचित नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को फिर से ट्रायल कोर्ट को भेजते हुए निर्देश दिया है कि मल्लीस्वरी के हिस्से का निर्धारण जल्द किया जाए और 2022 में मद्रास हाई कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के मुताबिक उसे लागू किया जाए।
CPC के तहत HC के पास सीमित दायरा
यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एसवीएन भट्टी की दो जजों वाली बेंच ने दिया। अदालत ने साफ किया कि ऑर्डर 47 सीपीसी (Code of Civil Procedure) के तहत हाई कोर्ट की समीक्षा (रीव्यू) की शक्ति सीमित है। इसका मतलब है कि हाई कोर्ट केवल वही गलती सुधार सकता है जो रिकॉर्ड पर साफ दिखाई देती हो या फिर ऐसा नया सबूत सामने आए जो पहले उपलब्ध नहीं था। हाई कोर्ट समीक्षा के नाम पर पूरे मामले की दोबारा सुनवाई नहीं कर सकता और न ही तथ्यों का फिर से मूल्यांकन कर सकता है। ऐसा करना अपीली अदालत की तरह काम करने के बराबर है, जो कानून के अनुसार गलत है।
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